कर्नाटक में नई कांग्रेस सरकार राज्य में हिजाब पर लगे प्रतिबंध को हटा सकती है। सरकार ने कहा है कि वह एमनेस्टी इंडिया द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर से प्रतिबंध हटाने की मांग किए जाने के मामले पर विचार करेगी।
इस मामले में कर्नाटक के मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जी परमेश्वर ने कहा है कि सरकार भविष्य में इसको देखेगी। उन्होंने एएनआई से कहा, 'हम भविष्य में देखेंगे कि हम क्या कर सकते हैं। फिलहाल, हमें कर्नाटक के लोगों से की गई पांच गारंटियों को पूरा करना है।' हालाँकि, एक अन्य कैबिनेट मंत्री प्रियांक खड़गे ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि कांग्रेस हिजाब, हलाल कट और गोहत्या क़ानूनों पर से प्रतिबंध वापस लेने पर विचार करेगी। प्रियांक ने कहा कि अगर राज्य की शांति भंग होती है तो उनकी सरकार बजरंग दल और आरएसएस जैसे संगठनों पर प्रतिबंध लगा देगी, और यदि भाजपा नेतृत्व को यह अस्वीकार्य है तो वे पाकिस्तान जा सकते हैं। हालाँकि, सरकार की ओर से इस पर आधिकारिक बयान नहीं आया है कि इन क़ानूनों को वापस लिया जाएगा या नहीं।
10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने जोरदार ढंग से कहा था कि राज्य में पार्टी के सत्ता में आने के बाद पिछली भाजपा सरकार द्वारा हिजाब पर प्रतिबंध और सांप्रदायिक आधार पर बनाए गए सभी कानूनों को वापस ले लिया जाएगा।
लेकिन अब कर्नाटक में हिजाब प्रतिबंध पर एमनेस्टी इंटरनेशनल की बढ़ती चिंता के बारे में पूछे जाने पर उपमुख्यमंत्री शिवकुमार ने बुधवार को विधान सौधा में कहा, 'मैं हिजाब के मामले पर टिप्पणी नहीं करना चाहता क्योंकि यह एक नीतिगत मामला है।'
ट्वीट्स की एक श्रृंखला में एमनेस्टी इंडिया ने मंगलवार को कर्नाटक सरकार से मानवाधिकारों के लिए तीन कार्रवाइयाँ करने के लिए कहा, जिनमें शैक्षणिक संस्थानों में महिलाओं के हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को तत्काल रद्द करना भी शामिल था।
यह विवाद 2021 के दिसंबर महीने में तब शुरू हुआ था जब उडुपी के एक स्कूल की छात्राओं ने शिक्षकों के अनुरोध के बावजूद स्कार्फ हटाने और उसका इस्तेमाल बंद करने से इनकार कर दिया था। दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने हिजाब के विरोध में भगवा गमछा पहनकर स्कूल जाना शुरू कर दिया था।
उडुपी प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की छह छात्राओं द्वारा शुरू किया गया हिजाब विवाद पिछले साल राज्य में एक संकट बन गया था। हिजाब के बिना कक्षाओं में जाने से इनकार करने वाले छात्रों का अभी भी कहना है कि वे सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे।
इस मुद्दे ने सांप्रदायिक रंग ले लिया था और इसके परिणामस्वरूप राज्य में बदले की भावना से हत्याएँ हुईं। इसने संकट के चरम पर वैश्विक आतंकवादी संगठन अल-कायदा का ध्यान खींचा था। यह आरोप लगाया जाता है कि सत्तारूढ़ भाजपा ने इस मुद्दे का इस्तेमाल अपने हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया, जिससे छात्र समुदाय को बाँटा जा सके।
हिजाब का यह विवाद तब उछला था जब बीजेपी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा एक आदेश जारी किया गया था। उस आदेश में कहा गया था कि स्कूलों और कॉलेजों में ड्रेस कोड अनिवार्य है और हिजाब पहनने के लिए कोई अपवाद नहीं छोड़ा जा सकता है। छात्राओं ने जब इस मुद्दे को अदालत की चौखट तक घसीटा तो कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा था। बाद में, मुस्लिम छात्रों ने इस आदेश का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया और शीर्ष अदालत का अंतिम फ़ैसला आने तक कक्षाओं में भाग लेने से इनकार कर दिया। मामला फिलहाल शीर्ष अदालत में लंबित है।