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इंदौर सर्राफा की जलेबी-रबड़ी और दहीबड़े की मुरीद थीं लता

इंदौर सर्राफा की जलेबी-रबड़ी और दहीबड़े की मुरीद थीं लता

लता मंगेशकर इंदौर में पैदा हुई थीं। वहां खान-पान उन्हें बहुत पसंद था। उन्हें और क्या पसंद था, जानिए इस रिपोर्ट से

सुरों की देवी लता मंगेशकर के जीवन का सफर अंततः आज थम गया। मध्य प्रदेश के इंदौर शहर में जन्मी और पली-बढ़ीं दीदी की अनेक यादें इंदौर शहर से जुड़ी हुई हैं। क्रूर कोरोना की वजह से दुःखद निधन की सूचना से उनका अपना शहर भी शोक में डूब गया। दीदी बहुत कम इंदौर आ पाती थीं, लेकिन जब आतीं थीं तो इंदौर के सर्राफा की जलेबी-रबड़ी और दही बड़ा उन्हें जरूर परोसा जाता था। बताते हैं दीदी को यह बहुत पसंद था।

लता मंगेशकर का जन्म इंदौर के सिख मोहल्ला क्षेत्र में 29 सितंबर 1929 को हुआ था। इंदौर डिस्ट्रिक्ट कोर्ट से लगी गली में उनकी नानी का घर था। इसी घर से उनकी संगीत की शिक्षा का आगाज़ हुआ था। बाद में लता जी अपने पिता और परिवार के साथ मुंबई चली गई थीं।बताया गया है वे जब भी इंदौर आयीं, यहां से जुड़े बचपन को किसी ना किसी रूप में याद किया। हालांकि अत्याधिक व्यस्तताओं और बढ़ती उम्र की वजह से काफी वक्त से उनका इंदौर आना नहीं हो पाया था। 

इंदौर का कोई पुराना परिचित यदि मुंबई पहुंचता और मेल-मुलाकात का संयोग बनता तो वे इंदौर के हालचाल मन की गहराइयों से लिया करतीं थीं।

लता के पुराने घर आज फिर कैमरों में हुए कैदलता मंगेशकर के निधन की सूचना पहुंचते ही मीडिया के लोग इंदौर स्थित उनके पुराने घर को अपने कैमरों में कैद करने पहुंचे। लता मंगेशकर के इंदौर के घर के मालिक अब नितिन और स्नेहल मेहता हैं। मेहता दंपत्ति ने बलवंत सिंह नामक शख्स से घर को खरीदा था। उन्हें जब पता चला था कि घर सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर का है तो उन्हें ऊंचे दाम चुकाये थे।वर्तमान में मेहता परिवार ने घर के बाहरी हिस्से में कपड़े का शोरूम खोल लिया है। उन्होंने दुकान के एक हिस्से में लताजी का म्यूरल बनवाया है। लता के छोटे भाई हृदयनाथ मंगेशकर भी यहां आ चुके हैं। वे इस घर को सुरों के मंदिर की तरह पूजा करते हैं।

बताया जाता रहा है कि सुरों की साधना के आरंभिक दौर में किसी ने उनसे कह दिया था कि मिर्च खाने से आवाज ज्यादा सुरीली होती है। इसलिए अपनी आवाज को और सुरीली और मीठा बनाने के लिए वो रोज ढेर सारी हरी मिर्च खाती थीं, खासकर तीखी कोल्हापुरी मिर्च।

लता दीदी को जलेबी कुछ ज्यादा ही पसंद थी। इतना ही नहीं, उन्हें इंदौर के सराफा की खाऊ गली के गुलाब जामुन, रबड़ी और दही बडे़ बहुत पसंद थे। चाट गली और सराफा में उनका आना-जाना लगा रहता था।भय्यू महाराज के आश्रम आई थीं लताजीलता मंगेशकर का संत स्वर्गीय भय्यू महाराज से आत्मीय रिश्ता था। इंदौर स्थित सूर्योदय आश्रम के पुराने सेवादारों के मुताबिक लताजी महाराज द्वारा गरीबों के हितों में किए गए कामों व महाराष्ट्र में उनके आश्रमों में संचालित गतिविधियों को लेकर काफी प्रभावित थीं।

इंदौर में लता मंगेशकर के दुर्लभ गानों को उनके सबसे बड़े प्रशंसक सुमन चौरसिया ने बड़े सहेज कर रखा है। उनके पास लता के गाए 7000 से अधिक गीतों का ग्रामोफोन संग्रह है।

त्यौहारों, जन्म दिवस व खास मौकों पर भय्यू महाराज से उनकी कई बार फोन पर बातें भी हुईं। 1990 के दशक में एक बार लताजी महाराज के इंदौर आश्रम पर आई थी और करीब आधा घंटा रही।यहां लता जी के हिंदी के अलावा अन्य 30 भाषाओं में भी कई गीत मौजूद हैं जो लता जी के लिए भी दुर्लभ थे। ऐसा मौका कई बार आया जब खुद लता मंगेशकर को अपने गानों का रिकार्ड सुमन चौरसिया से मंगाना पड़ा था।सैकड़ों की गीत गाने वाले किशोर दा भी मप्र से थे।

सुरों की मलिका लता मंगेशकर के अलावा अपने सुरों और बहुमुखी प्रतिभा के लिए दुनिया भर में करोड़ों प्रशंसक पैदा करने वाले किशोर कुमार को मध्य प्रदेश ने ही बॉलीवुड को दिया था।किशोर कुमार और लता मंगेशकर ने न भुलाने वाले सैकड़ों गीत साथ-साथ गाये। किशोर कुमार इंदौर से लगे खंडवा शहर में पैदा हुआ। वहां पले-बढ़े। इंदौर में शिक्षा-दीक्षा हासिल की।किशोर कुमार की हसरत थी कि वे गायन से संन्यास लेकर अपना शेष जीवन खंडवा में गुजारेंगे। वे कहा करते थे- ‘दूध जलेबी खाएंगे, खंडवा में बस जाएंगे।’ लेकिन उनकी यह इच्छा अधूरी ही रह गई और वे बॉलीवुड से संन्यास लेने से पहले ही 1987 में दुनिया छोड़ गए थे।

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