कोरोना संकट में आलोचनाओं को दबाने का मोदी का प्रयास अक्षम्य है: लांसेट
मेडिकल जर्नल लांसेट ने कोरोना से निपटने के प्रधानमंत्री मोदी के प्रयासों को लेकर तीखा आलोचनात्मक संपादकीय छापा है। पत्रिका ने लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी की सरकार कोरोना महामारी से निपटने से ज़्यादा आलोचनाओं को दबाने में लगी हुई दिखी। पत्रिका ने साफ़ तौर पर उस मामले का ज़िक्र किया है जिसमें कोरोना की स्थिति से निपटने के लिए कई लोगों ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी की आलोचना की थी जिसे सरकार ने ट्विटर से हटवा दिया था।
पत्रिका ने लिखा है, 'कई बार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार महामारी को नियंत्रित करने की कोशिश करने की तुलना में ट्विटर पर आलोचना को हटाने के लिए अधिक इरादे प्रकट करती दिखी है।'
संपादकीय में देश में कोरोना के हालात पर भी टिप्पणी की गई है। पत्रिका ने लिखा है कि 4 मई तक कोरोना के 2 करोड़ से अधिक मामले दर्ज किए गए थे। इसमें 2 लाख 22 हज़ार से अधिक मौतें हुई हैं। संपादकीय में द इंस्टीट्यूट फ़ॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन के अनुमान का ज़िक्र किया गया है जिसमें गया है कि भारत में 1 अगस्त तक कोरोना से 10 लाख लोगों की मौत होगी।
इसने देश की स्वास्थ्य व्यवस्था के मौजूदा हालात का भी ज़िक्र किया है। इसने लिखा है कि 'अस्पताल भरे हुए हैं, और स्वास्थ्य कार्यकर्ता थक गए हैं और वे संक्रमित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर हताशा दिख रही है (डॉक्टरों और जनता), जो मेडिकल ऑक्सीजन, अस्पताल के बिस्तर और अन्य ज़रूरतों की मांग कर रहे हैं।'
कुंभ मेले और पाँच राज्यों में चुनाव के दौरान प्रचार रैलियों में कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियाँ उड़ाए जाने का ज़िक्र किया है। पत्रिका ने लिखा है, 'सुपरस्प्रेडर घटनाओं के जोखिमों के बारे में चेतावनी के बावजूद सरकार ने धार्मिक उत्सवों को आगे बढ़ने की अनुमति दी, जिसमें देश भर के लाखों लोग शामिल हुए। इसके साथ-साथ विशाल राजनीतिक रैलियाँ हुईं जिसमें कोरोना को नियंत्रित करने के उपायों की पालना नहीं हुई।'
पत्रिका ने यह भी कहा है कि जब कोरोना की पहली लहर धीमी पड़ गई और कोरोना के मामले कम आने लगे तो ढिलाई बरती गई। ऐसा तब हुआ जब कोरोना की दूसरी लहर की चेतावनी दी गई और नये स्ट्रेन के मामले सामने आने लगे थे।
संपादकीय में यह भी लिखा गया है कि अपनाए गए मॉडल से लगता है कि ग़लती से यह मान बैठा गया कि भारत हर्ड इम्युनिटी के स्तर पर पहुँच गया है और इसलिए कोरोना के ख़िलाफ़ तैयारी नहीं की गई। जबकि हालात ये थे कि इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च ने सीरो सर्वे से जनवरी में बताया था कि सिर्फ़ 21 फ़ीसदी जनसंख्या कोरोना के ख़िलाफ़ एंटी बॉडी विकसित कर पाई थी।
दूसरी लहर से पहले केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्ष वर्धन के बयान का भी ज़िक्र किया गया है और यह बताया गया है कि कैसे उन्होंने कोरोना संक्रमण की स्थिति का ग़लत आकलन किया। लांसेट ने संपादकीय में लिखा है, 'मार्च के शुरू में ही कोविड-19 के मामलों की दूसरी लहर शुरू होने से पहले भारत के स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने घोषणा की थी कि भारत महामारी के एंडगेम में था।'
भारत के टीकाकरण कार्यक्रम की भी तीखी आलोचना की जा रही है। लांसेट ने लिखा है कि यह विश्वास कि कोरोना कम हो रहा है, इसने भारत के कोरोना टीकाकरण अभियान की शुरुआत को धीमा कर दिया है। इसने कहा है कि 2% से भी कम आबादी का टीकाकरण किया गया है। संपादकीय में कहा गया है कि सरकार ने राज्यों के साथ चर्चा किए बिना नीति में अचानक बदलाव किया, जिससे बड़े पैमाने पर भ्रम पैदा हुआ। पत्रिका ने संपादकीय में सुझाव दिया है कि सरकार को स्थानीय और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल केंद्रों के साथ काम करना चाहिए जो अपने समुदायों को बेहतर जानते हैं और टीका के लिए एक समान वितरण प्रणाली बनाई जानी चाहिए।