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क़ानून मंत्री से हटाने पर रिजिजू बोले- मुझे सजा नहीं, पीएम का विज़न है

क़ानून मंत्री से हटाने पर रिजिजू बोले- मुझे सजा नहीं, पीएम का विज़न है

क़ानून मंत्रालय छीने जाने के बाद आख़िर किरण रिजिजू ने मोदी सरकार के इस फ़ैसले को किस रूप में लिया है? जानिए, उन्होंने क्यों कहा कि यह पीएम का विज़न है।

कैबिनेट फेरबदल के दौरान केंद्रीय कानून मंत्री के पद से हटाए जाने के एक दिन बाद किरण रिजिजू ने शुक्रवार को इस प्रक्रिया को नियमित प्रक्रिया बताया है। उन्होंने कहा कि यह प्रधानमंत्री के विजन का हिस्सा है न कि उनके लिए सजा।

रिजिजू ने कहा, 'यह स्थानांतरण एक नियमित प्रक्रिया है। यह प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण है। किसी को जिम्मेदारी लेनी होगी। कोई ग़लती नहीं हुई है। मेरे खिलाफ बोलना विपक्ष का कर्तव्य है, उन्हें बोलने दें।' उनकी यह प्रतिक्रिया तब आई है जब वह पृथ्वी विज्ञान मंत्री के रूप में कार्यभार ग्रहण करने के बाद मीडिया से रूबरू थे। उन्होंने कहा कि आज राजनीति करने का दिन नहीं है।

रिजिजू ने शुक्रवार को सुबह 11 बजे राष्ट्रीय राजधानी के लोधी रोड स्थित पृथ्वी भवन में पृथ्वी विज्ञान मंत्री का पदभार ग्रहण किया।

आम लोकसभा चुनाव से ठीक एक साल पहले गुरुवार को अचानक लिए गए फ़ैसले में कैबिनेट में फेरबदल करते हुए किरण रिजिजू से क़ानून मंत्रालय वापस ले लिया गया और इस मंत्रालय की ज़िम्मेदारी अर्जुन राम मेघवाल को दे दी गयी। सवाल उठाया जा रहा है कि कानून मंत्री के तौर पर क्या किरण रिजिजू का काम बढ़िया नहीं रहा।

बता दें कि हाल के दिनों में सुप्रीम कोर्ट के कई फ़ैसले केंद्र के अनुकूल नहीं रहे हैं। इसमें से एक फ़ैसला तो कर्नाटक से जुड़ा है जिसको चुनाव पर असर डालने वाला माना जाता है। कहा जा रहा है कि कर्नाटक चुनाव से बीजेपी बौखलाई हुई है। इस चुनाव में कर्नाटक बीजेपी ने दाँव खेला था कि मुसलिमों को मिलने वाले 4 फ़ीसदी आरक्षण को ख़त्म कर इसे लिंगायत और वोक्कालिगा समुदायों में बाँट दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने बीजेपी के मंसूबों पर पानी फेर दिया था। यह कोई अकेला मामला नहीं है। हाल में ऐसे ही कई फ़ैसले बीजेपी के ख़िलाफ़ गए हैं। 

सुप्रीम कोर्ट ने दो दिन पहले ही कहा है कि उपराज्यपाल को दिल्ली नगर निगम में एलडरमैन नामित करने की शक्ति देने का मतलब होगा कि वह एक निर्वाचित नागरिक निकाय को अस्थिर कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तत्कालीन महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का फ्लोर टेस्ट के लिए बुलाने का फैसला कानून के अनुसार नहीं था जिससे उद्धव-ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार गिर गई थी। शिंदे का भरत गोगावाले को शिवसेना का मुख्य सचेतक नियुक्त करने का निर्णय अवैध था। केवल स्पीकर और राजनीतिक दल द्वारा चुने गए नेता ही व्हिप जारी कर सकते हैं। 

क़रीब तीन महीने पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि चुनाव आयुक्त की नियुक्ति सरकार नहीं करेगी। अदालत ने आदेश दिया कि इनकी नियुक्ति अब सीबीआई निदेशक की तरह होगी जिसमें प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और सीजेआई का पैनल इनकी नियुक्ति करेगा।

बहरहाल, जुलाई 2021 में रिजिजू को क़ानून मंत्री बनाया गया था। उनका कार्यकाल 18 मई 2023 तक रहा। यानी वह दो साल भी उस मंत्री पद पर नहीं रहे। इससे पहले क़ानून मंत्री रविशंकर प्रसाद थे और कैबिनेट के फेरबदल में उनको हटाकर रिजिजू को लाया गया था। यानी प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में दो साल के भीतर दो क़ानून मंत्री बदल दिए गए। तो सवाल है कि आख़िर क़ानून मंत्रालय में कौन सा काम है जिसको करने में ये मंत्री खरे नहीं उतर रहे हैं? यदि इन मंत्रियों का काम बढ़िया होता तो मंत्री पद से हटा क्यों दिया जाता? 

कानून मंत्री के रूप में रिजिजू ने बार-बार न्यायपालिका के खिलाफ बयान दिए और नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली की आलोचना की। उनके बयानों ने न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच अक्सर खींचतान पैदा कर दी थी।

रिजिजू को इस साल कैबिनेट फेरबदल में अपेक्षाकृत कम महत्वपूर्ण पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में स्थानांतरित कर दिया गया।

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