प्रधानमंत्री मोदी की कर्नाटक के धुरंधर बीजेपी नेता और चार बार के पूर्व सीएम बीएस येदियुरप्पा की मुलाकात ने कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 को लेकर बीजेपी की रणनीति स्पष्ट कर दी है। नाराज येदियुरप्पा को मनाने और उन्हें बीजेपी संसदीय बोर्ड जैसी सर्वोच्च निर्णायक संस्था में लाने में बीजेपी ने देर नहीं लगाई। इस घटनाक्रम की गंभीरता इस बात से झलकती है कि जिस शख्स को बीजेपी ने चार बार सीएम की कुर्सी से हटाया हो, उसे मनाने की पहल पीएम मोदी ने खुद की। यह जानना दिलचस्प होगा कि आखिर येदियुरप्पा आखिर कौन हैं।
दक्षिण भारत में कर्नाटक इकलौता राज्य है, जहां वर्तमान में भाजपा की सरकार है। चुनावी जीत के मामले में अपने शिखर पर चल रही भाजपा नहीं चाहती है कि अगले लोकसभा चुनाव से पहले उसका दक्षिण का किला ढह जाए। इसको बचाने के लिए वह जी जान से लगी हुई है।
कर्नाटक में जीत के लिए भाजपा ने ‘मिशन 136’ का लक्ष्य तय किया हुआ है। इस लक्ष्य को पाने के लिए भाजपा हर दांव चल रही है। फिर चाहे प्रधान मंत्री सहित भाजपा के तमाम नेता लगातार कर्नाटक के दौरे कर रहे हैं। लेकिन उसके लिए कर्नाटक का चुनाव जीतना इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि कर्नाटक भाजपा के सबसे बड़े नेता बीएस येदियुरप्पा भाजपा से नाराज़ चल रहे हैं।
येदियुरप्पा कर्नाटक के सबसे बड़े लिंगायत समुदाय से आने वाले सबसे बड़े नेता हैं, जिनकी अपने समुदाय पर पकड़ काफ़ी मजबूत मानी जाती है। ऐसे में अगर पार्टी येदियुरप्पा को चुनाव से दूर रखती है या फिर उन्हें कम महत्व देती है तो भाजपा को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।
2018 के विधानसभा चुनावों में लिंगायत समुदाय से आने वाले 58 विधायक विधानसभा के लिए चुने गए थे। इसमें से 36 भाजपा ,16 कांग्रेस और 4 विधायक जेडीएस के टिकट पर विधानसभा में पहुंचे थे।
लिंगायत समुदाय की ताकत का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि 2018 के विधानसभा चुनावों में लिंगायत समुदाय से आने वाले 58 विधायक विधानसभा के लिए चुने गए थे। इसमें से 36 भाजपा ,16 कांग्रेस और 4 विधायक जेडीएस के टिकट पर विधानसभा में पहुंचे थे। कर्नाटक की राजनीति में लिंगात समुदाय इतना मजबूत है कि वह अकेले 135 सीटों को प्रभावित करता है। उतरी कर्नाटक में जहां लिंगायत सबसे मजबूत हैं यहां हर पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवार इस समुदाय से होते हैं है।
कर्नाटक की राजनीति में 18 प्रतिशत लिंगायत समुदाय का बड़ा दबदबा है। हर राजनीतिक दल इनको अपने साथ बनाकर रखकर चाहता है। भाजपा के पास जहां येदियुरप्पा के रूप में लिगांयत समुदाय का बड़ा चेहरा हैं। वहीं कांग्रेस के सिद्धारमैया भी लिंगायतों के बड़े नेता माने जाते हैं।
येदियुरप्पा को मनाने के लिए भाजपा ने हाल ही में उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड में शामिल कर बड़ा संदेश दिया है। देखना ये है कि येदियुरप्पा कितना मानते हैं, क्योंकि इससे चार बार मुख्यमंत्री रह चुके येदियुरप्पा को पार्टी ने हर बार मुख्यमंत्री के पद से हटाया। इससे आहत होकर येदियुरप्पा एक बार अपनी अलग पार्टी का गठन भी कर चुके हैं। पार्टी उन्हें मनाने के लिए कितना महत्व देती है यह देखने वाली बात होगी क्योंकि नरेंद्र मोदी के साथ भी उनके रिश्ते बहुत अच्छे नहीं माने जाते हैं। संसदीय बोर्ड में शामिल किये जाने के बाद से माना जा रहा है कि कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा का कद एक बार फिर बढ़ेगा।