भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने कर्नाटक के अपने बागी नेता बसनगौड़ा पाटिल यतनाल के खिलाफ सख्त कार्रवाई करते हुए उन्हें बुधवार को पार्टी से छह साल के लिए निष्कासित कर दिया। यतनाल राज्य इकाई के अध्यक्ष बी. वाई. विजयेंद्र और उनके पिता, पूर्व मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा से लंबे समय से विवाद में थे। बीजेपी नेतृत्व का यह कदम यतनाल को उनकी कथित पार्टी-विरोधी गतिविधियों के लिए दूसरी कारण बताओ नोटिस जारी करने के लगभग छह सप्ताह बाद आया है।
यतनाल का निष्कासन बीजेपी के हलकों में इस संकेत के रूप में देखा जा रहा है कि विजयेंद्र नवंबर 2026 में अपने तीन साल के कार्यकाल को पूरा करने तक राज्य इकाई का नेतृत्व करते रहेंगे। एक वरिष्ठ विधायक और पूर्व केंद्रीय मंत्री यतनाल कई महीनों से विजयेंद्र को उनके पद से हटाने की मांग को लेकर अभियान चला रहे थे। उनके गुट के कुछ सदस्यों, जैसे पूर्व मंत्री रमेश जारकीहोली और पूर्व मंत्री कुमार बंगारप्पा के साथ, यतनाल ने जनवरी और फरवरी में कई बार दिल्ली का दौरा किया था ताकि पार्टी हाईकमान से विजयेंद्र को हटाने का आग्रह किया जा सके।
इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए विजयेंद्र ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि बीजेपी नेतृत्व ने कभी भी अनुशासन के साथ समझौता नहीं किया। उन्होंने कहा, "यतनाल के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई पार्टी की स्थिति पर विस्तृत विचार-विमर्श के बाद की गई।" साथ ही यह दावा किया कि उन्होंने इस विवाद को लेकर नेतृत्व से कभी शिकायत नहीं की। यतनाल को पहला कारण बताओ नोटिस दिसंबर 2024 में बीजेपी नेतृत्व ने जारी किया था, जिसमें उनकी "राज्य-स्तरीय पार्टी नेतृत्व के खिलाफ निरंतर हमले" और "पार्टी निर्देशों की अवहेलना" का उल्लेख था। यतनाल ने इस नोटिस का जवाब देते हुए कहा था कि उन्होंने नेतृत्व को राज्य इकाई में मौजूदा स्थिति से अवगत कराया था।
कर्नाटक में बीजेपी की राजनीति हाल के वर्षों में काफी उथल-पुथल भरी रही है, जिसमें आंतरिक गुटबाजी, नेतृत्व के विवाद और क्षेत्रीय असंतुलन जैसे मुद्दे प्रमुख रहे हैं। लेकिन बागी नेता बसनगौड़ा पाटिल यतनाल के निष्कासन का असर पड़ने की पूरी संभावना है।
विजयेंद्र को नवंबर 2023 में कर्नाटक बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया था, जिसके पीछे उनके पिता येदियुरप्पा का प्रभाव माना जाता है। येदियुरप्पा, एक प्रमुख लिंगायत नेता और दक्षिण भारत में बीजेपी के विस्तार के लिए अहम शख्सियत, अपने बेटे के जरिए राज्य में अपनी पकड़ बनाए रखना चाहते हैं। हालांकि, इस नियुक्ति से पार्टी के भीतर असंतोष बढ़ा, खासकर उत्तरी कर्नाटक के नेताओं जैसे यतनाल के बीच, जो इसे वंशवाद और दक्षिणी कर्नाटक के पक्ष में क्षेत्रीय असंतुलन के रूप में देखते हैं। यतनाल का कहना है कि पार्टी परिवारवाद के खिलाफ है तो कर्नाटक में वो नियम क्यों नहीं लागू हो रहा है।
कर्नाटक बीजेपी में दो प्रमुख गुटों के बीच तनाव लंबे समय से चल रहा है। एक ओर येदियुरप्पा और विजयेंद्र का खेमा है, तो दूसरी ओर बी. एल. संतोष (राष्ट्रीय महासचिव, संगठन) का गुट है, जिसके साथ यतनाल जैसे नेता जुड़े हैं। संतोष, जो संगठनात्मक स्तर पर मजबूत पकड़ रखते हैं, और येदियुरप्पा के बीच राज्य इकाई पर नियंत्रण को लेकर छिपी हुई जंग चल रही है। यतनाल का विद्रोह इस गुटबाजी का एक हिस्सा माना जाता है।
उत्तरी कर्नाटक के नेताओं का मानना है कि पार्टी दक्षिणी कर्नाटक पर ज्यादा ध्यान दे रही है, जिससे क्षेत्रीय असंतोष बढ़ा है। यतनाल ने इसे अपनी निष्कासन के बाद भी उठाया, दावा करते हुए कि वह उत्तरी कर्नाटक के विकास और हिंदुत्व के लिए लड़ते रहेंगे। इसके अलावा, वंशवाद और भ्रष्टाचार के आरोप बीजेपी की छवि को प्रभावित कर रहे हैं, खासकर तब जब वह कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों पर इसी तरह के हमले करती है।
यतनाल उत्तरी कर्नाटक के एक प्रभावशाली नेता हैं और उन्होंने हमेशा इस क्षेत्र के विकास और प्रतिनिधित्व की वकालत की है। उनके निष्कासन से उत्तरी कर्नाटक के बीजेपी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में नाराजगी बढ़ सकती है, जो पहले से ही दक्षिणी कर्नाटक के वर्चस्व को लेकर असंतुष्ट हैं। अगर यतनाल अपने समर्थकों के साथ कोई नया राजनीतिक कदम उठाते हैं, जैसे स्वतंत्र रूप से काम करना या किसी अन्य दल से जुड़ना, तो यह बीजेपी की क्षेत्रीय एकता को कमजोर कर सकता है।
उनके निष्कासन से संतोष गुट कमजोर हो सकता है, लेकिन इससे गुटबाजी पूरी तरह खत्म नहीं होगी। अन्य असंतुष्ट नेता, जैसे रमेश जारकीहोली, चुपचाप अपनी रणनीति बना सकते हैं, जिससे लंबे समय में बीजेपी में आंतरिक तनाव बना रह सकता है।
कर्नाटक में 2028 के विधानसभा चुनावों को देखते हुए, यतनाल का निष्कासन बीजेपी के लिए दोधारी तलवार साबित हो सकता है। एक ओर, यह पार्टी को एकजुट और अनुशासित दिखाने में मदद कर सकता है, जो मतदाताओं को आकर्षित कर सकता है। दूसरी ओर, अगर यतनाल अपने प्रभाव का इस्तेमाल बीजेपी के खिलाफ करते हैं—चाहे निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में या किसी अन्य पार्टी के साथ—तो यह कुछ सीटों पर बीजेपी के वोट बैंक को नुकसान पहुंचा सकता है, खासकर उत्तरी कर्नाटक में।
यतनाल ने अपने निष्कासन को वंशवादी राजनीति (विजयेंद्र की नियुक्ति) और भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई से जोड़ा है। यह नैरेटिव विपक्षी दलों, जैसे कांग्रेस और जनता दल (सेक्युलर), को बीजेपी पर हमला करने का मौका दे सकता है। अगर यतनाल इस मुद्दे को जनता के बीच ले जाते हैं, तो बीजेपी की छवि पर असर पड़ सकता है, खासकर तब जब वह खुद विपक्ष पर वंशवाद के आरोप लगाती रही है।
यतनाल के निष्कासन से बीजेपी ने अपनी अनुशासनात्मक नीति को मजबूत करने की कोशिश की है, लेकिन इसके दीर्घकालिक परिणाम अनिश्चित हैं। यह कदम विजयेंद्र को तात्कालिक राहत दे सकता है, लेकिन उत्तरी कर्नाटक में असंतोष और गुटबाजी को पूरी तरह दबाना मुश्किल होगा। आने वाले महीनों में यतनाल की प्रतिक्रिया और पार्टी की एकता इस प्रभाव को और स्पष्ट करेगी।
रिपोर्ट और संपादनः यूसुफ किरमानी