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कर्नाटकः क्यों टली राहुल गांधी की रैली, क्या गुटबाजी है वजह

कर्नाटकः क्यों टली राहुल गांधी की रैली, क्या गुटबाजी है वजह

कांग्रेस नेता राहुल गांधी 9 अप्रैल को कर्नाटक के कोलार में रैली को संबोधित करने जाने वाले थे। लेकिन उनकी रैली अब टाल दी गई है। आखिर इसकी क्या वजह हो सकती है। उनकी रैली बार-बार क्यों टल रही है। क्या इसका संबंध प्रदेश में कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी से भी है।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की कल रविवार को कोलार में होने वाली जनसभा फिर टल गई है। इससे पहले 5 अप्रैल को जनसभा थी। फिर इसे खिसकाकर 9 अप्रैल किया गया। अब इसे टालने हुए 16 अप्रैल नई तारीख तय की गई है। राहुल की रैली बार-बार टलने से तमाम सवाल उठ रहे हैं कि आखिरी असली वजह क्या है।  

कोलार में यह रैली उसी जगह होनी है, जहां 2019 में राहुल ने मोदी उपनाम पर हमला किया था। उनके भाषण के कारण उन्हें दो साल की सजा हुई और फिर सांसद के रूप में अयोग्य ठहराया गया था।

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि कांग्रेस नेताओं के मुताबिक, करीब 25 सीटों के लिए उम्मीदवारों के चयन को लेकर कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और राज्य कांग्रेस अध्यक्ष डी के शिवकुमार के बीच खींचतान तेज हो चुकी, यह रैली टलने का बड़ा कारण हो सकता है। कांग्रेस राहुल की रैली से पहले अपना कर्नाटक का घर पूरी तरह से व्यवस्थित करना चाहती है, ताकि दोनों गुट रैली की तैयारी में पूरी ताकत लगा सकें।

दूसरा बड़ा कारण है, पार्टी नेतृत्व का अभी तक सिद्धारमैया के कोलार से चुनाव लड़ने की इच्छा पर कोई फैसला नहीं लिया गया है। सिद्धरमैया को वरुणा से पहले ही टिकट मिल चुका है लेकिन पूर्व सीएम सिद्धरमैया यह भी कह रहे हैं कि वो दो सीटों से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। कांग्रेस को चिंता है कि इससे सही संदेश नहीं जाएगा।   

इंडियन एक्सप्रेस ने एक वरिष्ठ नेता के हवाले से जिन 25 सीटों पर सिद्धारमैया और शिवकुमार पक्ष में तभेद की बात बताई है, उनमें मैंगलोर नॉर्थ, सिडलघट्टा, सिंधनूर और अर्सीकेरे शामिल हैं। उन्होंने कहा, 'राहुल कैसे जा सकते हैं जब पार्टी को अभी यह तय करना है कि सिद्धारमैया को कोलार से चुनाव लड़ना चाहिए या नहीं? इसके अलावा, चूंकि कुछ सीटों पर असहमति भी है, इसलिए सवाल भी होंगे। हम नहीं चाहते कि हमारे मुख्य मुद्दों - हमारी गारंटी (मतदाताओं के लिए) और सरकार के खिलाफ हमले की 40% कमीशन लाइन से ध्यान हटे।

2018 के चुनाव में, सिद्धारमैया ने वरुणा की अपनी पारंपरिक सीट अपने बेटे के लिए छोड़ दी थी, जो जीत गए थे और अब उन्हें अपने पिता के लिए रास्ता बनाना है। सिद्धारमैया ने तब जिन दो सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से वह चामुंडेश्वरी से हार गए थे और बादामी से जीत गए थे।

कांग्रेस को डर है कि सिद्धारमैया का फिर से दो सीटों से चुनाव लड़ना यह संकेत दे सकता है कि उन्हें वरुणा से जीतने का भरोसा नहीं हैं। साथ ही वो चुनाव प्रचार करने की बजाय इन्हीं दोनों सीटों तक सीमित हो जाएंगे। कांग्रेस उन्हें सबसे लोकप्रिय चेहरा मानती है। पार्टी चाहती है कि सिद्धारमैया राज्य भर में उसके स्टार प्रचारक हों। हालांकि, सिद्धारमैया के करीबी इस विवाद को खारिज करते हैं, यह कहते हुए कि वह वरुणा सीट को लेकर बिल्कुल भी घबराए हुए नहीं हैं।

शनिवार को प्रकाशित द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में, सिद्धारमैया ने कहा कि पार्टी के नेता चाहते थे कि वह कोलार से चुनाव लड़ें क्योंकि इससे पूरे क्षेत्र में कांग्रेस की संभावनाओं में सुधार होगा।

कांग्रेस ने अब तक 10 मई के चुनावों के लिए 224 सीटों में से 166 के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की है, लगभग 58 को छोड़कर जहां कई दावेदार हैं। सूत्रों ने कहा कि इन 58 में से 25 से अधिक सिद्धारमैया और शिवकुमार गुटों के बीच समझौता करना विशेष रूप से कठिन साबित हो रहा है।

जहां कांग्रेस की पहली सूची में ऐसी सीटें शामिल थीं, जहां कमोबेश सभी सहमत थे, वहीं दूसरी सूची में सिद्धारमैया को बाहर का रास्ता दिखाया गया था। मतभेदों के बारे में बात करते हुए, एक वरिष्ठ नेता ने कहा: “हम भाजपा की सूची का इंतजार कर रहे हैं, एक या दो नेता बदल सकते हैं। लेकिन करीब 25 सीटों पर दोनों (सिद्धारमैया और शिवकुमार) अड़े हुए हैं। वे चाहते हैं कि उनके लोगों को टिकट मिले। हालांकि, नेता ने कहा, विवाद किसी बड़े नाम को लेकर नहीं है।

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