केरल के महात्मा गांधी विश्वविद्यालय में पीएचडी स्कॉलर के साथ लंबे वक़्त से कथित तौर पर 'जातिगत भेदभाव' के लिए एक प्रोफेसर नंदूकुमार कलारिकल को अब हटाया गया है। दलित और पीएचडी स्कॉलर दीपा पी मोहनन द्वारा इसके लिए भूख हड़ताल करने के क़रीब एक हफ़्ते बाद यह कार्रवाई की गई।
दीपा पी मोहनन प्रोफ़ेसर को हटाने की मांग को लेकर 29 अक्टूबर से अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर थीं। जब इस मामले में काफ़ी दबाव पड़ा और केरल के एक मंत्री ने कार्रवाई की बात कही तो विश्वविद्यालय के वीसी ने शनिवार को कहा था कि नंदूकुमार कलारिकल का पद वह खुद संभालेंगे। इसमें साफ़ तौर पर यह ज़िक्र नहीं था कि कलारिकल को हटाया गया है। लेकिन सोमवार को महात्मा गांधी विश्वविद्यालय ने साफ़ तौर पर कहा कि नंदूकुमार कलारिकल को इंटरनेशनल एंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनोसाइंस एंड नैनो टेक्नोलॉजी यानी IIUCNN से पूरी तरह से हटा दिया गया है। दलित अधिकार से जुड़े लोगों और संगठनों ने इसे संवैधानिक मूल्यों की जीत बताया।
दीपा नंदूकुमार कलारिकल को संस्थान से हटाने की मांग को लेकर विश्वविद्यालय के बाहर ही धरने पर बैठी थीं। उन्होंने आरोप लगाया है कि नंदूकुमार द्वारा जातिगत भेदभाव किए जाने के कारण उनकी पीएचडी 7 साल में भी पूरी नहीं हो पाई। उन्होंने कहा कि उनकी पीएचडी 2015 में पूरी हो जानी चाहिए थी, जिसे अब तक बढ़ा दी गई है। दीपा ने आरोप लगाया कि उन्हें लैब में जाने से रोकने से लेकर कार्यस्थल पर सीट देने से इनकार करने और यहाँ तक कि उनके वजीफे को रोकने की हद तक जाने तक नंदूकुमार ने उनके लिए जीवन को मुश्किल कर दिया था। द न्यूज़ मिनट की रिपोर्ट के अनुसार, दीपा ने यह भी आरोप लगाया कि नंदूकुमार उनके प्रति असभ्य और अपमानजनक व्यवहार करते थे। दीपा ने कहा कि उनका मानना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि वह अपने बैच में एकमात्र दलित स्कॉलर थीं।
मोहनन ने आरोप लगाया कि कलारिकल के शत्रुतापूर्ण व्यवहार के कारण वह अपने शोध के साथ आगे नहीं बढ़ सकीं। वह मार्च 2011 से आईआईयूसीएनएन में एक शोधकर्ता रही हैं, जब वह एमफिल उम्मीदवार के रूप में वहाँ शामिल हुई थीं। अप्रैल 2012 में पाठ्यक्रम पूरा करने के दो साल बाद वह 2014 में पीएचडी के लिए उसी विभाग में शामिल हो गईं। जब मोहनन ने संस्थान में प्रवेश लिया तो कलारिकल संयुक्त निदेशक थे।
कलारिकल के ख़िलाफ़ मोहनन की शिकायतों में यह भी आरोप लगाया गया है कि उन्हें अन्य संस्थानों में परियोजनाओं को करने के अवसर से वंचित कर दिया गया था। उन्होंने आरोप लगाया है कि उनके शोध कार्यों के लिए संस्थान की सुविधाओं का उपयोग नहीं करने दिया गया, उनकी एमफिल थीसिस को खारिज कर दिया गया था, उन्हें दूसरों के सामने धमकाया गया था, और समय के भीतर एमफिल डिग्री सर्टिफिकेट और ट्रांसफर सर्टिफिकेट की प्रक्रिया को पूरी करने से इनकार कर दिया गया था। इसी को लेकर मोहनन विरोध प्रदर्शन करने की हद तक गईं। इसके बाद पूरा अभियान चलाया गया।
इस विरोध को लेकर राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री आर बिंदू ने 6 नवंबर को दीपा से वादा किया कि उस केंद्र से प्रोफेसर को हटाने के सभी उपाय किए जाएंगे। मंत्री ने कहा था कि यदि विश्वविद्यालय प्रक्रिया में देरी करता है, तो सरकार सीधे नंदूकुमार को हटाने के लिए हस्तक्षेप करेगी।
इसके बाद विश्वविद्यालय की ओर से कहा गया था कि नंदूकुमार द्वारा संभाले जा रहे इंटरनेशनल एंड इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर नैनोसाइंस एंड नैनो टेक्नोलॉजी के निदेशक पद को अब खुद वीसी संभालेंगे।
इससे पहले विश्वविद्यालय ने नंदूकुमार को केंद्र से हटाने के अलावा सभी मांगों पर सहमति जताई थी। हाल ही में जारी विज्ञप्ति में वीसी ने जानकारी दी थी, 'छात्र (दीपा) के शोध को पूरा करने के लिए हम फीस में छूट देंगे, छात्रावास और प्रयोगशाला की सुविधा प्रदान करेंगे और उनके शोध के लिए एक नई मार्गदर्शिका भी प्रदान करेंगे। उनके शोध केंद्र का अधिकार वीसी द्वारा डॉ. नंदूकुमार कलारिकल से लिया जाएगा।'
हालाँकि, इसके बाद भी दीपा और उनके प्रदर्शन में सहयोग करने वाले संगठन भीम आर्मी केरल ने कहा था कि वे विरोध को ख़त्म नहीं करेंगे। आख़िरकार सोमवार को नंदूकुमार को पूरी तरह हटाए जाने के बाद उन्होंने संतोष जताया।