आने वाले कुछ महीनों में कर्नाटक में बड़ी चुनावी लड़ाई होनी है। राज्य में मई 2023 में विधानसभा के चुनाव होने हैं और यहां बीजेपी का सीधा मुकाबला कांग्रेस से है। बीजेपी इस बात को जानती है कि अगर उसे कर्नाटक की सत्ता में वापसी करनी है तो राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा की नाराजगी को हर हालत में दूर करना होगा।
कर्नाटक में 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था और तब कांग्रेस और जेडीएस ने मिलकर सरकार बनाई थी। लेकिन यह सरकार 14 महीने ही चली थी और कांग्रेस और जेडीएस के विधायकों की बगावत या ऑपरेशन लोटस की वजह से गिर गई थी।
इसके बाद येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी ने राज्य में सरकार बनाई थी।
पिछले साल बीजेपी ने जब येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर बसवराज बोम्मई को बैठाया था तो इस काम में उसके पसीने छूट गए थे।
येदियुरप्पा राज्य में ताकतवर लिंगायत समुदाय से आते हैं। कर्नाटक में इस समुदाय की आबादी 17 फ़ीसदी है। कर्नाटक में नेतृत्व परिवर्तन के लिए बीजेपी हाईकमान और संघ परिवार को लिंगायत समुदाय की नाराजगी का डर था इसलिए येदियुप्पा को हटाने में पार्टी को लंबा वक्त लग गया था। येदियुरप्पा को हटाने के पीछे तर्क दिया गया था कि उनकी उम्र 75 साल से ज्यादा हो चुकी है।
यह माना गया था कि मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाए जाने की वजह से येदियुरप्पा नाराज हैं। कुछ दिन पहले कर्नाटक के इस दिग्गज नेता ने इस बात का संकेत भी बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को दिया है।
विजय संकल्प यात्रा
12 दिसंबर को कर्नाटक के कोप्पल इलाके में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की अगुवाई में विजय संकल्प यात्रा शुरू होनी थी। लेकिन येदियुरप्पा ने कहा था कि वह इस यात्रा में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने इसके पीछे पहले से तय कुछ कार्यक्रमों में व्यस्त होने का हवाला दिया था। लेकिन यह स्पष्ट तौर पर माना गया था कि वह बीजेपी की राज्य इकाई और केंद्रीय नेतृत्व से नाराज हैं।
बीजेपी नेतृत्व जानता है कि कर्नाटक की सत्ता में उसकी वापसी तब तक नहीं हो सकती जब तक येदियुरप्पा उसके साथ मजबूती से खड़े ना हों। इसलिए कुछ महीने ही येदियुरप्पा को ताकतवर संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया था।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, जब येदियुरप्पा ने विजय संकल्प यात्रा में शामिल ना होने का ऐलान किया था तो राज्य में पार्टी के प्रभारी अरुण सिंह ने मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी इस मुद्दे पर बातचीत की थी। अमित शाह की येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र के साथ दिल्ली में बैठक हुई थी। इसके बाद येदियुरप्पा विजय संकल्प यात्रा में शामिल होने के लिए राजी हुए थे।
बीजेपी सत्ता में वापस लौटने के मकसद से इस यात्रा को निकाल रही है। अगर जेपी नड्डा के साथ राज्य बीजेपी के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा नहीं दिखाई देते तो इससे पार्टी नेतृत्व की किरकिरी होना तय था इसलिए पार्टी नेतृत्व को येदियुरप्पा को साथ लाने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी।
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, येदियुरप्पा ने कहा है कि इस बात में कोई सच्चाई नहीं है कि बीजेपी उन्हें राजनीतिक रूप से खत्म करने की कोशिश कर रही है। इस दिग्गज नेता ने कहा कि राजनीति में कोई किसी को खत्म नहीं कर सकता, उनकी अपनी ताकत है, उन्होंने पार्टी को बनाया है और आगे भी वह पार्टी की मजबूती के लिए काम करते रहेंगे।
कहा जाता है कि येदियुरप्पा चाहते हैं कि उनके दोनों बेटों- बी.वाई. विजयेंद्र और बी.वाई. राघवेंद्र को बेहतर राजनीतिक जगह दी जाए।
येदियुरप्पा न सिर्फ कर्नाटक में बीजेपी के सबसे कद्दावर नेता हैं बल्कि पूरे राज्य में वे काफी लोकप्रिय हैं। कर्नाटक की राजनीति में वह पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा के सामने खड़े होते हैं। येदियुरप्पा किसान नेता भी हैं और वह किसानों के बीच बेहद लोकप्रिय हैं।
दमदार नेता हैं येदियुरप्पा
2008 के कर्नाटक विधानसभा चुनाव में येदियुरप्पा के नेतृत्व में बीजेपी ने शानदार जीत हासिल की थी लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उन्हें अगस्त 2011 में मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था। इसके बाद येदियुरप्पा कुछ वजहों से पार्टी से नाराज़ हो गए थे और कर्नाटक जनता पक्ष नाम से पार्टी बनाकर बीजेपी को अपनी ताक़त का अहसास कराया था। इस वजह से 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता से बाहर होना पड़ा था।
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी आलाकमान को येदियुरप्पा को बहुत मनाने के बाद उन्हें पार्टी में वापस लाना पड़ा था। कर्नाटक में कांग्रेस-जेडीएस की सरकार गिराने और बीजेपी की सरकार बनाने का श्रेय येदियुरप्पा को ही जाता है। इसलिए पार्टी हाईकमान उन्हें नाराज़ करने का जोख़िम नहीं ले सकता।
बीजेपी नेतृत्व को भी इस बात का अंदाजा है कि येदियुरप्पा अगर नाराज़ रहे तो न सिर्फ लिंगायत समुदाय के लोग बल्कि किसान भी बीजेपी से दूर हो सकते हैं। यही वजह है कि बीजेपी नेतृत्व येदियुरप्पा को कतई नाराज नहीं रखना चाहता।
ताकतवर है लिंगायत समुदाय
224 सीटों वाले कर्नाटक में इस समुदाय का असर 90-100 विधानसभा सीटों पर है। कर्नाटक में इस समुदाय के 500 से ज्यादा मठ हैं। तमाम बड़े नेता लिंगायत समुदाय के मठों में जाते रहे हैं। कुछ महीने पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भी लिंगायत समुदाय के मठ में गए थे और वहां जाकर दीक्षा ली थी।
लिंगायत समुदाय की राजनीतिक ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने 68 सीटों पर इस समुदाय के नेताओं को टिकट दिया था जबकि कांग्रेस ने 49 सीटों पर और जेडीएस ने 41 सीटों पर लिंगायत समुदाय के नेताओं को चुनाव मैदान में उतारा था।
येदियुरप्पा को कर्नाटक की राजनीति में सबसे दमदार नेता माना जाता है। येदियुरप्पा ने बीजेपी में सामान्य कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है। वह बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके हैं।