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पटाखा प्रतिबंध पर IPS को निलंबित कराना चाहती हैं कंगना?

पटाखा प्रतिबंध पर IPS को निलंबित कराना चाहती हैं कंगना?

पटाखों को नहीं जलाने की बात एक आईपीएस अधिकारी डी रूपा मुद्गल ने कह दी तो हंगामा मच गया। अभिनेत्री कंगना रनौत ने तो आईपीएस अधिकारी डी रूपा को निलंबित करने की माँग भी कर दी। 

दीवाली पर पटाखों पर प्रतिबंध की बात अदालतों और सरकारों ने की। कोरोना और स्वास्थ्य चिंताओं को लेकर डॉक्टर भी प्रतिबंध की वकालत करते रहे और सामाजिक कार्यकर्ता व बुद्धिजीवी वर्ग भी। लेकिन जब अदालतों और सरकारों के निर्देश के अनुसार ही पटाखों को नहीं जलाने की बात एक आईपीएस अधिकारी डी रूपा मुद्गल ने कह दी तो हंगामा मच गया। आईपीएस अधिकारी के ख़िलाफ़ ट्विटर पर कुछ लोगों ने अभियान चलाना शुरू कर दिया और वह ट्रेंड करने लगीं। विवादों में रहने वाली अभिनेत्री कंगना रनौत ने तो आईपीएस अधिकारी को निलंबित करने की माँग भी कर दी। 

इस मामले की शुरुआत दीवाली के दौरान पटाखे पर प्रतिबंध लगाने को लेकर हुई थी। कर्नाटक में भी इस बार हाई कोर्ट ने पटाखों पर प्रतिबंध लगाया और कहा कि सिर्फ़ ग्रीन पटाखे ही जलाए जा सकेंगे। इसी बीच आईपीएस अधिकारी डी रूपा मुद्गल ने भी प्रदूषण को देखते हुए पटाखे नहीं जलाने की अपील की और उन्होंने इसको लेकर फ़ेसबुक पर एक संदेश लिखा। हालाँकि हंगामा ट्विटर पर हुआ।

फ़ेसबुक के उस संदेश को उन्होंने 14 नवंबर को ट्विटर पर पोस्ट किया। पीके नाम के ट्विटर यूज़र ने इस पर प्रतिक्रिया दी कि पटाखे पर प्रतिबंध का सवाल नहीं है बल्कि हिंदू धर्म में सरकार और न्यायपालिका के दखल का सवाल है। 

इसी के जवाब में डी रूपा ने ट्वीट किया, 'पाबंदी निष्पक्ष होनी चाहिए। पटाखे मूल रूप से हिंदू (के लिए) नहीं हैं। वे यूरोपियों के आगमन के साथ आए। दीपावली दीए जलाने व मिठाई आदि बाँटने से अधिक जुड़ा हुआ है। पटाखे खुशी का एकमात्र स्रोत नहीं हो सकते।' इसके बाद ट्रूइंडोलॉजी (True Indology) नाम के ट्विटर हैंडल ने प्रचीन काल में पटाखे जलाए जाने का दावा किया। इस पर डी रूपा ने सबूत देने के लिए कहा। लेकिन इस बीच ट्रूइंडोलॉजी का ट्विटर एकाउंट सस्पेंड कर दिया गया। यहीं से यह विवाद और ज़्यादा बढ़ा। 

तब से लगातार इस मामले में लोग अलग-अलग दलीलें रख रहे हैं और उस पर डी रूपा अपना तर्क भी रख रही हैं। इस बीच कंगना रनौत ने इस मामले में ट्वीट कर डी रूपा पर सवाल खड़े किए। और डी रूपा ट्रेंड करने लगीं। 

कंगना ने अपने ट्वीट में कहा, 'उसे निलंबित कर दिया जाना चाहिए, ऐसे पुलिस कर्मी पुलिस बल के नाम पर शर्म है। हम उसे उसके बुरे तरीक़े को जारी नहीं रखने दे सकते हैं।'

इसके साथ ही उन्होंने ट्वीट किया, 'आरक्षण के साइड इफेक्ट्स, जब अयोग्य और अवांछनीय को ताक़त मिल जाती है तो वे दुरुस्त नहीं करते हैं, बल्कि और बिगाड़ते हैं। मैं उसके व्यक्तिगत जीवन के बारे में कुछ भी नहीं जानती, लेकिन मैं गारंटी देती हूँ कि उसकी निराशा उसकी अक्षमता के कारण बाहर आई है।'

इसके साथ ही कंगना रनौत ने ट्रूइंडोलॉजी के निलंबन को ख़त्म करने के लिए हैशटैग भी ट्वीट किया है। कई और लोगों ने भी ट्रूइंडोलॉजी का यह कहकर समर्थन किया है कि यह प्राचीन काल से जुड़े प्रमाणक तथ्य उजागर करता है। हालाँकि, तथ्यों की पड़ताल करने वाली वेबसाइट 'ऑल्ट न्यूज़' ने ट्रूइंडोलॉजी के कई ऐसे दावों की पड़ताल कर उसे फर्जी बताया है। 

आईपीएस अधिकारी डी रूपा ने अपने ख़िलाफ़ ट्विटर पर छेड़े गए अभियान की सफ़ाई में एक के बाद एक कई ट्वीट किए हैं। उन्होंने लिखा है, 'सरकारी आदेश, उच्चतम स्तर पर लिया गया एक निर्णय (मेरी व्यक्तिगत राय/आदेश नहीं) की सूचना को फैलाने के लिए आप लोग एक अधिकारी को चुप कराने का प्रयास कर रहे हैं। किसलिए क्या आप मुझसे उम्मीद करते हैं कि मैं कहूँ कि सरकार के आदेश का पालन नहीं करें क्षमा करें दोस्तों, ऐसा नहीं होने जा रहा है।'

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा है, 'और एक सरकारी अधिकारी के रूप में, मैं सबसे पहले कहूँगी कि चुनी हुई विधायिका द्वारा बनाए गए और कार्यपालिका द्वारा लागू किए गए क़ानूनों, नियमों का पालन करें। आप उन्हें न्यायपालिका के कठघरे में खड़ा करने के लिए स्वतंत्र हैं। ट्विटर पर नहीं। इस लोकतांत्रिक देश के संविधान द्वारा परिकल्पित राज्य के 3 स्तंभों के लिए सम्मान दिखाएँ।'

बता दें कि डी रूपा वही आईपीएस अधिकारी हैं जिन्होंने जेल में शशिकला को मिलने वाली सुविधाओं को लेकर खुलासा किया था। वह तब कर्नाटक में ही नहीं बल्कि देश भर में चर्चा में रही थीं। भ्रष्टाचार के मामले में जेल की सजा काट रही शशिकला के बारे में तब डीआईजी (जेल) रहीं डी रूपा ने अपने उच्चाधिकारियों को भेजी रिपोर्ट में कहा था कि एआईएडीएमके नेता शशिकला को विशेष किचेन जैसी सुविधाएँ भी मिल रही थीं। इस मामले में तब सिद्धारमैया सरकार ने जाँच के आदेश दिए थे। तब डी रूपा की इसलिए तारीफ़ की गई थी कि राजनीतिक दबाव होने के बावजूद उन्होंने तथ्यात्मक रिपोर्ट दी थी। 

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