अमेरिका के मंदिर में दलितों से ज़बरन काम कराने, श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के आरोप
अमेरिका के न्यू जर्सी में एक हिन्दू मंदिर में मरम्मत व रखरखाव का काम इस आरोप पर रोक दिया गया कि वहां श्रम क़ानूनों का उल्लंघन हुआ, ज़बरन काम कराया गया, कम पैसे दिए गए, भारत से लोगों को मानव तस्करी के जरिए ले जाया गया। एक मजदूर के मारे जाने की खबर भी है। पीड़ित लोग दलित हैं।
स्थानीय ऑनलाइन अख़बार एनजे.कॉम का कहना है कि न्यू जर्सी के इस बोचासनवासी अक्षर पुरुषोत्तम स्वामीनारायण संस्था के मंदिर में राजस्थान से ले जाए गए मजदूरों को रोज़ाना 13 घंटे काम कराया गया, उन्हें सिर्फ 1.20 डॉलर यानी लगभग 85 रुपए प्रतिदिन की दिहाड़ी दी गई। रॉबिन्सविल के स्थानीय प्रशासन ने काम रुकवा दिया है और मुकदमा दायर कर दिया है।
क्या हैं आरोप?
दायर मुक़दमे में कहा गया है कि राजस्थान से 200 लोगों को धार्मिक अप्रवास के तहत अमेरिका ले जाया गया, उन्हें भारत में जितने पैसे देने की बात कही गई, उतना नहीं दिया गया, उनसे ज़बरन काम कराया गया।
'द टाइम' पत्रिका का दावा है कि इन कामगारों को वीज़ा इंटरव्यू देने से पहले यह सिखाया गया कि वे यह कहें कि अमेरिका में पत्थरों पर नक्काशी करने जा रहे हैं। लेकिन उनसे सड़क बनवाई गई, पत्थर तुड़वाया गया, पत्थर को रसायन में डुबोने को कहा गया और दूसरे तरह के कठिन काम कराए गए।
मुक़दमे में कहा गया है कि इन लोगों के अमेरिका पहुँचते ही उनका पासपोर्ट जब्त कर लिया गया, उन्हें बंद कमरों में कड़ी सुरक्षा के बीच रखा गया, जिससे बाहर वे नहीं निकल सकते थे।
श्रम क़ानूनों का उल्लंघन
मजदूरों को सुबह 6.30 से शाम 7.30 बजे तक काम कराया जाता था,बीच में सिर्फ छोड़ी देर का समय मिलता था खाना खाने के लिए। इसके अलावा उन्हें 40 दिनों तक लगातार काम करने के बाद एक दिन की छुट्टी दी गई।
इस पूरे काम के लिए उन्हें सिर्फ 425 डॉलर दिए गए, उसमें भी 50 डॉलर नकद और शेष पैसे बैंक में डाल दिए गए। इन मजदूरों को ये पैसे भी पूरे नहीं मिलेंगे, क्योंकि उसका एक बड़ा हिस्सा किस न किसी ज़ुर्माने में ले लिया जाएगा।
मुकेश कुमार पर 125 डॉलरका जुर्माना लगा दिया सिर्फ हेलमेट नहीं पहनने के कारण, कई लोगों पर मंदिर परिसर में सिगरेट पीने की वजह से जुर्माना लगा दिया गया।
मुकदमे में कहा गया है कि इन मजदूरों को अमेरिकी श्रम क़ानूनों के तहत न्यूनतम मजदूरी नहीं दी गई, उन्हें रसायन में पत्थर डालने और भारी पत्थर तोड़ने जैसे ख़तरनाक काम दिए गए। इन मजदूरों को समझा दिया गया था कि यदि उन्होंने मंदिर परिसर छोड़ा या बाहर निकले तो उनके साथ बुरा अंजाम हो सकता है।