कोरोना: वायरस यानी एक मुर्दा जो आपके छूते ही ज़िंदा हो जाता है
नाम तो सुना होगा - कोरोना वायरस जिसने सारे भारत में सामान्य जनजीवन को ठप कर दिया है और लोगों को घरों में क़ैद रहने के लिए बाध्य कर दिया है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह कोरोना वायरस है क्या बला।
कोरोना वायरस एक विषाणु है जो इतना छोटा है कि उसको आप आँखों से नहीं देख पाते, लेकिन इतना ख़तरनाक है कि आपको बीमार कर सकता है, कुछ मामलों में जान भी ले सकता है। आख़िर इतने छोटे से वायरस में ऐसी क्या शक्ति है कि दुनिया के नामी-गिरामी वैज्ञानिक उसका मुक़ाबला नहीं कर पा रहे हैं नीचे हम इन्हीं सब बातों की चर्चा करेंगे और वह भी ऐसी भाषा में जो आपको समझ में आए।
हम जानते हैं कि सृष्टि में बहुत सारे छोटे-छोटे जीव हैं जैसे बैक्टीरिया, अमीबा आदि जिनको हम अपनी आँखों से नहीं देख सकते। इनके छोटे आकार के कारण इन्हें हम जीवाणु (जीव+अणु) कहते हैं। ऐसे बहुत सारे जीव लाखों-करोड़ों की संख्या में हमारे शरीर में भी मौजूद रहते हैं और कई तो हमारे लिए फ़ायदेमंद भी हैं। लेकिन बहुत सारे हैं जो हमें बीमार कर देते हैं। इसी कारण ऐसे जीवाणुओं को रोगाणु (रोग+अणु) भी कहा जाता है।
लेकिन वायरस इन सबसे अलग है। अलग इस क़िस्म में कि यह जीवाणु नहीं है। जीवाणु इसीलिए नहीं है कि यह जीव ही नहीं है। मगर यह निर्जीव भी नहीं है। वह मूलतः जीव और निर्जीव के बीच की कोई चीज़ है। शायद सृष्टि में जब पहला जीव बना होगा, उससे ठीक पहले की अवस्था है वायरस की।
जीव और निर्जीव में सबसे बड़ा फ़र्क़ यह है कि जीव बिना किसी दूसरे प्रकार के जीव की मदद के अपनी प्रतिलिपि यानी ड्युप्लिकट बना सकता है, निर्जीव नहीं बना सकता। जैसे आपके कमरे में रखी क़लम कभी भी अपने जैसी दूसरी क़लम नहीं बना सकती। लेकिन आपके घर में रखे मनी प्लांट का एक जड़ सहित टुकड़ा काटकर किसी गमले या पानी की बोतल में डाल दें तो नया मनी प्लांट तैयार हो जाता है।
इसी तरह बैक्टीरिया या अमीबा अपने जैसे और बैक्टीरिया या अमीबा को जन्म दे सकते हैं और अपनी टोली बढ़ा सकते हैं लेकिन एक वायरस ऐसा नहीं कर सकता। वायरस यदि कहीं पड़ा है तो हो सकता है, अनुकूल स्थितियों में वह हज़ारों सालों तक वहाँ अकेला पड़ा रहे या प्रतिकूल स्थिति में वह पल भर में नष्ट हो जाए। लेकिन हज़ारों साल तक एक ही जगह पड़ा रहने पर भी वह किसी कंकड़-पत्थर की तरह अकेला ही रहेगा, एक से दो नहीं होगा जब तक कि वह किसी जीव के संपर्क में नहीं आता।
किसी जीव के संपर्क में आते ही वायरस धड़ाधड़ अपनी संख्या बढ़ाने लगता है और इस तरह उस मेज़बान जीव के शरीर में कोहराम मचा देता है। जीव के संपर्क में आते ही उसकी संख्या क्यों बढ़ने लगती है, यह हम नीचे समझते हैं।
ऊपर हमने जीव और निर्जीव के बीच एक अंतर यह देखा कि जीव अपनी प्रतिलिपि बना सकता है, निर्जीव नहीं। जीव का एक अन्य गुण यह भी है कि वह अपने आकार में वृद्धि कर सकता है।
यह शायद आप जानते हैं कि हर जीव कोशिकाओं से बना होता है। कोशिकाओं को आप किसी मकान में लगी ईंटें समझिए। अब ईंट चूँकि निर्जीव है, इसलिए एक ईंट से दो ईंटे नहीं बनेंगी और एक कमरे की दीवार यदि दस फ़ुट ऊँची है तो वह हमेशा दस फ़ुट ही रहेगी। लेकिन जीव के अंदर जो ईंट रूपी कोशिकाएँ होती हैं, वे एक से दो और दो से चार हो सकती हैं और इसी कारण उनका आकार-प्रकार बढ़ता है।
कोशिकाएँ एक से दो कैसे होती हैं, उसको वैज्ञानिक भाषा में समझाने बैठूँगा तो यह टिप्पणी लंबी और बोझिल हो जाएगी। आप बस इतना जान लीजिए कि हर जीव की कोशिका के अंदर यह क्षमता होती है कि वह एक से दो, दो से चार और चार से आठ हो जाए।
कैसे बढ़ता है वायरस
वायरस जीव की इसी क्षमता का फ़ायदा उठाता है। वह जानता है कि जीव की कोशिका जब अपने को बाँटकर एक का दो करेगी तो अनजाने में उसको भी डबल कर देगी।
इसे आप ऑफ़िस में रखी फ़ोटोकॉपी मशीन के उदाहरण से समझें। एक कर्मचारी है जिसका काम फ़ोटोकॉपी मशीन में कागज़ डालकर ऑफ़िस के डॉक्युमेंट की कॉपियाँ निकालना है। अब अगर वह कर्मचारी उस फ़ोटोकॉपी मशीन में अपने पर्सनल डॉक्युमेंट भी डाल दे तो क्या मशीन को पता चलेगा कि ऐसा करना ग़लत है नहीं, वह तो उसकी भी कॉपियाँ निकाल लेगी।
वायरस के मामले में भी यही होता है। शरीर की कोशिका जिसका काम फ़ोटोकॉपियर की तरह अपने अंदर मौजूद जैविक सामग्री की प्रतिलिपि बनाना यानी ख़ुद को डबल करना है, वह वायरस की जैविक सामग्री की भी कॉपी करने लगती है और इस तरह शरीर में एक वायरस से दो और दो से चार वायरस पैदा हो जाते हैं। अंत में वे उस कोशिका को भी नष्ट कर देते हैं और दूसरी स्वस्थ कोशिकाओं के अंदर प्रवेश कर जाते हैं। प्रतिलिपियाँ बनने की प्रक्रिया चलती रहती है। वायरसों की संख्या बढ़ती चली जाती है।
अब प्रश्न यह है कि वायरस रूपी इन रक्तबीजों को कैसे नष्ट किया जा सकता है। इसके दो तरीक़े हैं।
पहला और बेहतर तरीक़ा तो यह है कि किसी वायरस के आपके शरीर की किसी कोशिका में प्रवेश करने से पहले ही उसे नष्ट किया जाए। बहुत सारे वायरस साबुन से नष्ट हो जाते हैं।
साबुन से वे इसलिए नष्ट हो जाते हैं कि वायरस का बाहरी खोल फ़ैट यानी चिकनाई से बना होती है जो साबुन से नष्ट हो जाता है जैसे तेल वाले हाथ साबुन से साफ़ हो जाते हैं।
लेकिन एक बार यह डॉन जीवित कोशिका में प्रवेश कर गया तो उसे मारना नामुमकिन न सही, मुश्किल ज़रूर हो जाता है।
शरीर वायरस के इस हमले का दो तरह से मुक़ाबला करता है। एक, वायरस के हमले के साथ ही आपके शरीर का इम्यून सिस्टम यानी प्रतिरोधक तंत्र सक्रिय हो जाता है और खोज-खोज कर वायरस को नष्ट करता है ताकि वह फैलने न पाए। जैसे संसद हमले में हमारे सुरक्षाकर्मियों ने आतंकवादियों को मारा था, वैसे ही। जब सारे आतंकी वायरस हमारे शरीर के सुरक्षाकर्मियों द्वारा मार डाले जाते हैं तो ख़तरा समाप्त हो जाता है और शरीर वायरस से मुक्त हो जाता है।
दूसरा तरीक़ा यह कि वायरस ने जिन कोशिकाओं पर हमला कर उनपर नियंत्रण कर लिया हो, उन कोशिकाओं को ही नष्ट कर दिया जाए। यह तरीक़ा वैसा ही है जैसे कि कोई आतंकवादी किसी मकान में छुप जाए तो उसको मार गिराने के लिए उस मकान को ही नष्ट कर दिया जाता है। किसी जीव के लिए यह आदर्श उपाय नहीं है क्योंकि इससे उसकी अपनी कोशिकाओं का नुक़सान होता है लेकिन वायरस के विस्तार को रोकने के लिए कई बार यह अनिवार्य हो जाता है।
अब अगला सवाल कि वायरस के हमले से हम बीमार क्यों हो जाते हैं
जैसा कि हमने ऊपर पढ़ा, जब कोई वायरस किसी जीव पर हमला करता है तो जीव के शरीर में युद्ध जैसे हालात पैदा हो जाते हैं। इस दौरान दो तरह की हानिकारक क्रियाएँ होती हैं।
- वायरस एक के बाद एक नई कोशिकाओं को संक्रमित करता, अपनी आबादी बढ़ाता हुआ मेज़बान कोशिकाओं को नष्ट करता जाता है।
- प्रतिरोधक कोशिकाएँ वायरस से ग्रस्त कोशिकाओं पर हमला कर देती हैं। इस दौरान वायरस भी नष्ट होता है और संक्रमित कोशिकाएँ भी।
यह ‘युद्ध’ शरीर के लिए बहुत सारी समस्याएँ पैदा कर देता है जिसका परिणाम होता है सूजन, बुख़ार, बलग़म, सिरदर्द, गले में दर्द आदि।
अधिकतर मामलों में हमारा शरीर यह युद्ध जीत जाता है। मसलन फ़्लू या ज़ुकाम के वायरसों से आसानी से मुक्ति पाई जा सकती है। लेकिन कुछ वायरसों को हराना ख़ासा मुश्किल होता है, ख़ासकर उन लोगों के लिए जिनकी प्रतिरोधक क्षमता पहले से ही जर्जर है।
अब अंतिम सवाल। क्या टीकों या दवाओं से वायरस-जनित बीमारियों से मुक़ाबला किया जा सकता है
हाँ, अगर किसी व्यक्ति पर उसी वायरस का हमला हो जिसका टीका उसने पहले से लिया हुआ है। इसी तरह दवा भी उसी वायरस को हरा सकती है जिस वायरस पर उसका सफल परीक्षण हो चुका है। मामला ताले और चाबी का है। जैसे हर चाबी से हर ताला नहीं खोला जा सकता, वैसे ही हर टीके या दवा से हर वायरस का मुक़ाबला नहीं किया जा सकता।
वायरस को हराने के मामले में सबसे बड़ी मुसीबत यह है कि महिषासुर की तरह वायरस भी अपना स्वरूप और चरित्र बदलता रहता है। इसे आप मोबाइल नंबर से समझिए। जैसे हर मोबाइल नंबर में 0 से लेकर 9 तक के अंकों में से कोई दस अंक अलग-अलग क्रम में होते हैं और इसी कारण वे अलग-अलग नंबर बनाते हैं, वैसे ही वायरस में भी जो जैविक सामग्री होती है, वह एक ख़ास क्रम में ढली होती है। अगर उस क्रम का कोई एक हिस्सा ग़ायब हो गया या उसकी जगह कोई और जुड़ गया तो वायरस का रूप वैसे ही बदल जाता है जैसे मोबाइल नंबर में किसी एक अंक के बदलने से पूरा नंबर बदल जाता है।
कोरोना वायरस भी इसी तरह का एक नया वायरस है। चार कोरोना वायरस इससे पहले मौजूद थे जो उतने हानिकारक नहीं हैं। उनका इलाज भी संभव है। लेकिन 2019 में उनमें से किसी एक कोरोना वायरस की जैविक सामग्री में से कुछ घटा या कुछ जुड़ा और वह ख़तरनाक नया कोरोना वायरस बन गया।
यह नया कोरोना वायरस ख़तरनाक इसलिए है कि इसका कोई टीका पहले से तैयार नहीं है न ही कोई दवा है जो इसपर असर करे।
लेकिन और वायरसों की तरह यह नया कोरोना वायरस भी उतना ख़तरनाक नहीं है जितना लगता है। एम्स के एक ब्रोशर के अनुसार नए कोरोना वायरस से संक्रमित 80% लोग बिना दवा के कुछ दिनों में आसानी से ठीक हो जाते हैं। यही कारण है कि दुनिया भर में कोरोना वायरस के जितने भी केस अब तक मिले हैं, उनमें मृतकों की संख्या 5% से ज़्यादा नहीं है। दूसरे शब्दों में 95% रोगी इस वायरस का शिकार होने के बाद भी ठीक हो रहे हैं। यह टिप्पणी लिखे जाने तक दुनिया में कोरोना वायरस संक्रमण के क़रीब 3.8 लाख मामले प्रकाश में आए हैं जिनमें 1.02 लाख ठीक हो चुके हैं, बाक़ी का इलाज चल रहा है और 16 हज़ार के आसपास की मौत हुई है।
इसलिए कोरोना वायरस से डरें नहीं। बस सतर्क रहें। आपस में दूरी बनाए रखें और नियमित अंतराल पर हाथ साबुन से धोते रहें। लेकिन ध्यान रहे - बीस सेकंड तक रगड़-रगड़कर वरना वायरस का चिकनाई वाला खोल हटेगा नहीं।