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क़ानून मंत्री का तंज- 'जनता मालिक है..., सुप्रीम कोर्ट चेता नहीं सकता'

क़ानून मंत्री का तंज- 'जनता मालिक है..., सुप्रीम कोर्ट चेता नहीं सकता'

जजों की नियुक्ति को लेकर सरकार और केंद्र सरकार के बीच टकराव के बीच अब फिर से क़ानून मंत्री किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट पर तंज कसा है। जानिए उन्होंने क्या कहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजियम की सिफारिशों की मंजूरी में देरी पर सख़्त टिप्पणी क्या की, अब क़ानून मंत्री किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट पर तंज कसा है। रिजिजू ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि 'मैंने समाचार में देखा कि उच्चतम न्यायालय ने चेतावनी दी है। लेकिन इस देश के मालिक इस देश के लोग हैं। हम लोग सेवक हैं। अगर कोई मालिक है, तो यह जनता है। यदि कोई मार्गदर्शक है, तो वह संविधान है। संविधान के मुताबिक़ जनता की सोच से यह देश चलेगा। आप किसी को चेतावनी नहीं दे सकते।' 

क़ानून मंत्री किरण रिजिजू की यह टिप्पणी तब आई है जब सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले ही पांच न्यायाधीशों की पदोन्नति के लिए कॉलेजियम की लंबित सिफारिशों पर सरकार से कड़े सवाल पूछे थे। उसने नाराज़गी जताते हुए कहा था कि यह  'बहुत गंभीर मुद्दा' है। इसके बाद केंद्र ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को आश्वासन दिया था कि वह जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की सिफारिशों को मंजूरी देगा।

हालाँकि, इस बीच सरकार ने शनिवार को पांच न्यायाधीशों के नामों को मंजूरी दे दी है। रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट में पांच न्यायाधीशों की नियुक्ति की घोषणा करने वाला ट्वीट भी किया।

लेकिन एक कार्यक्रम में क़ानून मंत्री ने उच्चतम न्यायालय की उस चेतावनी का ज़िक्र किया जिसमें उसने कहा था कि अब और देरी 'खुशगवार' नहीं होगी।

यह सुप्रीम कोर्ट और केंद्र के बीच विवाद की ताज़ा वजह है। पिछले महीने ही किरण रिजिजू ने यह कहकर न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल खड़े किये थे कि जजों को चुनाव का सामना नहीं करना पड़ता। वह हाल के दिनों में लगातार इस मुद्दे को उठाते रहे हैं। न्यायपालिका और सरकार के बीच न्यायाधीशों की नियुक्ति और संविधान के मूल ढाँचा के सिद्धांत को लेकर चले आ रहे टकराव के बीच रिजिजू का यह बयान आया था।

रिजिजू ने तब कहा था, 'जज बनने के बाद उन्हें चुनाव या जनता के सवालों का सामना नहीं करना पड़ता है... जजों, उनके फ़ैसलों और जिस तरह से वे न्याय देते हैं, और अपना आकलन करते हैं, उसे जनता देख रही है... सोशल मीडिया के इस युग में, कुछ भी नहीं छुपाया जा सकता है।'

केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था कि 1947 के बाद से कई बदलाव हुए हैं, इसलिए यह सोचना गलत होगा कि मौजूदा व्यवस्था जारी रहेगी और इस पर कभी सवाल नहीं उठाया जाएगा।

उन्होंने कहा था कि यह बदलती स्थिति है, इसे ज़रूरतें निर्धारित करती हैं और यही कारण है कि संविधान को सौ से अधिक बार संशोधित करना पड़ा।

बता दें कि सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति में एक बड़ी भूमिका की मांग कर रही है, यह तर्क देते हुए कि विधायिका सर्वोच्च है क्योंकि यह लोगों की इच्छा का प्रतिनिधित्व करती है। हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी कि कानून मंत्री किरण रिजिजू ने सुप्रीम कोर्ट को एक पत्र लिखा है जिसमें मांग की गई कि जजों की नियुक्ति के मसले पर बनने वाली समिति में सरकार के प्रतिनिधि को शामिल किया जाना चाहिए। जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में केंद्र और संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधि को शामिल किया जाए। पत्र में लिखा गया कि यह पारदर्शिता और सार्वजनिक जवाबदेही के लिए ज़रूरी है।

 - Satya Hindi

हाल ही में किरण रिजिजू ने दिल्ली हाई कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की टिप्पणियों को ट्वीट किया था। दिल्ली के उच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायाधीश आरएस सोढी ने लॉ स्ट्रीट यू-ट्यूब चैनल के साथ एक साक्षात्कार में कहा था, 'सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संविधान का अपहरण कर लिया है। उन्होंने कहा है कि हम खुद न्यायाधीशों को नियुक्त करेंगे। सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी।'

इस बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने संविधान के मूल ढाँचा के सिद्धांत पर जोर दिया। उन्होंने तब एक कार्यक्रम में इस सिद्धांत को 'नॉर्थ स्टार' जैसा बताया था जो अमूल्य मार्गदर्शन देता है। उन्होंने कहा था,

हमारे संविधान की मूल संरचना, नॉर्थ स्टार की तरह है जो संविधान के व्याख्याकारों और कार्यान्वयन करने वालों को कुछ दिशा देता है।


सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, सुप्रीम कोर्ट

सीजेआई ने कहा था कि 'हमारे संविधान की मूल संरचना या दर्शन संविधान के वर्चस्व, कानून के शासन, शक्तियों के पृथक्करण, न्यायिक समीक्षा, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, और राष्ट्र की एकता और अखंडता, स्वतंत्रता और व्यक्ति की गरिमा पर आधारित है।'

हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं। इसी महीने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की तुलना में विधायिका की शक्तियों का मुद्दा उठाया था। उन्होंने संसद के कामों में सुप्रीम कोर्ट के 'हस्तक्षेप' पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा था कि संसद कानून बनाती है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। उन्होंने पूछा था कि क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून तभी कानून होगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी।

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उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा था- 'क्या हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं', इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा। केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन इसकी मूल संरचना में नहीं।

धनखड़ ने कहा था कि 1973 में एक बहुत गलत परंपरा शुरू हुई। उन्होंने कहा कि 'केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने मूल संरचना का सिद्धांत दिया कि संसद संविधान संशोधन कर सकती है, लेकिन इसकी मूल संरचना को नहीं। कोर्ट को सम्मान के साथ कहना चाहता हूँ कि इससे मैं सहमत नहीं।' 

हाल ही में कॉलेजियम, न्यायपालिका और सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ लगातार ऐसे सार्वजनिक बयान देने के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका यानी पीआईएल दायर की गई है। बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अहमद आब्दी के माध्यम से यह याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा गया है कि जिम्मेदार पदों पर बैठे दो व्यक्तियों के इस तरह के आचरण ने उच्चतम न्यायालय की प्रतिष्ठा को सार्वजनिक रूप से ठेस पहुँचाया है।

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