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कर्नाटक ने कहा- हिजाब पर बैन नहीं, कोर्ट ने पूछा - अगर संस्थान अनुमति दें, तो क्या आप आपत्ति करेंगे?

कर्नाटक ने कहा- हिजाब पर बैन नहीं, कोर्ट ने पूछा - अगर संस्थान अनुमति दें, तो क्या आप आपत्ति करेंगे?

हिजाब मामले पर कर्नाटक हाईकोर्ट की फुल बेंच में सातवें दिन भी सुनवाई जारी रही। जानिए क्या दलील पेश की गई।

कर्नाटक हाईकोर्ट में आज हिजाब पर अटॉर्नी जनरल जनरल की लंबी चौड़ी दलीलों के बीच फुल बेंच ने कर्नाटक सरकार से पूछा कि हिजाब पर आपका क्या स्टैंड है? संस्थानों में हिजाब की अनुमति दी जा सकती है या नहीं? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि इसे संस्थानों पर छोड़ दिया गया है। तब अदालत ने पूछा कि अगर संस्थान हिजाब की अनुमति देते हैं, तो क्या आपको आपत्ति होगी? इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि अगर संस्थानों को अनुमति देनी है तो जब मुद्दा उठेगा, तो हम निर्णय लेंगे ...।" इस पर अदालत ने कहा कि आपको एक स्टैंड तो लेना ही होगा।

अदालत ने कहा कि हम राज्य सरकार का रुख जानना चाहते हैं कि क्या कॉलेज द्वारा तय की गई वर्दी में एक ही रंग का स्कार्फ या हिजाब पहनने की अनुमति दी जा सकती है। मान लीजिए कि अगर उन्होंने ऐसा दुपट्टा पहना है जो वर्दी के रंग का ही है तो क्या इसकी अनुमति दी जा सकती है ? अटॉर्नी जनरल ने जवाब दिया कि हमने कुछ भी तय नहीं किया है। सरकारी आदेश संस्थान को वर्दी तय करने के लिए पूर्ण स्वायत्तता देता है। राज्य का स्टैंड है.. वर्दी में धार्मिक पोशाक नहीं होना चाहिए।

पिछली सुनवाई (18 फरवरी) पर अटॉर्नी जनरल ने स्वीकार किया था कि हिजाब बैन करने वाले जीओ (सरकारी आदेश) को बेहतर तरीके से लिखा जाना चाहिए था और उसमें हिजाब के संदर्भ से बचा जा सकता था। एजी ने यह भी कहा था कि जीओ ड्राफ्ट करने वाले इसमें एकता और सार्वजनिक व्यवस्था का हवाला देकर "अति उत्साही" हो गए।

इस मामले की सुनवाई कल भी जारी रहेगी। इस फुल बेंच में चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस जे एम खाजी और जस्टिस कृष्णा एम दीक्षित शामिल हैं। इससे पहले आज सुनवाई शुरू होने पर कर्नाटक सरकार ने दोहराया कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। धार्मिक मामलों को शैक्षणिक संस्थानों के बाहर रखा जाना चाहिए। यह बात एजी प्रभुलिंग नवदगी ने आज अदालत के सामने रखी। एजी ने पिछले चार फैसलों का हवाला देते हुए दलील दी कि पोशाक या भोजन जैसे मुद्दों को जरूरी धार्मिक प्रथाओं के हिस्से के रूप में नहीं माना जा सकता है। इस बारे में एक व्यावहारिक नजरिया रखा जाना चाहिए।

एजी ने शिरूर मठ मामले का जिक्र किया और कहा कि जब तक यह एक धर्मनिरपेक्ष गतिविधि नहीं है, तब तक राज्य को धार्मिक मामलों में शामिल नहीं होना चाहिए। नवदगी ने कहा, हमारा रुख है कि हिजाब एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है। डॉ बी आर अंबेडकर ने संविधान सभा में बयान दिया था, जहां उन्होंने कहा था कि हम धार्मिक निर्देशों को शैक्षणिक संस्थानों के बाहर रखें।

एजी के अनुसार, सिर्फ आवश्यक धार्मिक प्रथा को अनुच्छेद 25 के तहत संरक्षण मिलता है, जो नागरिकों को उनकी पसंद के फेथ (धर्म) को मानने की गारंटी देता है। उन्होंने अनुच्छेद 25 के हिस्से के रूप में "धर्म में सुधार" का भी उल्लेख किया।

1 जनवरी को, उडुपी के एक कॉलेज की छह छात्राओं ने कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया (सीएफआई) की एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि कॉलेज के अधिकारियों ने हिजाब पहनकर उन्हें कक्षा में प्रवेश करने से मना कर दिया था। चार दिन बाद जब उन्होंने कक्षाओं में हिजाब पहन कर जाना चाहा तो उन्हें रोक दिया गया।

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