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कठुआ मामले में मीडिया के एक वर्ग की भूमिका और संवेदनहीन होते लोग

कठुआ मामले में मीडिया के एक वर्ग की भूमिका और संवेदनहीन होते लोग

कठुआ मामले में फ़ैसला आ गया है और कहा जा रहा है कि बच्ची को इंसाफ़ मिला है। लेकिन मीडिया के एक वर्ग ने हर ऐसी घटना को धार्मिक रंग देना शुरू कर दिया है।

बहुचर्चित कठुआ गैंगरेप व मर्डर केस में 17 महीने बाद आख़िरकार फ़ैसला आ गया है और कहा जा रहा है कि बच्ची को इंसाफ़ मिला है। हालाँकि कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस वीभत्स अपराध के लिए दोषियों को फांसी की सजा दी जानी चाहिए थी। बता दें कि पठानकोट की अदालत ने मामले में कुल 6 लोगों को दोषी क़रार दिया है, इनमें से 3 को उम्रक़ैद और तीन अन्य को 5-5 साल क़ैद की सजा सुनाई है, जबकि मुख्य दोषी सांझी राम के बेटे विशाल को बरी कर दिया गया है।

बता दें कि जम्मू के कठुआ में हुई इस घटना की गूँज पूरे देश में सुनाई दी थी। यह मामला 9 अप्रैल 2018 को तब सुर्खियों में आया था, जब पुलिस ने कठुआ की अदालत में आरोप पत्र दायर किया था लेकिन पुलिस को आरोप पत्र दाख़िल करने से रोकने के लिए स्थानीय वकीलों ने जमकर हंगामा किया था। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने मामले में हस्तक्षेप कर इस मुक़दमे को पठानकोट में स्थानांतरित करने का आदेश दिया था। 

मीडिया रिपोर्टिंग पर उठे थे सवाल 

उस दौरान इस मामले में मीडिया की रिपोर्टिंग पर भी सवाल उठे थे। प्रमुख हिंदी अख़बार दैनिक जागरण ने ‘कठुआ की बच्ची से नहीं हुआ था दुष्कर्म’ शीर्षक से ख़बर प्रकाशित की थी। इसके अलावा एक निजी न्यूज़ चैनल ने भी इस बात को साबित करने की भरसक कोशिश की बच्ची के साथ मंदिर में बलात्कार नहीं हुआ था। इन दोनों मीडिया घरानों की देखा-देखी कई अन्य छोटे मीडिया संस्थानों ने भी इसी लाइन को ले लिया था।इसके बाद यह मामला ख़ासा तूल पकड़ गया था। क्योंकि पुलिस की ओर से दाख़िल की गई चार्जशीट में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि आठ साल की इस बच्ची का अपहरण किया गया था। उसके बाद गाँव के एक मंदिर में उसके साथ चार दिन तक बलात्कार किया गया और फिर उसकी हत्या कर दी गई।

इसके अलावा बच्ची के शव का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर की कोर्ट में पेशी हुई थी। गवाह के रूप में फ़ॉरेंसिक साइंस लैब के एक्सपर्ट को भी पेश किया गया था। बताया जा रहा है कि इन्हीं एक्सपर्ट ने बच्ची के कपड़ों की जाँच की थी।

पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर ने कोर्ट को बताया था कि दुष्कर्म करने से पहले बच्ची को नशीली गोलियाँ खिलाई गई थीं, जो इतनी तेज़ थीं कि बच्ची की आवाज़ तक नहीं निकली और नशे की हालत में ही बच्ची से दुष्कर्म किया गया। डॉक्टर ने कोर्ट को बताया था कि बच्ची की मौत दम घुटने से हुई और बच्ची के साथ हैवानियत हुई थी।

यह माना गया कि साफ़ तौर पर दोषियों को बचाने के लिए ही इस तरह की ख़बरें मीडिया के एक वर्ग की ओर से प्रकाशित की गईं। जागरण की इस ख़बर के बाद कई लोग सोशल मीडिया पर दोषियों के समर्थन में उतर आए थे और मीडिया भी दो हिस्सों में बँट गया था।

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दोषियों के समर्थन में निकाली गई थी रैली।

मामले ने तब सांप्रदायिक रंग ले लिया था जब तत्कालीन पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार का हिस्सा रहे बीजेपी के दो मंत्रियों, चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने दोषियों के समर्थन में निकाली गई रैली में हिस्सा लिया था। यह मामला पीडीपी और बीजेपी के बीच विवाद का विषय बन गया था, जिसके बाद दोनों मंत्रियों को अपने पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा था। 

मीडिया का एक वर्ग यह मानता था कि पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर, पुलिस की चार्जशीट और फ़ॉरेंसिक साइंस लैब के एक्सपर्ट की बात सही है जबकि दूसरा वर्ग ऐसा बन गया था जो यह साबित करने में जुटा था कि बच्ची के साथ बलात्कार नहीं हुआ है।

एक वर्ग बच्ची को इंसाफ़ दिलाने के लिए खड़ा था तो दूसरा वर्ग पूरे मामले को ग़लत बताने में जोर-शोर से जुट गया और उसने पूरी निर्लज्जता के साथ दोषियों का बचाव किया। उसके बाद यह मामला पूरी तरह हिंदू-मुसलिम बना दिया गया और मीडिया की रिपोर्टिंग भी उसी तरह बँट गई। कई तरह की भ्रामक ख़बरों के बाद स्थिति यह हो गई कि लोगों को सही जानकारी नहीं मिल सकी।

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केस लड़ने वालीं वकील दीपिका राजावत।

पीड़ित बच्ची के लिए इंसाफ़ की लड़ाई लड़ रहीं वकील दीपिका राजावत को इस केस को लड़ने पर कई तरह की धमकियाँ मिलने की बात सामने आई थी। दीपिका ने बताया था कि उन्हें इस केस से हट जाने के लिए कहा जा रहा है और जान से मारने की धमकी दी जा रही है।

कठुआ की घटना पर मीडिया के एक वर्ग की रिपोर्टिंग और सोशल मीडिया पर इसे लेकर आई कुछ बेहद ख़राब टिप्पणियाँ इस बात को बताती हैं कि हम किस कदर संवेदनहीन हो चुके हैं।

मासूम बच्ची के साथ बलात्कार और हत्या जैसी वीभत्स वारदात में भी हम धर्म देखने लगे हैं। इन दिनों अलीगढ़ में एक ढाई साल की मासूम ट्विकंल के साथ बलात्कार और हत्या के बाद इसे भी हिंदू-मुसलिम का रंग देने की कोशिश की जा रही है।

आख़िर ऐसा क्यों हो रहा है कि हम ख़ुद इस बात को तय करने के बजाय कि क्या सही है और क्या ग़लत, ग़लत ख़बरें दिखाने में जुटे मीडिया के एक वर्ग और सोशल मीडिया पर चल रही नफ़रत फैलाने वाली ख़बरों और अफ़वाहों पर भरोसा करने लगे हैं। हमें सच्चाई क्या है, इसे समझना होगा, परखना होगा और उसके बाद मजबूती से सच्चाई के साथ ही खड़ा होना होगा तभी हम बलात्कार जैसे जघन्य अपराधों को भी सांप्रदायिक रंग देने वाली ताक़तों को मुँहतोड़ जवाब दे सकेंगे। 

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