समलैंगिक विवाह कई सालों से अंतहीन बहस का हिस्सा रहा है। समलैंगिक विवाह के समर्थकों का कहना है कि एक ही लिंग के दो लोगों के बीच संबंध और विवाह स्वाभाविक और सामान्य है। इन समर्थकों का मानना है कि कोई भी व्यक्ति समलैंगिक होने का विकल्प नहीं चुनता है, बल्कि इस तरह पैदा होता है। समर्थकों का यह भी कहना है कि समलैंगिक जोड़े, शादी करने को लेकर विपरीत लिंग वालों के ही समान हैं।
जितने लोग इसका समर्थन कर रहे उससे कहीं ज्यादा लोग समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध भी कर रहे हैं। विरोध करने वाले लोग धार्मिक मान्यताओं सहित कई और आधार पर विरोध कर रहे हैं। उनका मानना है कि इस तरह के विवाह में बच्चे कैसे होंगे, और ऐसे घरों में रहने वाले बच्चों पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
भारत के सुप्रीम कोर्ट में सेम सेक्स मैरिज को लेकर बहस चल रही है। सरकार सहित तमाम धार्मिक संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। विरोध का आधार परिवार नामक इकाई और लिंग निर्धारण करने के तरीकों को बनाया गया है। विरोध में सरकार की तरफ से एक और तर्क दिया जा रहा है कि किसी भी मसले पर कानून बनाने का अधिकार न्यायपालिका के बजाए विधायिका के पास हों।
हालांकि, दुनिया भर में अभी भी ऐसे राष्ट्र हैं जिन्होंने समलैंगिक विवाह पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। ये प्रतिबंध कितने कड़े हैं इसको इस बात से भी समझा जा सकता है कई देशों में समलैंगिक शादियों को मान्यता दिलाने के लिए शादी समारोह का आयोजन भी किया जाता है, उसके बाद भी इन्हें कानूनी रूप से मान्यता नहीं दी जाती है।
दुनिया बर में अभी तक केवल चौबीस देश हैं, जिन्होंने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता दी हुई है। अर्जेंटीना, ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, न्यूजीलैंड, बेल्जियम ब्राजील, कनाड़ा, कोलंबिया, डेनमार्क, फिनलैंड, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, पुर्तगाल,स्पेन, अमेरिका, जैसे देशों ने अपने यहां समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान की हुई है।
समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाला सबसे पहला देश नीदरलैंड है जिसने 2001 में ही अपने यहां इस तरह के विवाह को मान्यता प्रदान कर दी थी। नीदरलैंड से शुरुआत होने के बाद बेल्जियम(2003), स्पेन, कनाडा(2005), दक्षिण अफ्रीका (2006) नॉर्वे, स्वीडन (2009), पुर्तगाल, आइसलैंड, अर्जेंटीना(2010) जैसे देशों ने समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान की। इसके बाद ब्राजील, फ्रांस (2013), अमेरिका (2015) जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया (2017) जैसे देशों ने इसे अपने यहां कानूनी रूप से वैधता प्रदान की।
हालांकि 2014 में यूनाइटेड किंगडम ने भी इसको मान्यता प्रदान की लेकिन शादी के तौर पर नहीं बल्कि सिविल यूनियन के तौर पर। यही हाल मेक्सिको का भी है जिसने अपने यहां सिविल यूनियन के तौर पर मान्यता प्रदान की हुई है। मैक्सिको में विवाह संबधी कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है, इस कारण वहां कोई केंद्रीय कानून होने की बजाए राज्यों के कानून हैं। और अब तक 12 राज्य समलैंगिक विवाह को मान्यता प्रदान कर चुके हैं।
विवाह के मसले पर ज्यादातर देशों में धर्म एक प्रमुख रोल अदा करता है, जिसकी वजह से समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने के मसले पर इसका तीखा विरोध झेलना पड़ता है। इसलिए कई बार सरकारें पीछे भी हट जाती हैं।
भारत में हो रही सुनवाई में भी कई धार्मिक संस्थाओं ने इस पर आपत्ति जताई है। अब देखना ये है कि ये बहस कहां रुकती है। भारत प्रगतिशीलता की तरफ एक कदम आगे बढ़ाता है या फिर पुरातनपंथी विचारों से चिपके रहने की आदत का शिकार होता है।