बीजेपी के रास्ते पर कांग्रेस: विरोधी मतलब देश विरोधी
बीजेपी ने कांग्रेस को देश विरोधी साबित करने का कभी कोई मौका नहीं छोड़ा है। कांग्रेस पर चीन से चंदा लेने, पाकिस्तान से सांठगांठ जैसे आरोप खुलकर लगाए गये हैं। राहुल गांधी, सोनिया गांधी, राजीव गांधी और जवाहर लाल नेहरू तक पर देश के विरोध में काम करने के आरोप बीजेपी ने समय-समय पर लगाए हैं। हालांकि इंदिरा गांधी अपवाद रही हैं। लेकिन, अब कांग्रेस भी यही करने लगी है।
पंजाब में कांग्रेस अपने विरोधियों पर देशद्रोह के आरोप लगा रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को देशद्रोही बता रही है कांग्रेस। क्या कांग्रेस अब बीजेपी की राह पर चल रही है?
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दिल्ली पर काबिज होने के बाद बीजेपी ने लगातार यह नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की कि विपक्षी दल और खासकर कांग्रेस देश विरोधी पार्टी है। जेएनयू तक को देश विरोधी करार दिया। ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ जैसी शब्दावली गढ़ी गयी। भीमा कोरेगांव केस में जेलों में बंद बुद्धिजीवियों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं पर नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाए गये हैं। कांग्रेस लगातार ऐसे हमलों से घायल होती रही है।
कांग्रेस के लिए भी राजनीतिक विरोधी देशद्रोही
मगर, अब खुद कांग्रेस क्या कर रही है। पंजाब चुनाव के दौरान कांग्रेस को मुख्य चुनौती आम आदमी पार्टी से मिल रही है और यही कारण है कि कांग्रेस के निशाने पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं। कुमार विश्वास की बैसाखी पर कांग्रेस अरविंद केजरीवाल को देशद्रोही बता रही है। जबकि, खुद कुमार विश्वास के पास अपने आरोपों का कोई आधार नहीं है।
सवाल यह है कि अगर पंजाब में अरविंद केजरीवाल की पार्टी कांग्रेस को चुनौती नहीं दे रही होती तो उन पर कांग्रेस इस हद तक हमला करती कि उन्हें देशद्रोही करार दिया जाए? यहां तक दिल्ली में विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस इस किस्म के आरोप की हिम्मत नहीं कर सकी थी क्योंकि खुद कांग्रेस की दिल्ली में कोई बिसात नहीं रही।
आश्चर्य इस बात का है कि कांग्रेस के आरोप का आधार एक व्यक्ति का बयान मात्र है जो कवि के रूप में स्थापित हैं लेकिन नेता के रूप में खुद को स्थापित नहीं कर सके।
प्रश्न यह पूछा जाना चाहिए कि कुमार विश्वास क्यों कई साल का मौन तोड़ रहे हैं? अगर केजरीवाल ने कभी उनसे कहा था कि वे पंजाब को देश से अलग कर उसका प्रमुख बनना चाहते हैं तो ‘देशभक्त’ होने के नाते कुमार विश्वास तब से अब तक क्या कर रहे थे?
अमरिंदर ने लगाए थे सिद्धू पर आरोप
पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह भी नवजोत सिंह सिद्धू का रिश्ता पाकिस्तान से जोड़ने की भरसक करते दिखे। उन्होंने यह दावा कर देश को चौंका दिया कि सिद्धू को कैबिनेट में शामिल करने के लिए पाकिस्तान की ओर से उन्हें फोन आया था। मगर, ऐसा कहने के बाद खुद कैप्टन से इस जवाब की उम्मीद बनती है कि क्या वाकई सिद्धू को उन्होंने अपनी कैबिनेट में पाकिस्तान से आयी सिफारिश के बाद रखा था?
मुख्यमंत्री रहते पाकिस्तान की सिफारिश सुनना ‘देशभक्ति’ है और पूर्व मुख्यमंत्री होते ही उसका जिक्र करना भी ‘देशभक्ति’ है तो देशद्रोह की परिभाषा भी उसी हिसाब से बनेगी।
कैप्टन अमरिंदर का बयान बीजेपी की उस राजनीतिक लाइन से मिलता-जुलता है जिसमें बीजेपी पूरी कांग्रेस को देश विरोधी बताती आयी है। यह कैप्टन और बीजेपी के बीच राजनीतिक गठबंधन का नतीजा हो सकता है। मगर, कैप्टन का यह रुख ईमानदार नहीं है और राजनीति का स्तर गिराने वाला है। क्या सिद्धू पर सवाल उठाकर कैप्टन अमरिंदर सिंह ने खुद पर ही सवाल खड़ा नहीं कर लिया?
कुमार विश्वास पर इतना विश्वास क्यों?
जब कुमार विश्वास जैसे नेता का बयान एक मुख्यमंत्री के खिलाफ सामने आता है तो एक राजनीतिक दल की क्या प्रतिक्रिया होनी चाहिए? यह यकीन करना मुश्किल है कि कुमार विश्वास का बयान सही है। लेकिन, अगर सही है तो यह गंभीर बात है और इस मामले की उच्च स्तरीय जांच होने चाहिए। लेकिन, कांग्रेस की प्रतिक्रिया कुमार विश्वास के बयान पर विश्वास कर लेने भर की दिखती है।
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का व्यवहार देश की सबसे नयी पार्टी के साथ क्या ऐसा होना चाहिए? क्या ऐसे मामलों को कानूनी रूप से परखने की जरूरत कांग्रेस को महसूस नहीं होनी चाहिए? रणदीप सुरजेवाला ही नहीं, राहुल गांधी भी एकतरफा ‘हां’ या ‘ना’ में जवाब अरविंद केजरीवाल से मांग रहे हैं मानो वे जज हों और उत्तर सुनकर फैसला करने वाले हो।
हत्या की साजिश का आरोप लगाया
जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बठिंडा में पंजाब के अफसरों से कहा था कि “अपने मुख्यमंत्री से कहना कि मैं जिन्दा लौट आया” तो यह कोई सामान्य टिप्पणी नहीं थी। इस टिप्पणी में एक मुख्यमंत्री पर देश के प्रधानमंत्री की हत्या की साजिश का गंभीर आरोप चस्पां था।
अदालती प्रक्रिया की यह घोर अवमानना है कि जांच से पहले ही खुद प्रधानमंत्री फैसला सुना दें और एक मुख्यमंत्री को दोषी ठहरा दें। अब यह प्रवृत्ति राजनीति में आम हो चली है। मगर, राजनीति में इस प्रवृत्ति को स्वीकार करने वाले दोषमुक्त कैसे हो सकते हैं?
कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके बयान के लिए राजनीतिक रूप से घेरा। लेकिन, जब कांग्रेस खुद बाकी मामलों में वैसा ही रुख अपनाएगी जैसा बीजेपी अपनाती रही है तो उसके विरोध और राजनीतिक घेराबंदी का क्या मतलब रह जाता है! अपने राजनीतिक विरोधियों पर संगीन आरोप लगाने की यह परंपरा खतरनाक है। लेकिन, यह ख़तरनाक परंपरा रुकेगी कैसे?- यह सवाल हर घटना के साथ बड़ा होता चला जा रहा है।