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देखिए सबूत कि कैसे आपका मीडिया पूरी तरह बन चुका है गोदी मीडिया!

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भारतीय मीडिया के एक वर्ग पर पिछले छह साल से ये आरोप लगते रहे हैं कि वह सत्ता प्रायोजित ख़बरों को चलाता है। 

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जावड़ेकर के कार्यालय की ओर से पत्रकारों को भेजे गए डॉक्यूमेंट का स्क्रीनशॉट।

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जावड़ेकर के कार्यालय की ओर से पत्रकारों को भेजे गए डॉक्यूमेंट का स्क्रीनशॉट।

इंडिया टुडे ने जावड़ेकर के कार्यालय से भेजी गई इस लिस्ट के आधार पर ही किसानों की बाइट ले ली और सरकारी चैनल डीडी न्यूज़ ने भी उन्हीं किसानों की बाइट्स को चलाया। इससे साफ पता चलता है कि सरकार के मंत्रियों की ओर से देश के बड़े चैनलों को कंटेंट दिया जा रहा है कि वे इस पर स्टोरी करें, ये स्टोरी चलाएं और चैनल वही कर रहे हैं। 

4 से 6 दिसंबर के बीच डीडी न्यूज़ ने कमल पटेल, राम विलास गुर्जर की बाइट्स को चलाया। इसके अलावा मध्य प्रदेश के उज्जैन के किसान दिनेश बैरागी की बाइट को भी चलाया। बैरागी के कहे हुए को ख़ुद जावड़ेकर ने ट्वीट किया। 

इसी तरह जावड़ेकर के कार्यालय से जितेंद्र भोई और मोहम्मद असलम के नाम भी लिस्ट में भेजे गए थे। इनका जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में किया था। जितेंद्र भोई की बाइट को सीएनएन ने अपने कार्यक्रम में चलाया। 

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जावड़ेकर के कार्यालय की ओर से पत्रकारों को भेजे गए डॉक्यूमेंट का स्क्रीनशॉट।

मोदी सरकार के बारे में कहा जाता है कि इसने मीडिया को जबरदस्त ढंग से 'मैनेज' किया हुआ है। मेन स्ट्रीम मीडिया के कई ऐसे हिंदी और इंग्लिश चैनल हैं, जो मोदी के ख़िलाफ़ कोई आवाज़ उठते ही आवाज़ उठाने वालों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल देते हैं। 

जिस तरह दिल्ली में किसानों का आंदोलन बड़ा होता जा रहा है, ऐसे वक़्त में मोदी सरकार के लिए यह ज़रूरी था कि मेन स्ट्रीम मीडिया के चैनल्स में ऐसे किसानों की बाइट्स चला दी जाएं जो ये कहें कि नए कृषि क़ानून उनके फ़ायदे के लिए हैं। 

केवल सूचना और प्रसारण मंत्रालय ही नहीं कई और मंत्रालयों के बारे में कहा जाता है कि वे न्यूज़ चैनलों को ‘डायरेक्ट’ करते हैं कि उन्हें क्या दिखाना चाहिए और क्या नहीं।

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