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क्या कूनो में चीतों को बसाने का फ़ैसला 'नोटबंदी जैसा' है?

क्या कूनो में चीतों को बसाने का फ़ैसला 'नोटबंदी जैसा' है?

कूनो राष्ट्रीय वन्य अभ्यारण्य में एक के बाद एक चीतों की मौत क्यों हो रही है? आख़िर गड़बड़ी कहाँ हो रही है कि नामीबिया से लाए गए चीते मौत के मुँह में समाते जा रहे हैं?

मध्य प्रदेश के पालपुर कूनो राष्ट्रीय वन्य अभ्यारण्य में एक के बाद एक 8 चीतों की मौतों की बड़ी वजह ‘नौकरशाहों में टकराव एवं अहम की लड़ाई’ और समुचित तरीक़े से इनकी देखरेख में कमियाँ तो नहीं हैं? ये और ऐसे अनेक सवाल चीता विशेषज्ञों से बातचीत एवं उनकी प्रतिक्रियाओं से उभरकर सामने आये हैं। एक एक्सपर्ट ने तो दो टूक कहा है, ‘कूनो में चीतों को बसाने का निर्णय नोटंबदी जैसा फ़ैसला है।’

बता दें कि कूनो में बीते चार दिनों में दो नर चीतों- तेजस और सूरज की मौतें हुई हैं। दोनों की ही गर्दन पर घाव के निशान मिले हैं। बीती 14 जुलाई को मृत मिले सूरज की लोकेशन तीन दिनों तक एक ही जगह होने की वजह से इसकी सरगर्मी से तलाश की जाती रही थी। बाद में यह मृत मिला था। मृत मिले सूरज की बॉडी में कीड़े पड़ गए थे। इसके मरा हुआ मिलने के दो दिन पहले तेजस की मौत भी ऐसे ही हुई थी।

पीएम मोदी ने देश को समर्पित किये थे चीते

एक बड़े जलसे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन 17 सितंबर 2022 को नामीबिया के जंगलों से लाये गये 8 चीतों को कूनो पार्क में छोड़ा गया था। फरवरी 2023 में 12 और चीते दक्षिण अफ्रीका से कूनो आये थे। कुल 20 चीतों के अलावा चार शावकों का जन्म अभ्यारण्य में हुआ था तो प्रोजेक्ट से जुड़ी टीम, देश एवं राज्य की सरकार तथा वन्यप्राणी प्रेमियों की खुशियां दोगुनी हो गई थीं।

बीते चार महीनों से कूनो में चीतों की मौत की सिलसिलेवार ख़बरें आ रही हैं। इसकी वजह से भोपाल से लेकर दिल्ली तक हड़कंप मचा हुआ है। दरअसल, नामीबिया और अफ्रीका से लाये गये 20 चीतों में से 5 की मौतें हो चुकी हैं। जबकि अभ्यारण्य में जन्म लेने वाले चार में से तीन शावक मर चुके हैं।

चीता स्टीयरिंग कमेटी के चेयरमैन डॉ. राजेश गोपाल ने शनिवार शाम को ‘सत्य हिन्दी’ को बताया, 

शुक्रवार 14 जुलाई को मृत मिले चीते की गर्दन पर कॉलर आईडी के कारण घाव होने संबंधी प्रमाण मिले हैं।


राजेश गोपाल, चेयरमैन, चीता स्टीयरिंग कमेटी

लंबे वक्त तक टाइगर प्रोजेक्ट से जुड़े रहने वाले डॉ. गोपाल का कहना है, ‘वन्यप्राणियों की देखरेख एवं अनेक परियाजनाओं के संचालन के उनके अपने लंबे कालखंड में यह पहला एवं बिरला मौक़ा है, जब कॉलर आईडी से घाव और उसके बाद त्वचा संक्रमण होने का मामला हुआ है।’

डॉ. गोपाल ने कहा, ‘बीते चार दिनों में मारे गये दोनों चीतों की मौतों की वजह, इनके सेप्टीसीमिया का शिकार होना सामने आया है।’ उन्होंने कहा, ‘चूंकि 15 अन्य चीतों के गले में भी कॉलर आईडी है, लिहाजा हम चिंतित एवं सतर्क हैं।’

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘अब से एक घंटा पहले तक किसी अन्य चीते में कॉलर आईडी से चोट अथवा घाव के निशान नज़र नहीं आये हैं। हमारी टीमें प्रत्येक चीते पर नज़र रखे हुए हैं। साथ ही दक्षिण अफ्रीका के चीता विशेषज्ञों के निरंतर टच में भी हम हैं। सलाह-मशविरा हो रहा है। संक्रमण नहीं फैल पाये इसके लिए हर संभव प्रयास किए जा रहे हैं।’

दूसरी ओर भारत के चीता विशेषज्ञ, अपना नाम नहीं छापने की शर्त पर दावा कर रहे हैं, ‘हाल ही में दो चीतों की अस्वभाविक मौतों की वजह परियोजना को संभाल रहे अफसरों के अहम और स्वयं को सर्वज्ञानी मान बैठना है। देश में भी चीता विशेषज्ञ हैं, लेकिन उनसे न तो कोई सलाह ली जा रही है और न ही 70 सालों के बाद आए इन चीतों के संरक्षण-संवर्धन के लिए मदद मांगी जा रही है।’

जानकार यह भी दावा कर रहे हैं, ‘अहम की लड़ाई इस हद तक है, जिसके चलते, दिल्ली और भोपाल में किसी भी तरह का सामंजस्य ही नहीं है।’ जानकार बता रहे हैं, ‘चीतों को बाड़े से निकालने न निकालने को लेकर दिल्ली-भोपाल में मतभेद बने रहे। एक-दूसरे को लिखित में कुछ भी देने को दोनों तैयार नहीं होते हैं। विशेषज्ञों की छुट्टी कर देने से अविश्वास पनपा है। पूरे मन से कोई काम नहीं कर पा रहा है।’

भारत में चीता की पुनर्बसावट के लिए लंबे समय तक प्रयास करने और अंततः इन्हें हिन्दुस्तान लाने में अहम भूमिका अदा करने वाले चीता विशेषज्ञ एवं मध्य प्रदेश कैडर के रिटायर्ड आईएएस अफसर रंजीत सिंह ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, 

बिना देर किए वास्तविक चीता विशेषज्ञों को प्रोजेक्ट को सौंप देना चाहिए। चीता की मौतें होंगी तय है, लेकिन अस्वभाविक मौतें नहीं होनी चाहिए।


रंजीत सिंह, चीता विशेषज्ञ एवं रिटायर्ड आईएएस

उन्होंने आगे कहा, ‘प्रोजेक्ट से जुड़ी टीम को अकाउंटेबल बनाना होगा। जिम्मेदारी सुनिश्चित करनी होगी। ढुलमुल रवैये को किनारे करना होगा। एक-दूसरे के सिर ठीकरा फोड़ने की प्रवृत्ति भी छोड़नी होगी। नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका के उन विशेषज्ञों के टच में हर पल बने रहना होगा, जहां से चीते आये हैं।’

रंजीत सिंह ने यह भी कहा, ‘चीतों की पुनर्बसावट के लिए मध्य प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान के मुकुंदरा में बसावट की व्यवस्थाएँ भी अतिशीघ्र करने की आवश्यकता है।’

'विशेषज्ञों से रायशुमारी ज़रूरी'

मध्य प्रदेश वन्यप्राणी संरक्षण मंडल के सदस्य और चीता प्रोजेक्ट टास्क फोर्स से जुड़े रहे वरिष्ठ पत्रकार अभिलाष खांडेकर भी चीतों की अप्रत्याशित मौतों से चिंतित हैं। खांडेकर ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘अप्रत्याशित मौतों को रोकने के लिए तत्काल कदम उठाये जाने की ज़रूरत है। आगे अप्रत्याशित मौतें न हों, इसके लिए विशेषज्ञों से रायशुमारी के साथ ही अन्य आवश्यक कदम बिना देर किए उठा लेना उचित होगा।’ एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ‘अहम और श्रेष्ठता की कथित लड़ाई में मध्य प्रदेश की छबि पर दाग उचित नहीं होंगे।’

लंबे वक्त तक टाइम्स ऑफ इंडिया में पदस्थ रहे, सीनियर जर्नलिस्ट और वाइल्ड लाइफ विषय के एक्सपर्ट देशदीप सक्सेना की कूनो में चीतों की सिलसिलेवार मौतों को लेकर राय भिन्न है।

उन्होंने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘आनन-फानन एवं बिना पूर्व तैयारियों के चीते लाए गए। कूनो को सिंह के लिए तैयार किया गया था और सुप्रीम कोर्ट का भी आदेश सिंह को यहाँ बसाने का था। ऐसा लगता है की चीता लाने की जल्दबाज़ी में वन्यजीवन के विज्ञान की भी अनदेखी की गई।’

सक्सेना ने कहा, ‘मेरा मानना है कि चीते के भारत में विलुप्त होने के जो कारण थे, उनमें जरा भी कमी नहीं आई है  बल्कि वो और ज्यादा बढ़ गए हैं। चीते के अनुकूल जंगल भारत में हैं ही नहीं।’

सक्सेना आगे कहते हैं, ‘पालपुर कूनो अभ्यारण्य का एरिया 748 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर है। एक चीते को सर्वाइवल के लिए लगभग 100 स्क्वायर वर्ग किलोमीटर की आवश्यकता होती है। इस मान से अभ्यारण्य में 7-8 चीते रखना ही उपयुक्त था, लेकिन सरकार सारे के सारे चीते कूनो में ही रखना चाहती है। अभ्यारण्य में चीतों के अनुकूल घास के मैदानों की भी बहुत कमी है।’

मौतों को टाला जा सकता थाः झाला

जाने-माने जीव विज्ञानी और भारतीय वन्य जीव संस्थान के डीन रहे डॉ. वाई.वी. झाला ने ‘सत्य हिन्दी’ से कहा, ‘चीतों की मौतें चिंता का विषय नहीं है। परियोजना की सफलता में इसे बाधक भी नहीं माना जा सकता है, लेकिन यह बात भी पूरी तरह से सच है कि कई मौतों को टाला जा सकता था।’ झाला ने आगे कहा, ‘विशेष रूप से शावकों, नर द्वारा मारी गई मादाओं और त्वचा संक्रमण के कारण हुई पिछली दो मौतों पर टीम के अनुभवी पशु चिकित्सकों को ध्यान देना चाहिए था।’ वे तल्ख होकर कहते हैं, ‘यह सीखने का एक बहुत महंगा अनुभव रहा है, जिसे हम टाल सकते थे। वक्त रहते सजग हो जाते, अफ्रीका के विशेषज्ञों से परामर्श कर लेते तो शायद अस्वभाविक मौतें नहीं होतीं।’

झाला की राय है, ‘बोमा के चीतों को तत्काल दो स्थानों पर रख देना चाहिए। पहला कूनो है ही, दूसरा मुकुंदरा का चयन कर लिया जाना चाहिए। चीतों को बसाने के लिए चुने गए अन्य स्थानों पर भी इनकी बसावट करना ज़रूरी है, उस पर काम आरंभ किया जाए। ऐसा करेंगे तो प्रोजेक्ट की सफलता के चांस और बढ़ जायेंगे।’

झाला यह भी कह रहे हैं, ‘विलुप्त प्रजाति की पुनर्बसावट से जुड़ी इस परियाजना की सफलता के लिए आवश्यक संसाधन पर्याप्त नहीं हैं। विशेषकर जो बजट चाहिए, वह केन्द्र सरकार उपलब्ध नहीं करा पा रही है।’

‘केन्द्रीय मंत्री ने टीमें भेजने को कहा है’

चीतों की सिलसिलेवार मौतों को लेकर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने शनिवार को भोपाल में अपनी  संक्षिप्त प्रतिक्रिया में कहा, ‘कूनों में चीतों की मौत के मामले में स्वदेशी विशेषज्ञों के अलावा अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों से समीक्षा कराई जा रही है। बहुत शीघ्र टीम कूनो जाएगी।’

 - Satya Hindi

‘राजनैतिक शो के लिए बिजनेस बंद हो’

केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री के दायित्व का निर्वहन कर चुके मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और पीसीसी चीफ़ कमलनाथ तंज कसते हुए कहते हैं, ‘वन्य जीवों का उपयोग अपने राजनैतिक शो के लिए करना ठीक नहीं है। इस तरह का बिजनेस रुकना चाहिए।’

उन्होंने केन्द्र और मध्य प्रदेश की सरकार को सलाह दी, ‘प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाये बिना सभी को चीता एवं राज्य हित में अपने-अपने अहम एवं टकराव को दरकिनार करना होगा। जानकार और योग्य वैज्ञानिकों एवं पर्यावरणविदों को जोड़कर या इनसे जुड़कर चीतों की मौतों को रोकने तथा प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए आवश्यक कदम उठाना चाहिए।’

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