+
मुसलिम दुकानदारों पर मंदिरों के प्रतिबंध के पक्ष में कर्नाटक सरकार क्यों?

मुसलिम दुकानदारों पर मंदिरों के प्रतिबंध के पक्ष में कर्नाटक सरकार क्यों?

क्या व्यापार या दुकानदारी भी अब धर्म के आधार पर तय होगा? जानिए, मंदिरों द्वारा मुसलिम दुकानदारों पर क्यों प्रतिबंध लगाया गया और किस आधार पर कर्नाटक सरकार इसको सही ठहरा रही है।

जिस कर्नाटक में हिजाब विवाद उठा था वहीं अब मंदिरों द्वारा मेले में मुसलिम दुकानदारों पर प्रतिबंध लगाने का विवाद उठा है। निशाने पर मुसलिम ही हैं। स्कूली कक्षाओं में भी। धार्मिक आयोजनों को लेकर लगने वाले मेले में भी। स्कूल प्रबंधनों ने हिजाब पर प्रतिबंध लगाया था तो सरकार ने समर्थन किया था और अब जब मंदिरों ने प्रतिबंध लगाया है तो भी सरकार इसके समर्थन में है। सरकार ने मुसलिम दुकानदारों पर प्रतिबंध के पक्ष में तर्क दिए हैं।

यह विवाद इसलिए उछला है कि पिछले सप्ताह कम से कम छह मंदिरों ने प्रतिबंध लगाए हैं। पिछले पाँच दिनों में उडुपी, दक्षिण कन्नड़ और शिवमूगा जिलों में मंदिरों के बाहर बैनर देखे गए हैं जिनमें घोषणा की गई है कि मुसलिम व्यापारियों को दशकों पुरानी स्थानीय परंपराओं को तोड़ते हुए धार्मिक मेलों में स्टॉल लगाने की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह विवाद इसलिए अहम है कि हाल में राज्य में हिजाब विवाद हुआ था। स्कूलों में हिजाब पर प्रतिबंध लगाया गया है और कहा गया है कि शिक्षण संस्थानों में सिर्फ़ यूनिफॉर्म ही चलेगी और किसी धार्मिक पहचान वाली पोशाक की अनुमति नहीं दी जाएगी। हाई कोर्ट ने भी स्कूलों के प्रतिबंध को वाजिब ठहराया है और अब इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई है। इसी बीच अब मुसलिम दुकानदारों पर प्रतिबंध का विवाद आया है। जब यह विवाद बढ़ा तो सरकार ने भी इस पर प्रतिक्रिया दी।

दरअसल, कर्नाटक सरकार ने बुधवार को कुछ मंदिरों द्वारा धार्मिक त्योहारों के दौरान मुसलिम व्यापारियों पर प्रतिबंध लगाने के फ़ैसले का बचाव किया है। विधानसभा में तर्क देने के लिए एक क़ानून का ज़िक्र किया गया है। इस क़ानून के बारे में लोगों को ज़्यादा पता नहीं है। यह क़ानून में प्रावधान है कि मेलों और पवित्र अवसरों के दौरान हिंदुओं के अलावा अन्य लोगों को मंदिर परिसर के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी जा सकती है।

इस क़ानून का ज़िक्र राज्य के क़ानून मंत्री, शिक्षा मंत्री और खुद मुख्यमंत्री ने भी किया। मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने कहा है कि अगर प्रतिबंध क़ानूनी हैं तो सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। 'हिंदुस्तान टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार, विधानसभा में राज्य के क़ानून मंत्री जेसी मधुस्वामी ने कहा कि 2002 में पारित हिंदू धार्मिक संस्थान और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम के अनुसार, एक हिंदू धार्मिक संस्थान के पास की जगह को दूसरे धर्म के व्यक्ति को पट्टे पर देना प्रतिबंधित है। 

उन्होंने कहा, 'अगर मुसलिम व्यापारियों पर प्रतिबंध लगाने की ये हालिया घटनाएँ धार्मिक संस्थानों के परिसर के बाहर हुई हैं तो हम उन्हें सुधारेंगे। अन्यथा, मानदंडों के अनुसार, किसी अन्य समुदाय को परिसर में दुकान स्थापित करने की अनुमति नहीं है। मंत्री ने इसका भी ज़िक्र किया कि 2002 में कांग्रेस सरकार थी।

मुख्यमंत्री बोम्मई ने क़ानून मंत्री का बचाव किया और कहा कि क़ानून के अनुसार, गैर-हिंदुओं को त्योहारों के दौरान मंदिरों के पास स्टॉल लगाने की अनुमति नहीं है।

उन्होंने कहा, 'ऐसे जठरे (धार्मिक मेलों) के दौरान, बहुत सारी दुकानें हैं जो सब-लीज पर हैं। मंदिर प्रबंधन बोर्ड से लीज लेने वाले ये लोग पैसे के लिए करते हैं। यह कुछ ऐसा है जिसमें सरकार हस्तक्षेप नहीं कर सकती है। जब ऐसे मामले होंगे, तो हम क़ानूनों के साथ-साथ मामले के तथ्यों पर भी ग़ौर करेंगे।'

इधर विधानसभा के बाहर शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कक्षाओं में हिजाब पर प्रतिबंध को बरकरार रखने वाले कर्नाटक उच्च न्यायालय के हालिया फ़ैसले के विरोध में बुलाए गए बंद की प्रतिक्रिया के रूप में प्रतिबंध को उचित ठहराया। उन्होंने कहा, 'हमेशा किसी भी चीज़ के लिए प्रतिक्रिया होती है। विज्ञान के लोग जानते हैं कि क्रिया और प्रतिक्रिया समान और विपरीत हैं।'

बता दें कि ये लोकप्रिय हिंदू धार्मिक मेलों में आमतौर पर सभी धर्मों के सदस्य एक-दूसरे के साथ व्यापार करते हैं। लेकिन इस बार तटीय कर्नाटक के सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील जिलों में पोस्टर सामने आए हैं जो पहले से ही कक्षाओं में हिजाब पर प्रतिबंध लगाने के कारण उबाल पर थे।

मंगलुरु के होसा मारिगुडी मंदिर ने 22 मार्च को होने वाली वार्षिक सुग्गी मारी पूजा में मुसलिम व्यापारियों के स्टॉलों की नीलामी में भाग लेने पर रोक लगा दी थी। फिर 23 मार्च को शिवमोग्गा के कोटे मरिकंबा जात्रे में एक ठेकेदार ने स्टॉल नीलामी आवंटन को रद्द कर दिया। मंदिर समिति ने मुसलमानों को दिए गए स्टॉलों को रद्द करने के लिए कहा था। उडुपी जिले के कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर मेले में मंगलवार को प्रतिबंध की घोषणा की गई। उसी दिन बप्पंडु दुर्गापरमेश्वरी मंदिर के सामने मुस्लिम व्यापारियों पर प्रतिबंध की घोषणा करने वाले बैनर लगाए गए थे। एक बैनर में लिखा है, 'संविधान के ख़िलाफ़ और मवेशियों को मारने वालों के लिए कोई अनुमति नहीं है।'

 - Satya Hindi

प्रतीकात्मक तसवीर।

इस मुद्दे को विपक्ष के उपनेता यूटी कादर और कांग्रेस विधायक रिजवान अरशद ने उठाया था। कादर ने कहा कि जो लोग कायर और क्रूर इंसान थे उन्होंने ऐसे पोस्टर लगाए। इसका भारतीय जनता पार्टी के कई विधायकों ने विरोध किया। 

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलुरु में होसा मारिगुडी मंदिर प्रबंधन समिति के अध्यक्ष रमेश हेगड़े ने कहा कि हिंदू संगठनों की अपील के बाद प्रतिबंध लगाया गया था। उन्होंने कहा, 'उन्होंने कहा कि जो लोग उच्च न्यायालय के फैसले का सम्मान नहीं करते हैं उन्हें मंदिर उत्सव में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। हम कानून-व्यवस्था की समस्या नहीं चाहते थे, इसलिए हमने यह फैसला लिया है।' शिवमोग्गा में भी मंदिर के एक अधिकारी ने कहा कि हिंदू कार्यकर्ताओं ने स्थानीय मंदिर समिति से मुस्लिम व्यापारियों के स्टालों के आवंटन को रद्द करने के लिए कहा। अधिकारी ने कहा कि कई सालों से मुस्लिम और ईसाई त्योहार में हिस्सा ले रहे थे।

सत्य हिंदी ऐप डाउनलोड करें