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क्या सिर्फ़ कारों की बुकिंग होना मंदी से उबरने का संकेत है?

क्या सिर्फ़ कारों की बुकिंग होना मंदी से उबरने का संकेत है?

किया सेल्टोस की बुकिंग सोमवार को शुरू हुई और एक ही दिन में कंपनी को 6000 कारों के लिए बुकिंग मिल गई। तो क्या सिर्फ़ कारों की बुकिंग मंदी से उबरने का संकेत हो सकती है?

किया सेल्टोस की बुकिंग सोमवार को शुरू हुई और एक ही दिन में कंपनी को 6000 कारों के लिए बुकिंग मिल गई। इसी तरह, एमजी मोटर्स को 45 दिन में हैक्टर एसयूवी के लिए 21,000 बुकिंग मिल गए और अब उसने ऑर्डर लेना बंद कर दिया है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि दोनों मामलों में गाड़ियों की बुकिंग अच्छी है और पिछले दिनों गाड़ियाँ नहीं बिकने तथा स्टॉक जमा होने की ख़बरों के बीच इसका अलग महत्व है और यह पूछा जाना चाहिए कि मंदी थी तो ये बुकिंग कैसे हुईं। जवाब मुश्किल नहीं है। इसीलिए पूछा नहीं जा रहा है, पर सवाल तो है। इसके दो उत्तर हैं। पहला तो यह कि बाजार नहीं होता तो क्या कोई कंपनी बाजार में नया उत्पाद उतारती। पर दूसरा उत्तर या सवाल इसी जवाब से जुड़ा है कि बिक्री का भरोसा था तो यह सब करने की क्या ज़रूरत थी। मुमकिन है, भरोसा इसी पर यानी इसी तरीक़े पर हो और अब नई कंपनी को भी कुछ ऑर्डर के साथ थोड़ा समय मिल गया है।

ऑर्डर को लेकर मैं ज़रा भी चकित नहीं हूँ। मुझे अपना एक सवाल याद आ गया जो मैंने हर्षद मेहता से पूछा था। किसी इंटरव्यू में नहीं, लिखने के लिए नहीं। सिर्फ़ उत्सुकतावश और इसलिए कि पूछने का मौक़ा था। मैंने शेयरों का धंधा कभी नहीं किया। ना तब करने की हैसियत थी ना अब करने का इरादा है। फिर भी, मैंने उनसे पूछा था कि आप शेयर बेचते हैं तो लोग शेयर बेचने लगते हैं और ख़रीदते हैं तो लोग ख़रीदने लगते हैं। कारण क्या है उनका यह जवाब सार्वजनिक करने के लिए नहीं था। पर अब वे इस दुनिया में नहीं हैं तो कर देता हूँ। उन्होंने कहा था कि शेयर मार्केट में लालची और डरपोक लोगों का बोल-बाला है। ये पैसे कमाना तो चाहते हैं पर गँवाने से डरते हैं (और अक्ल तो है नहीं- यह उन्होंने नहीं कहा था) ऐसे में वे यही कर सकते हैं कि मैं बेचूँ तो डर जाएँ कि शायद क़ीमत गिरने वाली है और उन्हें घाटा हो जाएगा और यही बात ख़रीदने के मामले में है।

मैं नहीं जानता कि उनका यह जबाव कितना गंभीर था या कितना टालू। मुमकिन है इसका संबंध मेरे बारे में उनकी जो राय हो उस पर भी निर्भर हो। पर अभी वह सब महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण यह है कि नई पेश की गई कार की बुकिंग हुई तो इसका मतलब यह नहीं है कि मंदी ख़त्म हो गई। या मंदी नहीं है। कारण यह है कि लोग कमाने का मौक़ा नहीं छोड़ना चाहते हैं। बाजार में नई आने वाली कार की बुकिंग कराने में मामूली रक़म लगती है और जो लगती है वह भी सुरक्षित होती है। डूबने की आशंका नहीं के बराबर है। लोग बुक करा देते हैं। इस उम्मीद में कि शायद कुछ प्रीमियम मिल जाए। नहीं मिलेगा तो रख लेंगे, नई गाड़ी का जलवा होता है या बाजार मूल्य पर बेच देंगे। ये वे लोग होते हैं जो बिना कुछ दाँव पर लगाए इतना जोख़िम उठा सकते हैं। इन्हीं के दम पर अर्थव्यवस्था 5 ट्रिलियन की होनी है और इसीलिए पी. चिदंबरम ने कहा है कि इसके लिए किसी प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री की ज़रूरत नहीं है- वह पाँच साल में नहीं तो छह साल में और छह में नहीं तो सात साल में हो ही जाएगी।

एक दिन में 6000 कारों की बुकिंग का मतलब

जहाँ तक एक दिन में 6000 किया कारों की बुकिंग का सवाल है तो इसे आप ऐसे देख सकते हैं कि सामान्य स्थिति में अकेले दिल्ली में रोज़ 1000 कारें बिकती हैं। इस कार को 22 अगस्त को लॉन्च किया जाना है। यानी 22 अगस्त से पहले डिलीवरी मिल ही नहीं सकती है। रोज़ 1000 के हिसाब से दिल्ली में एक महीने के कोई 30,000 ग्राहक हुए। एनसीआर और बाक़ी देश का अनुमान लगा लीजिए। बुक कराने वाले 6000 लोगों के पास अब 22 अगस्त तक कार नहीं  ख़रीदने का पक्का और ठोस बहाना है। यह आइडिया मेरा नहीं, कार कंपनी का हो तो मान लीजिए कि बुकिंग इसीलिए शुरू की गई है वरना हाल-फिलहाल में आपको याद है किसी कार के लिए ऐसे बुकिंग हुई हो। नई आयी गाड़ियाँ कितनी बिकीं उसका कोई हिसाब है मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि जो चर्चित गाड़ियाँ पेश की गई हैं वे गुमानामी में खो गईं। ऐसे में यह इस समय कार बेचने का एक कामयाब तरीक़ा भी हो सकता है।

यदि कारें नहीं बिकीं तो

इसपर मुझे याद आया कि वर्षों पूर्व डीसीएम देवू कार लॉन्च हुई थी तो ताजमहल होटल के लॉन में लंच पर प्रेस कॉन्फ़्रेंस थी। लॉन में कई कारें रखी गई थीं और कई अधिकारी अलग समूहों में पत्रकारों से बात कर रहे थे। वे भारत में लक्ज़री कारों की शुरुआत की प्रेस कॉन्फ़्रेंस थी। बिज़नेस या कॉरपोरेट रिपोर्टिंग में मैं भी नया था। ठीक से याद नहीं है, पर सवाल था कि क्या आपको भारत में इतनी महंगी (या लक्ज़री) गाड़ियों का बाजार दिखता है। इसका जवाब ‘5 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था हो ही जाएगी’ के आत्मविश्वास के साथ और 5 ट्रिलियन का लक्ष्य रखा है उसके लिए काम करना है - दोनों तरह से दिया जा सकता था। जहाँ तक मुझे याद है, अधिकारी लगभग नाराज़ हो गए थे कि हमने इतना निवेश क्या बाजार देखे बगैर किया है आदि। जबकि वे कह सकते थे कि हाँ, हमें तो बाजार नज़र आ रहा है। इसके विस्तार में जाते या नहीं वह मुद्दा नहीं था। उसी तरह अगर कोई कंपनी भारत में कार बेच रही है तो उसे उम्मीद होगी ही। बेचने के उपाय भी करेगी। पर बिना बिके बुकिंग से तय नहीं होगा कि मंदी नहीं है।

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