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लैटरल एंट्रीः सरकार के झुकते ही अखिलेश ने आंदोलन वापस लिया, राहुल ने क्या कहा

लैटरल एंट्रीः सरकार के झुकते ही अखिलेश ने आंदोलन वापस लिया, राहुल ने क्या कहा

लैटरल एंट्री के मुद्दे पर मोदी सरकार आरक्षण ठिकाने लगाते हुए पकड़ी गई। यह विपक्ष का दबाव था, जो रंग लाया। हालांकि कांग्रेस ने और सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सबसे पहले इस मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और नेता विपक्ष राहुल गांधी ने इस पर लगातार दो दिन बयान दिए। उसके बाद एनडीए के सहयोगी दलों जेडीयू और चिराग पासवान की एलजेपी की नींद खुली और उन्होंने भी विरोध कर दिया। अब जबकि सरकार ने लैटरल एंट्री पर यूटर्न ले लिया है तो अखिलेश ने अपना 2 अक्टूबर से शुरू होने वाला आंदोलन भी वापस ले लिया है।

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने मंगलवार को नौकरशाही में लैटरल एंट्री के ताजा विज्ञापन को वापस लेने पर भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर तंज करते हुए कहा कि उसने 'पीडीए' की एकता के आगे घुटने टेक दिए। "पीडीए" का अर्थ पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक" है। उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने यह भी घोषणा की कि लैटरल एंट्री भर्ती के खिलाफ 2 अक्टूबर से शुरू होने वाला सपा का आंदोलन वापस ले लिया गया है।

अखिलेश यादव ने कहा, "आरक्षण को खारिज कर यूपीएससी में लेटरल एंट्री के पिछले दरवाजे से नियुक्तियां करने की साजिश आखिरकार पीडीए की एकता के आगे झुक गई है। सरकार को अब यह फैसला भी वापस लेना पड़ा है।"

अखिलेश ने कहा- भाजपा की साजिश अब कामयाब नहीं हो पा रही है, ये PDA में आए जागरण और चेतना की बहुत बड़ी जीत है। इन परिस्थितियों में समाजवादी पार्टी ‘लेटरल भर्ती’ के ख़िलाफ़ 2 अक्टूबर से शुरू होनेवाले आंदोलन के आह्वान को स्थगित करती है, साथ ही ये संकल्प लेती है कि भविष्य में भी ऐसी किसी चाल को कामयाब नहीं होने देगी व पुरज़ोर तरीके से इसका निर्णायक विरोध करेगी। जिस तरह से जनता ने हमारे 2 अक्टूबर के आंदोलन के लिए जुड़ना शुरू कर दिया था, ये उस एकजुटता की भी जीत है। लेटरल एंट्री ने भाजपा का आरक्षण विरोधी चेहरा उजागर कर दिया है।

नेता विपक्ष का बयान

नेता विपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने सरकार के यूटर्न पर कहा- संविधान और आरक्षण व्यवस्था की हम हर कीमत पर रक्षा करेंगे। भाजपा की ‘लैटरल एंट्री’ जैसी साजिशों को हम हर हाल में नाकाम कर के दिखाएंगे। मैं एक बार फिर कह रहा हूं - 50% आरक्षण सीमा को तोड़ कर हम जातिगत गिनती के आधार पर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करेंगे।

शनिवार 17 अगस्त को, यूपीएससी ने लैटरल एंट्री के माध्यम से 45 संयुक्त सचिवों, निदेशकों और उप सचिवों की भर्ती के लिए एक विज्ञापन जारी किया, जिसे सरकारी विभागों में विशेषज्ञों की नियुक्ति कहा जाता है। यह नियुक्तियां बिना आरक्षण लागू किए और बिना आईएएस हुए बाहर से प्राइवेट लोगों की होती है। विवाद का मुद्दा भी यही है। इस फैसले की विपक्षी दलों ने आलोचना की। विपक्ष का ऐतराज इसी बात पर था कि इससे ओबीसी, एससी और एसटी के आरक्षण अधिकार कमजोर हो गए हैं।

सरकार ने मंगलवार को यह घोषणा वापस ले ली। पीएमओ में मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने यूपीएससी चेयरमैन को पत्र लिखा कि लैटरल एंट्री के विज्ञापन वापस ले लिया जाए। इसके साथ ही डॉ जितेंद्र सिंह ने पीएम मोदी का महिमामंडन करते हुए उन्हें आरक्षण का रक्षक और चैंपियन बताया। हालांकि भाजपा पहले यह कहकर ऐसी नियुक्तियों का समर्थन कर रही थी कि यह प्रस्ताव 2005 में कांग्रेस लाई थी। लेकिन भाजपा यह सबूत पेश नहीं कर पाई कि क्या इसे कांग्रेस ने लागू कर दिया था। दरअसल, इसे लागू भी मोदी सरकार ने 2018 में किया। अभी तक केंद्र में 57 अधिकारी लैटरल एंट्री से आकर काम कर रहे हैं। जब ये नियुक्तियां हुई थीं तो उस समय भाजपा के पास अपने दम पर पूर्ण बहुमत था। लेकिन अब मोदी सरकार बैसाखियों पर है। 

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