कर्नाटक सरकार ने हाईकोर्ट में कहा, भारत में हिजाब पर बैन नहीं, अल्पसंख्यक संस्थाओं में कोई रोक नहीं
कर्नाटक हाईकोर्ट में हिजाब मामले की सुनवाई 8वें दिन भी जारी रही। इस दौरान विशेष उल्लेख में कर्नाटक सरकार के अटॉर्नी जनरल ने कहा कि राज्य की अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं में हिजाब पर कोई रोक नहीं है। वहां मुस्लिम छात्राएं हिजाब पहन सकती हैं। एजी का यह आश्वासन एक अलग याचिका के संदर्भ में था। अल्पसंख्यक संस्थाओं की फेडरेशन की याचिका को कोर्ट ने इस आश्वासन के बाद निपटा दिया। लेकिन हिजाबी छात्राओं की याचिका पर बहस जारी रही।कर्नाटक सरकार के एजी प्रभुलिंग नवदगी ने मंगलवार को हाईकोर्ट में कहा कि सरकारी संस्था के अनुशासन के दायरे में उचित प्रतिबंधों के साथ भारत में हिजाब पहनने पर कोई प्रतिबंध नहीं है। अटॉर्नी जनरल नवदगी ने कहा कि हेडस्कार्फ़ पहनने का अधिकार 19 (1) (ए) की श्रेणी में आता है, न कि अनुच्छेद 25 में, जैसा याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है। अगर कोई हिजाब पहनना चाहता है, तो 'संस्थागत अनुशासन के दायरे में कोई प्रतिबंध नहीं है।
चीफ जस्टिस ऋतुराज अवस्थी, जस्टिस जे एम खाजी और जस्टिस कृष्णा एम. दीक्षित की फुल बेंच हिजाब मामले की सुनवाई कर रही है। यह सुनवाई कल 9वें दिन भी जारी रहेगी। नवदगी ने कहा कि मौजूदा मामले में संस्थागत प्रतिबंध सिर्फ शैक्षणिक संस्थानों के अंदर है और कहीं नहीं है। लड़कियां कैंपस में हिजाब पहन सकती हैं लेकिन क्लास के अंदर नहीं। अनुच्छेद 19 (1) (ए) का स्वतंत्र दावे का तर्क अनुच्छेद 25 के साथ नहीं चल सकता। नवदगी ने अदालत से कहा-
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अगर हिजाब को एक आवश्यक धार्मिक प्रथा के रूप में अनिवार्य घोषित किया गया तो इसके नतीजे अच्छे नहीं आएंगे। क्योंकि मजबूरी में हिजाब पहनना पड़ेगा। जो नहीं मानेगा, समुदाय उसे समाज से निकाल देगा।
प्रभुलिंग नवदगी, अटॉर्नी जनरल, कर्नाटक सरकार
उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 19 (1) (ए) भारतीय संविधान की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित है। अनुच्छेद 19 (2) कहता है कि खंड (1) के उप खंड (ए) में कुछ भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा, या राज्य को कोई कानून बनाने से नहीं रोकेगा, जहां तक कि ऐसा कानून अभ्यास पर उचित प्रतिबंध लगाता है।
बता दें कि 1 जनवरी को, उडुपी के एक कॉलेज की छह छात्राओं ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में आरोप लगाया था कि उन्हें हिजाब पहनकर क्लास में नहीं जाने दिया जा रहा है। इसके बाद कर्नाटक सरकार ने इस संबंध में आदेश जारी किया था और पूरी तरह रोक लगा दी थी। सरकार के आदेश को कर्नाटक हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है।