सिंघु बॉर्डर : बाबा राम सिंह का हुआ पोस्टमार्टम, आज होगा अंतिम संस्कार
मोदी सरकार के नए कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ दिल्ली-हरियाणा, हरियाणा-राजस्थान, दिल्ली-यूपी के तमाम बॉर्डर्स पर डटे किसानों ने सरकार को चेताया है। किसानों ने कहा है कि सरकार उनके आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश बंद करे। किसानों ने दिल्ली-यूपी की सीमा पर पड़ने वाले चिल्ला बॉर्डर पर फिर से धरना देना शुरू कर दिया है।
दूसरी ओर, सिंघू और टिकरी बॉर्डर पर पंजाब-हरियाणा और बाक़ी राज्यों से बड़ी संख्या में किसान पहुंच रहे हैं। महिलाओं-बच्चों की भी भागीदारी बढ़ रही है। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से आए किसान और रेवाड़ी बॉर्डर पर राजस्थान-हरियाणा के किसान डटे हुए हैं।
किसानों के तमाम संगठनों की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्रालय के सचिव विवेक अग्रवाल को भेजे गए पत्र में लिखा गया है कि वे सरकार से अनुरोध करते हैं कि वह किसानों के सभी संगठनों को बराबर अहमियत दे और सभी से बात करे। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, कृषि मंत्रालय ने किसानों की ओर से पत्र मिलने की पुष्टि की है।
सरकार ने भेजा था प्रस्ताव
सोमवार को केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की ओर से भेजे गए प्रस्ताव को लेकर किसानों ने अपने पत्र में कहा है कि उन्होंने इस प्रस्ताव को नकार दिया है क्योंकि इसमें वही सारी बातें हैं, जो पिछले दौर की बातचीत में हो चुकी हैं। किसान नेताओं ने कहा है कि वे बातचीत के दौरान सरकार को अपने मुद्दों के बारे में पहले ही बता चुके हैं, इसलिए वे इस प्रस्ताव का कोई जवाब नहीं दे रहे हैं।
कृषि मंत्री तोमर ने कहा था कि किसानों को लिखित में प्रस्ताव भेजा गया है और हम उनके जवाब का इंतजार कर रहे हैं जिससे आगे के दौर की बातचीत हो सके। उन्होंने फिर कहा था कि ये क़ानून किसानों की भलाई के लिए हैं।
कड़ाके की ठंड में डटे
किसान नेताओं ने अपने पत्र में कहा है कि सरकार इन कृषि क़ानूनों को वापस ले ले। इस बीच किसानों का आंदोलन 21 वें दिन में प्रवेश कर गया है। किसान नेताओं ने कहा है कि क़ानूनों के रद्द होने के बाद ही अब आगे की कोई बातचीत होगी। मंगलवार रात को 4.1 डिग्री में भी किसान और तमाम आंदोलनकारी बॉर्डर्स पर डटे रहे।
किसान आंदोलन से परेशान बीजेपी और मोदी सरकार के मंत्री कृषि क़ानूनों को किसानों के हित में बताने में जुटे हुए हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को एक बार फिर कहा कि किसानों को इन क़ानूनों को लेकर गुमराह करने की साज़िश रची जा रही है।
इस बीच, अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय के छात्रों ने मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप करने और कृषि क़ानूनों को निरस्त करने की अपील की है।
सुनिए, किसान आंदोलन पर चर्चा-
बीजेपी और मोदी सरकार की ओर से किसान आंदोलन के बीच देश भर में किसान चौपाल सम्मेलन किए जा रहे हैं। इन सम्मेलनों में इन क़ानूनों की ख़ूबियों के बारे में बताया जा रहा है लेकिन दूसरी ओर आंदोलन बढ़ता जा रहा है।
बीजेपी-मोदी सरकार मुश्किल में
आने वाले दिन जबरदस्त ठंड के हैं। बुजुर्ग किसान, महिलाएं-बच्चे सड़कों पर बैठे हुए हैं। रात को पाला गिर रहा है और पूरी रात बाहर बैठे रहने से किसी की भी तबीयत बिगड़ने का ख़तरा है। ऐसे में बीजेपी-मोदी सरकार की मुश्किल और बढ़ती जा रही है। संगठन और सरकार किसी भी क़ीमत पर पीछे नहीं हटना चाहते लेकिन दूसरी ओर इस मामले में किसान उनसे कहीं ज़्यादा मजबूत हैं। क्योंकि किसान कहते हैं कि उन्हें छह महीने-साल भर भी बैठना पड़े तो वे आराम से बैठ जाएंगे।
ऐसे हालात में कैसे इस मसले का हल निकलेगा कहना मुश्किल है।