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अयोध्या के बाद क्या मथुरा से शुरू होगा जन्मभूमि आंदोलन; स्थानीय लोग पक्ष में नहीं

अयोध्या के बाद क्या मथुरा से शुरू होगा जन्मभूमि आंदोलन; स्थानीय लोग पक्ष में नहीं

राम मंदिर की तर्ज पर मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के लिए न्यास बन चुका है और जल्द ही छोटे स्तर पर आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। 

अयोध्या में राम जन्मभूमि के लिए दशकों तक आंदोलन चलाने के बाद अब मथुरा में इसी तरह का माहौल बनाने की कोशिश हो रही है। राम मंदिर की तर्ज पर मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि के लिए न्यास बन चुका है और जल्द ही छोटे स्तर पर आंदोलन की शुरुआत की जाएगी। हालांकि इस आंदोलन को मथुरा के लोगों का न तो समर्थन है और न ही उनमें इसे लेकर कोई उत्साह है। 

विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) और राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के इनकार के बाद भी मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने की मुहिम परवान चढ़ने जा रही है। जन्माष्टमी के मौके पर हस्ताक्षर अभियान चला कर इसकी शुरुआत की जाएगी। माना जा रहा है कि विहिप और संघ की ना-नुकुर के बाद भी इनसे जुड़े कई अनुषांगिक संगठन इसका साथ देंगे।

मथुरा में स्थित शाही ईदगाह को कृष्ण जन्मभूमि बताते हुए इसे वापस लेने का दावा किया जाता रहा है। अभी इस संदर्भ में कोई भी वाद किसी अदालत में नहीं है। हालांकि मथुरा के स्थानीय नेताओं और लोगों का कहना है कि यहां जन्मभूमि को लेकर कोई विवाद नहीं है और कुछ लोग अमन-चैन को बिगाड़ने की कोशिश करते रहते हैं।

हस्ताक्षर अभियान से होगी शुरुआत

इस बुधवार को कृष्ण जन्माष्टमी के मौके पर एक हस्ताक्षर अभियान चला कर जन्मभूमि को मुक्त कराने के आंदोलन की शुरुआत की जाएगी।

कृष्ण जन्मभूमि निर्माण न्यास के नाम से इस आंदोलन को चलाने के लिए यह न्यास 23 जुलाई को हरियाली तीज के मौके पर पंजीकृत कराया जा चुका है। न्यास की कमान संत देव मुरारी आचार्य के हाथों में है। 

दावा किया जा रहा है कि पंजीकृत कराए गए न्यास से देश के 14 राज्यों के 80 से ज्यादा संत जुड़े हुए हैं। देव मुरारी ने देश भर के संतों से कृष्ण जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए आंदोलन करने का आह्वान किया है।

कृष्ण जन्माष्टमी से हस्ताक्षर अभियान शुरू करने के साथ ही कोरोना संकट के समाप्त होने पर इस आंदोलन को और तेज किया जाएगा। न्यास ने इसके लिए ‘नंदलाला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे’ का नारा दिया है। यह ठीक उसी तर्ज पर है जिस तरह का नारा राम मंदिर के आंदोलन में दिया गया था।

गौरतलब है कि विहिप के एजेंडे में पहले से ही अयोध्या के साथ मथुरा और काशी विश्वनाथ मंदिर को मुक्त कराना रहा है। हालांकि अयोध्या मसले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद विहिप और संघ दोनों ने खुल कर इस एजेंडे पर चलने के लिए हामी नहीं भरी है।

विहिप के महासचिव चंपत राय ने ज़रूर कुछ दिनों पहले मथुरा का दौरा किया था और हालात को समझा था। न्यास से जुड़े लोगों का कहना है कि प्रारंभ में संघ या विहिप कृष्ण जन्मभूमि के आंदोलन में सीधे तौर पर शामिल नहीं होंगे बल्कि संतों को ही इसकी कमान दी जाएगी। बाद में जनता की प्रतिक्रिया को देखते हुए इस पर फैसला लिया जाएगा।

नहीं है कोई विवाद 

मथुरा कैंट बोर्ड के उपाध्यक्ष रहे कमलकांत उपमन्यु बताते हैं कि जमीन को लेकर यहां दोनों पक्षों में काफी पहले ही सहमति बन चुकी है और कोई विवाद नहीं है। उनका कहना है कि बाहर से आए हुए कुछ संत यहां विवाद पैदा करने का प्रयास करते रहते हैं पर स्थानीय लोगों के लिए यह कोई मुद्दा नहीं है। 

उपमन्यु का कहना है कि मथुरा व वृंदावन में दो तरह के संत हैं। एक जो यहीं के हैं और दूसरे वो जो केवल राजनीति के लिए आते हैं। उपमन्यु के मुताबिक़ ईदगाह की जमीन के उपयोग पर दोनों समुदाय एक हैं और कोई झगड़ा नहीं है। उपमन्यु ने कहा कि यहां किसी तरह के विवाद को खड़ा करने की मुहिम को कम से कम स्थानीय जनता का साथ नहीं मिलेगा।

संघ ने हालांकि साफ कह दिया है कि राम मंदिर उसका प्रमुख एजेंडा था और अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण के साथ ही वह इस मामले से पूरी तरह से अलग हो जाएगा। संघ प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में इसे साफ कर दिया था।

संघ-विहिप ने बनाई दूरी

माना जा रहा है कि संतों की ओर से कृष्ण जन्मभूमि आंदोलन को तेज करने की दशा में संघ उसे समर्थन दे सकता है। वहीं, विहिप का मानना है कि मथुरा की शाही ईदगाह की जमीन पर ही कृष्ण का जन्म हुआ था। इस ईदगाह के ठीक बाहर मथुरा का सबसे पुराना केशवदेव महाराज का मंदिर है। शाही ईदगाह को प्लेसेज ऑफ़ वर्शिप एक्ट के तहत संरक्षण मिला हुआ है। हालांकि विहिप भी फिलहाल खुद को इस मामले से दूर ही रखना चाहता है। 

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