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कर्नाटक में दलित छात्रों से सेप्टिक टैंक साफ़ कराया, प्रिंसिपल गिरफ्तार

कर्नाटक में दलित छात्रों से सेप्टिक टैंक साफ़ कराया, प्रिंसिपल गिरफ्तार

भारत में लगभग तीन दशक पहले हाथ से मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध है तो फिर स्कूल में और वह भी दलित छात्रों से ही सेप्टिक टैंक साफ़ कराना कितना बड़ा अपराध?

कर्नाटक के एक स्कूल में दलित छात्र के साथ बेहद अमानवीय व्यवहार किए जाने का मामला सामने आया है। हाथ से मैला ढोने की जिस प्रथा पर तीन दशक पहले प्रतिबंध लगा दिया गया था, वही काम अब स्कूल में दलित छात्रों से कराए जाने का आरोप लगा है। एक स्कूल में छात्रों से सेप्टिक टैंक साफ़ कराने पर स्कूल के प्रिंसिपल और शिक्षक को गिरफ्तार किया गया है। चार संविदा कर्मचारियों को बर्खास्त कर दिया गया है।

यह मामला कर्नाटक के कोलार में मोरारजी देसाई आवासीय विद्यालय का है। स्कूल में कक्षा 6 से 9 तक 19 लड़कियों सहित 243 छात्र हैं। सोशल मीडिया पर आए वीडियो में दलित छात्र एक सेप्टिक टैंक साफ़ करते दिखे थे। एक अन्य वीडियो में छात्रों को सजा दिए जाने की घटना दिखी है जिसमें छात्र रात में अपनी पीठ पर भारी स्कूल बैग के साथ घुटनों के बल बैठे थे। 

आरोप है कि सजा के तौर पर कम से कम चार छात्रों को एक सेप्टिक टैंक में उतरकर उसे अपने हाथों से साफ करने को कहा गया।

इन वीडियो के बाद लोगों में आक्रोश फैल गया। इसके बाद मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को हस्तक्षेप करना पड़ा। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, प्रिंसिपल भरतम्मा और शिक्षक मुनियप्पा को गिरफ्तार कर लिया गया है। उन्हें कर्तव्य में लापरवाही बरतने के आधार पर काम से निलंबित भी कर दिया गया है।

सेप्टिक टैंक और सीवर की हाथ से सफाई के ख़िलाफ लगातार सुप्रीम कोर्ट सख़्त रुख अपनाता रहा है।

ऐसी रिपोर्टें आती रही हैं कि सेप्टिक टैंक, नाली और मल जल की सफ़ाई कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन जारी है। लगातार ऐसी ख़बरें आती रही हैं कि सेप्टिक टैंक की सफ़ाई करने गए कर्मचारी की मौत हो गई। साल भर में ऐसी मौतों की संख्या कई बार 100 से भी ज़्यादा पहुँच जाती है। 

सीवर की सफ़ाई के दौरान सफ़ाई कर्मियों की मौत के लगातार आ रहे मामलों पर सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में केंद्र सरकार को फटकार लगाई थी। सीवर की सफ़ाई के तरीक़ों को लेकर कोर्ट ने कहा था कि किसी भी देश में लोगों को गैस चैम्बर में मारने के लिए धकेला नहीं जाता है। इसने कहा था कि नाले की सफ़ाई में हर महीने चार-पाँच लोग मर रहे हैं। मैला ढोने और सफ़ाई के तरीक़ों को लेकर अदालत ने यह भी कहा कि आज़ादी के 70 साल बाद भी देश में जातिगत भेदभाव हो रहे हैं।

बता दें कि भारत में लगभग तीन दशक पहले हाथ से मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, लेकिन यह प्रथा जारी है। इसकी वजह से हर साल कई मौतें होती हैं। ये मौतें मुख्य रूप से दम घुटने के कारण होती हैं। 

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