हिंसा को राजनीति का स्वभाव बनाने के ख़तरे
भारत के लोगों को रिटेनहॉउस नाम याद रखना चाहिए। आपको याद होगा कि पिछले हफ्ते हमने अमेरिका में काइल रिटेनहॉउस नामक श्वेत अमेरिकी किशोर के मुक़दमे की चर्चा की थी। रिटेनहॉउस ने विस्कॉन्सिन के केनोशा नामक शहर में पिछले साल नस्लभेद के ख़िलाफ़ हो रहे विरोध प्रदर्शन पर गोली चलाकर दो लोगों को मार डाला था।
उसे वहाँ की अदालत ने हर आरोप से बरी कर दिया। मुक़दमे के दौरान और उसके बाद रिटेनहॉउस के लिए चंदा इकठ्ठा करने से लेकर उसका महिमामंडन करने के लिए अनेक श्वेत अमेरिकी सक्रिय हो गए।
हिंसा की वकालत
उन्होंने रिटेनहॉउस को ऐसा नायक बतलाया जिसकी अमेरिका को ज़रूरत है। उसकी हिंसा की वकालत यह कहकर की गई कि हर किसी को समुदाय और सार्वजनिक और निजी संपत्ति की रक्षा का अधिकार है। मुक़दमे के बाद रिपब्लिकन पार्टी ने रिटेनहॉउस को अपना लिया है।
ट्रम्प मिले, खिंचाई तसवीर
रिपब्लिकन पार्टी के नेता डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने निवास पर रिटेनहॉउस के साथ मुस्कुराते हुए तसवीर खिंचाकर उसे प्रसारित किया। लेकिन ट्रम्प से कई कदम आगे जाकर अमेरिकी कांग्रेस के तीन रिपब्लिकन सदस्यों ने कैपिटल हिल के अपने दफ़्तर में उसे इंटर्नशिप देने का प्रस्ताव रखा है।
इसकी आलोचना हो ही रही थी कि जॉर्जिया की रिपब्लिकन प्रतिनिधि मार्जरी टेलर ग्रीन ने अमेरिकी कांग्रेस में रिटेनहॉउस को केनोशा के लोगों की रक्षा के लिए स्वर्ण पदक देने का प्रस्ताव लाने का एलान कर दिया।
रिटेनहॉउस को रिपब्लिकन पार्टी के आगामी सम्मलेन को सम्बोधित करने के लिए भी बुलाया गया है।
रिटेनहॉउस के पक्ष में दलील
साफ़ है कि रिपब्लिकन पार्टी ने रिटेनहॉउस को अपना चेहरा बनाने का फैसला कर लिया है। रिटेनहॉउस ने हत्या से इनकार नहीं किया है। और उसका गुणगान करनेवाले भी हत्या से इनकार नहीं करना चाहते। बल्कि वे इसे श्वेत लोगों और अमेरिका की हिफाजत और रक्षा के लिए ज़रूरी और अनिवार्य बतला रहे हैं।
रिटेनहॉउस उनके हिसाब से एक आदर्श अमेरिकी नौजवान है। अमेरिकी राजनीति को गौर से देखनेवाले चेतावनी दे रहे हैं कि इसे अकेला मामला नहीं मानना चाहिए।
ऐसे लोग जिन्होंने नस्लभेद विरोधी प्रदर्शन पर बंदूक तानी, रिपब्लिकन पार्टी के सम्मेलनों में बोलने को बुलाए गए हैं और आगे वे चुनाव में उसके उम्मीदवार भी बनाए जा रहे हैं।
रिपब्लिकन नेता दंगाइयों के साथ!
जिन लोगों ने पिछले राष्ट्रपति चुनाव के बाद कैपिटल हिल पर हिंसा की थी और उसकी वजह से जेल में हैं, रिपब्लिकन नेता उनसे मिलने जेल जा रहे हैं। इन हिंसक लोगों के पक्ष में ट्रम्प और रिपब्लिकन पार्टी के दूसरे नेता बयान दे रहे हैं। एक हमलावर के, जो हिंसा करते हुए मारा गया, जन्मदिन पर ट्रम्प ने उसे श्रद्धांजलि दी है।
जिन रिपब्लिकन नेताओं ने रिटेनहॉउस को पुरस्कृत करने का प्रस्ताव रखा है, उनमें से एक पॉल गोसार ने एक वीडियो बनाया और प्रसारित किया जिसमें वह कांग्रेस की डेमोक्रेट सदस्य एलेक्जांड्रिया ओकासियो कोटेज की हत्या करता दीख रहा है और राष्ट्रपति बाइडेन पर हमला कर रहा है। जाहिर है यह एक कार्टून था। लेकिन यह कोई मज़ाक की बात न थी कि एक कांग्रेस सदस्य दूसरे की हत्या का अपना इरादा इस तरह जाहिर करे।
कांग्रेस में जब डेमोक्रेट सदस्यों की तरफ से गोसार की भर्त्सना का प्रस्ताव लाया गया तो दो सदस्यों को छोड़कर किसी और रिपब्लिकन ने प्रस्ताव के पक्ष में वोट नहीं दिया। इस तरह के हिंसा के प्रचार के साथ दूसरे घटिया तरीके भी आजमाए जा रहे हैं।
'सुसाइड बॉम्बर' कहा
कॉलरेडो के रिपब्लिकन प्रतिनिधि ने इल्हान ओमर को 'सुसाइड बॉम्बर' कहकर एक मज़ाक किया। ओमर ने ठीक ही कहा कि यह कोई हँसी की बात नहीं है। यह उनके ख़िलाफ़ हिंसा का ही उकसावा है। एक मुसलमान कांग्रेस सदस्य को 'सुसाइड बॉम्बर' कहा जा सकता है और इस पर कोई लज्जा या विक्षोभ रिपब्लिकन पार्टी में नहीं दीखता, यह अमेरिकी राजनीति के लिए शुभ सूचना नहीं है।
कोटेज और डेमोक्रेटिक पार्टी के सदस्यों ने रिपब्लिकन पार्टी के बहुमत द्वारा हिंसा के ऐसे समर्थन पर चिंता जाहिर की है।
राजनीति में हिंसा भरने की कोशिश
अमेरिकी राजनीति में हिंसा भरी जा रही है। आंदोलन में शामिल लोगों की हत्या करनेवाले रिटेनहॉउस को नया युवा नेता बनाना और कांग्रेस के सदस्यों के द्वारा कांग्रेस के दूसरे सदस्यों के ख़िलाफ़ हिंसा का खुला प्रचार अलग-अलग नहीं हैं। वे एक योजना के अंग ही हैं। यह योजना है इस तरह की हिंसा को राष्ट्रवादी आवश्यकता में बदल देना। जब जनप्रतिनिधि खुद हिंसा का प्रचार करेंगे या हिंसा करने का इरादा जाहिर करेंगे तो समाज में हिंसा की जगह का विस्तार ही होगा।
बतलाया जा रहा है कि जन प्रतिनिधियों को मिलनेवाली हिंसा की धमकियों की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। उनकी सुरक्षा के लिए चौकसी भी बढ़ानी पड़ी है। इसका असर समाज के दूसरे हिस्सों पर भी पड़ा है। अलग-अलग जगह हिंसा का प्रचार बेधड़क किया जा रहा है। यह किनके ख़िलाफ़ है, अंदाज करना मुश्किल नहीं।
डेमोक्रेट, काले लोगों और मुसलमानों, आप्रवासियों को यह हिंसा प्रचार निशाना बनाता है। जिन लोगों ने यह सोचा था कि ट्रम्प की पराजय के बाद रिपब्लिकन पार्टी खुली घृणा और हिंसा की राजनीतिक भाषा पर विचार करेगी, वे निराश हुए हैं। संभवतः रिपब्लिकन पार्टी ने यह समझ लिया है कि ट्रम्प ने श्वेत राष्ट्रवादियों के भीतर सोई जिस हिंसा को जगा दिया है, वही उनकी ताकत हो सकती है। इसलिए वह ऐसे नेताओं को बढ़ावा दे रही है जो हिंसा का प्रचार करने में किसी तरह का संकोच नहीं करते।
हिंसा करनेवालों को उनकी जनता पुरस्कृत करती है, इसके अनेक उदाहरण अमेरिका और बाहर भी हैं। इसलिए हिंसा के प्रलोभन को ठुकराना आसान नहीं है।
विभाजन को गहरा करने में कामयाब
अमेरिका में हिंसा को उकसावा देनेवाले अभी केंद्र की सत्ता में नहीं हैं। लेकिन वे कई राज्यों में सत्ता में हैं। वे कांग्रेस में भी अच्छी-खासी संख्या में हैं। वे नीतियों को प्रभावित करने की हालत में हैं। उससे भी अधिक वे अमेरिकी समाज में विभाजन को और गहरा करने में कामयाब हो रहे हैं।
भारत में भी ऐसे ही हालात
भारत के लोग जब यह सब पढ़ते हैं तो अपने देश से अमेरिका की तुलना करने लगते हैं। भारत में भी राजनीति और समाज में हिंसा भरी जा रही है। वह भी एक ही पार्टी कर रही है। मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा का प्रचार करनेवाले को उसका पुरस्कार बीजेपी में मिलना निश्चित है।
बीजेपी से सवाल
हत्यारों को माला पहनाने, उनके साथ तसवीर खिंचवाने से लेकर हिंसा के प्रचारकों को पार्टी में प्रवक्ता से लेकर दूसरे पद देकर सम्मानित करना बीजेपी के लिए सामान्य बात हो गई है। संघीय सरकार के मंत्री 'गद्दारों' को गोली मारने का आह्वान करते हैं, गृह मंत्री आंदोलनकारी महिलाओं को ज़ोर का करेंट देने के लिए मतदातों को उकसाते हैं, एक मुख्यमंत्री अपने समर्थकों से लाठी उठाने को कहता है। प्रत्यक्ष, अप्रत्यक्ष हिंसा का प्रचार और उकसावा बीजेपी की राजनीति की भाषा बन गया है।
अभी त्रिपुरा में संपन्न हुए स्थानीय निकायों के चुनाव में वहाँ के सत्ताधारी दल की तरफ से बड़े पैमाने पर हिंसा की गई है। चुनाव आयोग या सरकार ने इसपर ध्यान देना ज़रूरी नहीं समझा है।
भारतीय समाज में हिंसा की स्वीकृति और उसके प्रति आदर बढ़ता जा रहा है। यह मुसलमानों, ईसाइयों और दलितों के ख़िलाफ़ है। खुले हमलों के अलावा अलग-अलग माध्यमों से इसका प्रचार निःसंकोच किया जा रहा है। हमारी संसद में बहुमत अभी इसी राजनीति को हासिल है। अधिकतर राज्य की विधान सभाओं में भी।
उनसे उम्मीद करना कि वे हिंसा का विरोध करेंगी, बेमानी है। फिर यह करेगा कौन? हिंसा को राजनीतिक अनिवार्यता बनाने के ख़िलाफ़ आवाज़ कहाँ से उठेगी?