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कोरोना: केरल में 22 हज़ार नये मामले, राज्य में देश के 50% केस क्यों?

कोरोना: केरल में 22 हज़ार नये मामले, राज्य में देश के 50% केस क्यों?

केरल में बुधवार को 24 घंटे में कोरोना संक्रमण के 22 हज़ार से ज़्यादा मामले आए हैं। ये पूरे देश में हर रोज़ आ रहे मामलों के क़रीब 50 फ़ीसदी हैं। आख़िर वहाँ संक्रमण के मामले इतना ज़्यादा कैसे हैं?

केरल में बुधवार को 24 घंटे में कोरोना संक्रमण के 22 हज़ार से ज़्यादा मामले आए हैं। ये पूरे देश में हर रोज़ आ रहे मामलों के क़रीब 50 फ़ीसदी हैं। स्वास्थ्य विभाग द्वारा बुधवार को जारी मंगलवार के 24 घंटों के आँकड़ों के अनुसार पूरे देश में 43,654 नये पॉजिटिव केस आए थे। देश भर में बुधवार के आँकड़े गुरुवार को जारी किए जाते हैं। 

केरल में इस तरह से संक्रमण बढ़ना चिंताजनक स्थिति है। ऐसा इसलिए भी है कि जून महीने से लगातार संक्रमण के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं। देश में दूसरी लहर के शिखर पर होने के दौरान राज्य में हर रोज़ 40 हज़ार से ज़्यादा केस आने लगे थे लेकिन जून के मध्य तक घटकर क़रीब 7 हज़ार मामले हो गए थे। लेकिन इसके बाद से संक्रमण के मामले बढ़ते हुए जुलाई में 20 हज़ार से भी ज़्यादा आने लगे। 24 जुलाई को तो 35 हज़ार से ज़्यादा मामले आए थे। राज्य में फ़िलहाल क़रीब डेढ़ लाख सक्रिए मामले हैं।

बुधवार को जो क़रीब 22 हज़ार मामले आए वह पिछले 24 घंटों में 1,96,902 नमूनों के परीक्षण के बाद आए हैं। इसका मतलब पॉजिटिविटी रेट 11.2 प्रतिशत है। सामान्य तौर पर माना जाता है कि पॉजिटिविटी रेट 5 फ़ीसदी से ज़्यादा है तो चिंताजनक स्थिति है। केरल में सबसे अधिक प्रभावित ज़िलों में मलप्पुरम (3931), कोझीकोड (2400), एर्नाकुलम (2397), पलक्कड़ (1649), कोल्लम (1462), अलाप्पुझा (1461), कन्नूर (1179), तिरुवनंतपुरम (1101) और कोट्टायम (1067) हैं। 

केरल में ऐसे हालात पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने चिंता जताई है। 5 जुलाई से 9 जुलाई तक केरल का दौरा करने वाली केंद्रीय टीम की प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने कहा है कि केरल को कोरोना को नियंत्रित करने के लिए और अधिक काम करने की ज़रूरत है।

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इसको लेकर कुछ सुझाव दिए हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार इसने कहा है कि राज्य में सुपर स्प्रेडर जैसे कार्यक्रम हुए हैं। होम आइसोलेशन को सही से पालन कराया जाना चाहिए क्योंकि एक्टिव केसों के 95 फ़ीसदी लोग होम आइसोलेशन में हैं। कोरोना प्रोटोकॉल का पूरी तरह पालन नहीं हो रहा है। टीकाकरण में तेज़ी लाए जाने की ज़रूरत है। 'इंडिया टुडे' की रिपोर्ट के अनुसार जल्द ही केरल में एक केंद्रीय टीम भेजी जाएगी। 

स्वास्थ्य मंत्रालय ने कोरोना संक्रमण बढ़ने की जिन वजहों का ज़िक्र किया है उसी तरह की स्थिति दूसरे राज्यों में भी है। कोरोना नियमों व प्रोटोकॉल के उल्लंघन को लेकर वैसी ही ख़बरें दूसरे राज्यों से भी आ रही हैं। तो फिर केरल में ही संक्रमण के ज़्यादा मामले क्यों?

केरल में संक्रमण बढ़ने की सबसे बड़ी वजह यह हो सकती है कि राज्य की अधिकतर आबादी अभी भी कोरोना से संक्रमित नहीं हुई है यानी राज्य में हर्ड इम्युनिटी नहीं आई है। 

सरकार द्वारा जारी राज्य-स्तरीय सीरो-सर्वे के आँकड़ों के अनुसार, केरल की छह साल से अधिक उम्र की आबादी की केवल 44 प्रतिशत जनसंख्या ही अब तक कोरोना वायरस से संक्रमित हुई है, जबकि राष्ट्रीय औसत 67 प्रतिशत से अधिक है। सीरो-सर्वे के अनुसार मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा 79 फ़ीसदी लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके होंगे। यह आँकड़ा राजस्थान के लिए 76.2 फ़ीसदी, बिहार के लिए 76 फ़ीसदी और उत्तर प्रदेश के लिए 71 फ़ीसदी है। देश में सबसे ज़्यादा कोरोना संक्रमण के मामले रिकॉर्ड करने वाले महाराष्ट्र में यह 58 फ़ीसदी है। 

इसका मतलब साफ़ है कि दूसरे राज्यों की अपेक्षा केरल की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी इस बीमारी के प्रति ज़्यादा संवेदनशील है। 

अब ऐसे में तर्क दिया जा सकता है कि कुल 3.6 करोड़ की आबादी वाले केरल में सीरो सर्वे के अनुसार 1.6 करोड़ लोग संक्रमित हुए होंगे। यानी क़रीब 2 करोड़ लोग वायरस के प्रति संवेदनशील हैं। जबकि उत्तर प्रदेश की कुल 22 करोड़ आबादी में से सीरो सर्वे के अनुसार 14 करोड़ लोग संक्रमित हुए होंगे। और 8 करोड़ लोग अभी भी संक्रमित नहीं होंगे। ऐसे में सवाल उठाया जा सकता है कि इस हिसाब से यूपी में ज़्यादा मामले आने चाहिए थे। तो आपको बता दें कि हर्ड इम्युनिटी जहाँ कुल आबादी के 70-80 फ़ीसदी लोगों में आ जाती है वहाँ संक्रमण फैलने का ख़तरा बहुत कम हो जाता है। हर्ड इम्युनिटी इससे जितनी ज़्यादा कम होती है ख़तरा उतना ज़्यादा होता है। जैसे कि केरल में 44 फ़ीसदी लोगों के संक्रमित होने की रिपोर्ट है। 

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