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विपक्षी दलों की सरकारों से क्यों हो रहा है राज्यपालों का टकराव?

विपक्षी दलों की सरकारों से क्यों हो रहा है राज्यपालों का टकराव?

विपक्ष शासित राज्यों केरल और तमिलनाडु में राज्य सरकारों के राज्यपालों के साथ चल रहे टकराव के बाद सवाल यह खड़ा होता है कि तमाम विपक्षी दलों की सरकारों वाले राज्यों में आखिर इस तरह की तनातनी क्यों है? कौन से हैं ऐसे राज्य और वहां कौन हैं राज्यपाल?

तमिलनाडु में सरकार चला रही डीएमके ने राष्ट्रपति द्रौपदी मूर्मू को पत्र लिखकर मांग की है कि राज्य के राज्यपाल आरएन रवि को उनके पद से हटा दिया जाए। डीएमके ने पत्र में लिखा है कि राज्यपाल लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार के कामकाज में रुकावट पैदा कर रहे हैं और सांप्रदायिक नफरत भड़का रहे हैं।

डीएमके ने कहा है कि आरएन रवि राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद के योग्य नहीं हैं। उधर, केरल की सरकार ने फैसला किया है कि वह राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान को चांसलर के पद से हटाने के लिए विधानसभा में अध्यादेश लेकर आएगी। यह फैसला मुख्यमंत्री पी. विजयन की अध्यक्षता में बुधवार को हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया।

मुख्यमंत्री विजयन ने कुछ दिन पहले कहा था कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान आरएसएस के एक टूल के रूप में काम कर रहे हैं और अपनी शक्तियों का दुरुपयोग कर रहे हैं।

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केरल और तमिलनाडु में चल रहे इस टकराव के बाद राज्यपालों का विपक्षी दलों की सरकारों के साथ टकराव का सवाल मीडिया और सियासत के गलियारों में गूंज रहा है। सवाल यह है कि देश में जहां-जहां पर विपक्षी दलों की सरकारें हैं वहां के राज्यपालों की भूमिका को लेकर सवाल क्यों खड़े होते हैं। 

केरल और तमिलनाडु के अलावा कई अन्य विपक्ष शासित राज्यों में भी राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच तनातनी चल रही है। ऐसे राज्यों में पश्चिम बंगाल, पंजाब, झारखंड के साथ ही दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना और उद्धव ठाकरे के कार्यकाल में महाराष्ट्र में राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी की भूमिका पर सवाल खड़े हुए हैं।  

भगत सिंह कोश्यारी

इसमें पहला नाम सामने आता है महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी का। भगत सिंह कोश्यारी की वजह से पिछली महा विकास आघाडी सरकार के दौरान एक साल तक महाराष्ट्र में विधानसभा के स्पीकर का चुनाव नहीं हो सका था। 

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ठाकरे सरकार के दौरान कोश्यारी पहले न तो विधानसभा स्पीकर के चुनाव के लिए तारीख तय कर रहे थे और न ही वोटिंग सिस्टम या वॉइस वोट के पक्ष में थे। इसी वजह से ठाकरे सरकार और राज्यपाल के बीच में तनातनी रही थी। लेकिन जैसे ही बीजेपी ने शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के साथ सरकार बनाई। राज्यपाल ने दो-तीन दिन के अंदर ही विधानसभा स्पीकर के चुनाव की अनुमति दे दी। 

इसके अलावा उद्धव ठाकरे कैबिनेट ने 12 लोगों को विधान परिषद का सदस्य मनोनीत करने की सिफ़ारिश साल 2020 में नवंबर के पहले सप्ताह में की थी। लेकिन राज्यपाल कोश्यारी हमेशा से इस पर आनाकानी करते रहे और मंजूरी नहीं दी। बीजेपी-शिंदे सरकार के द्वारा ठाकरे सरकार द्वारा भेजे गए 12 नामों की फाइल वापस लेने के लिए राज्यपाल कोश्यारी को पत्र लिखा गया था। राज्यपाल ने तुरंत इसे स्वीकार कर लिया था। 

तड़के दिला दी थी शपथ 

नवंबर, 2019 में कोश्यारी ने तड़के देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री और अजीत पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला दी थी। आज़ाद भारत के इतिहास में यह पहला मौक़ा था जब आनन-फानन में इतनी सुबह किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाकर मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई थी। 

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जगदीप धनखड़ 

विपक्षी दलों की राज्य सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल देने वाले राज्यपालों में पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल और वर्तमान उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। राज्यपाल बनने के बाद से ही धनखड़ का राज्य सरकार के साथ टकराव होता रहा। धनखड़ से पहले उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ बीजेपी नेता केसरीनाथ त्रिपाठी पश्चिम बंगाल के राज्यपाल थे। उनका भी पूरा कार्यकाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से टकराव में ही बीता था।

कृषि कानूनों पर हंगामे के दौरान साल 2020 में राजस्थान, पंजाब और छत्तीसगढ़ की सरकारों ने अपने राज्यों में विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया था तो इसके लिए पहले तो वहां के तत्कालीन राज्यपालों ने मंजूरी नहीं दी थी और और कई तरह के सवाल उठाए थे। बाद में विधानसभा सत्र बुलाने की मंजूरी दी भी तो विधानसभा में राज्य सरकार द्वारा केंद्रीय कृषि क़ानूनों के विरुद्ध पारित विधेयकों और प्रस्तावों को मंजूरी देने से इंकार कर दिया था। 

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बनवारी लाल पुरोहित

बनवारी लाल पुरोहित

पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित और राज्य की भगवंत मान सरकार के बीच भी टकराव चला था। भगवंत मान सरकार ने जब 22 सितंबर को विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया तो राज्यपाल ने पहले इसे मंजूरी दे दी थी और फिर रद्द कर दिया था। 

इसके बाद मान सरकार ने 27 सितंबर को विधानसभा का सत्र बुलाया तो राज्यपाल ने इसका एजेंडा मांगा जिस पर मुख्यमंत्री भगवंत मान ने नाराजगी जताई। काफ़ी दबाव के बाद उन्होंने विशेष सत्र के लिए मंजूरी दी थी। यह विवाद तब चल रहा था जब कयास लगाए जा रहे थे कि क्या आम आदमी पार्टी के विधायक टूटने वाले हैं। ये कयास इसलिए लगाए जा रहे थे क्योंकि अरविंद केजरीवाल ने आरोप लगाया था कि उनके विधायकों को खरीदने की कोशिश की गई।

रमेश बैस 

झारखंड के राज्यपाल रमेश बैस भी विवादों में हैं। उनपर आरोप है कि वह केंद्र के इशारे पर राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश कर रहे हैं। बताना होगा कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा से सदस्यता के मामले में अभी तक राज्यपाल ने चुनाव आयोग के द्वारा भेजी गई रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया है, जिसे लेकर राज्य में असमंजस वाले हालात बने हुए हैं।

सूत्रों के मुताबिक, चुनाव आयोग ने खनन मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को दोषी ठहराते हुए विधानसभा से उनकी अयोग्यता की सिफारिश की है। राज्यपाल रमेश बैस इस बात को जाहिर नहीं कर रहे हैं कि चुनाव आयोग की सिफारिश में क्या कहा गया है। चूंकि यह सिफारिश बंद लिफाफे में राजभवन को भेजी गयी है इसलिए तरह-तरह की अटकलें लगायी जा रही हैं। राज्यपाल ने कहा है कि निर्वाचन आयोग का लिफाफा वह कब खोलेंगे, इस बारे में फैसला करना उनके अधिकार क्षेत्र में है। 

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विनय कुमार सक्सेना

दिल्ली में सरकार चला रही आम आदमी पार्टी बीते कुछ महीनों में एलजी पर जोरदार ढंग से हमलावर रही है। पार्टी का कहना है कि एलजी पर तमाम गंभीर आरोप लगे हैं और उन्हें खुद ही इनकी जांच के लिए आगे आना चाहिए। एक्साइज घोटाला, कथित डीटीसी बस घोटाला और मुफ्त बिजली योजना पर जांच के आदेश के बाद सरकार और उप राज्यपाल के बीच तनातनी और बढ़ गई है। 

वीके सक्सेना से पहले दिल्ली एलजी अनिल बैजल थे और उनकी भी केजरीवाल सरकार से ज़बरदस्त तनातनी रहती थी। केजरीवाल ने राजनिवास पर धरना भी दिया था। 

उप राज्यपाल और केजरीवाल सरकार के बीच अधिकारों को लेकर कोरोना काल में भी विवाद हुआ। बैजल द्वारा अधिकारियों की बैठक बुलाने पर आप ने कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की थी। मनीष सिसोदिया ने इसे संविधान और सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार करके बुलाई बैठक करार दिया था।

केरल और तमिलनाडु की सरकारों के रूख से पता चलता है कि उनका राज्यपालों के साथ घमासान बढ़ सकता है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि तमाम विपक्षी दलों की सरकारों वाले राज्यों में आखिर इस तरह का घमासान क्यों है और यह घमासान कैसे थमेगा। 

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