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क्या येदियुरप्पा की कुर्सी जाएगी या फिर झुकेगा बीजेपी आलाकमान?

क्या येदियुरप्पा की कुर्सी जाएगी या फिर झुकेगा बीजेपी आलाकमान?

लिंगायत समुदाय के धर्मगुरुओं की ओर से बीजेपी को चेताया गया है कि पार्टी आलाकमान येदियुरप्पा को हटाने के बारे में कोई निर्णय न करे। 

क्या कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा की कुर्सी जाने वाली है। क्या बीजेपी आलाकमान उनसे ख़फ़ा हो चुका है। यह सवाल अचानक ही कर्नाटक की सियासत में खड़ा नहीं हुआ है। कर्नाटक में ताक़तवर माने जाने वाले लिंगायत समुदाय के धर्मगुरुओं की ओर से यह राजनीतिक संदेश दिया गया है कि बीजेपी आलाकमान येदियुरप्पा को हटाने के बारे में कोई निर्णय न करे। 

अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, कर्नाटक की बीजेपी सरकार की ओर से हाल ही में आयोजित किये गये एक कार्यक्रम में लिंगायत समुदाय के कई प्रभावशाली संतों ने येदियुरप्पा के कामकाज की प्रशंसा की और कहा कि येदियुरप्पा ने जितना काम लिंगायत समुदाय के पवित्र शहर बसवाकल्याण के लिए किया है, उतना किसी ने नहीं किया। इस दौरान संतों ने चेताया कि अगर येदियुरप्पा को सीएम की कुर्सी से हटाया जाता है तो वे इसका पुरजोर विरोध करेंगे। 

पहले जैसे नहीं रहे संबंध!

कर्नाटक के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि येदियुरप्पा के बीजेपी आलाकमान के साथ संबंध पहले जैसे मधुर नहीं रहे हैं। कुछ ही दिन पहले येदियुरप्पा ने बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाक़ात की थी और तब यह कहा यह गया था कि इस दौरान कर्नाटक में 15 सीटों के लिए होने वाले विधानसभा उपचुनाव में टिकट बंटवारे को लेकर चर्चा हुई है। लेकिन शायद ऐसा नहीं है। 

अख़बार में छपी ख़बर के मुताबिक़, कर्नाटक के एक राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि बीजेपी आलाकमान येदियुरप्पा को ज़्यादा समय तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहते देखना नहीं चाहता और इसके पीछे कई कारण हैं। एक कारण यह है कि येदियुरप्पा कैंप यह महसूस कर रहा है कि राज्य के 17 जिलों में आई बाढ़ के मामले में राज्य सरकार को केंद्र का पूरा सहयोग नहीं मिला है।’ विश्लेषक ने कहा कि बाढ़ से राहत के मामले में मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री से मिलने की भी अनुमति नहीं मिली। 

राज्य के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस और जेडीएस ने इस मुद्दे को लपक लिया है। कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा कि मुख्यमंत्री से मिलने से इनकार करना येदियुरप्पा का अपमान है और राज्य के साथ नाइंसाफ़ी है। जेडीएस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी ने येदियुरप्पा को बाढ़ से राहत के मुद्दे पर मिलने तक का मौक़ा नहीं दिया है। 

हालाँकि येदियुरप्पा ने अभी तक आलाकमान के साथ उनकी अनबन को ज़ाहिर नहीं होने दिया है और कहा है कि विपक्षी दल इस पर बेवजह राजनीति कर रहे हैं। येदियुरप्पा ने कहा, ‘छह से सात राज्यों में बाढ़ की स्थिति एक जैसी है और केंद्र जल्द ही सभी राज्यों के लिए फ़ंड जारी करेगा।’ 

सबसे पहले येदियुरप्पा के पर कतरने की कोशिश तब की गई थी जब उनकी सरकार में तीन डिप्टी सीएम बना दिये गये थे। तीन डिप्टी सीएम बनाये जाने से निश्चित रूप से येदियुरप्पा की वैसी पकड़ सरकार में नहीं रह गयी है, जैसी पहले हुआ करती थी।

बीजेपी की सरकार बन जाने के बाद भी पहले आलाकमान ने मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की इजाज़त देने में देर की, फिर मंत्रिमंडल का विस्तार और विभागों के बंटवारे को लेकर भी येदियुरप्पा की पूरी मर्जी नहीं चली और फिर तीन डिप्टी सीएम बनाकर उनके हाथ बांध दिये। 

तीन डिप्टी सीएम में से येदियुरप्पा को सबसे ज़्यादा परेशानी लक्ष्मण सावदी से है क्योंकि वह भी येदियुरप्पा की ही तरह लिंगायत समुदाय से आते हैं। कर्नाटक की राजनीति में अब तक लिंगायत समुदाय के बड़े नेता के रूप में येदियुरप्पा को ही माना जाता था लेकिन सावदी के आने से निश्चित रूप से येदियुरप्पा को इस बात का डर है कि उनका राजनीतिक क़द कम हो जाएगा। 

येदियुरप्पा के समर्थन का आधार काफ़ी हद तक उनका लिंगायत समुदाय है। लिंगायत समुदाय का प्रभाव पूरे कर्नाटक में है और कर्नाटक में हर बार चुनाव के समय बीजेपी को लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े नेता येदियुरप्पा को तवज्जो देनी पड़ी है। 

येदियुरप्पा के बेटे विजयेंद्र की शिकायत

अख़बार के मुताबिक़, तीन में से एक उप मुख्यमंत्री ने बीजेपी आलाकमान से शिकायत की है कि येदियुरप्पा के छोटे बेटे बीवाई विजयेंद्र सरकार के कामकाज में दख़ल दे रहे हैं। जेडीएस ने भी बीवाई विजयेंद्र को लेकर कुछ इस तरह के आरोप लगाये हैं। बीवाई विजयेंद्र कर्नाटक की बीजेपी ईकाई के महासचिव हैं और उन्होंने इस बारे में बयान जारी कर कहा है कि इस तरह की ख़बरें पूरी तरह बेबुनियाद हैं और उनके राजनीतिक करियर को बढ़ने से रोकने के लिए फैलाई जा रही हैं। 

येदियुरप्पा कैंप की परेशानी का एक कारण यह भी है कि राज्य बीजेपी के मामलों में उनका दख़ल ख़त्म हो चुका है। क्योंकि बीजेपी ने नलिन कुमार कटील को राज्य की बीजेपी इकाई का अध्यक्ष बना दिया है और उन्हें आलाकमान का आदमी माना जाता है। सूत्रों के मुताबिक़, येदियुरप्पा अपने बेटे विजयेंद्र को बीजेपी में बड़ा पद दिलवाना चाहते थे जबकि आलाकमान वंशवादी राजनीति को आगे बढ़ाने के पक्ष में नहीं था। 

कर्नाटक की राजनीति में येदियुरप्पा की अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि बीजेपी में अघोषित तौर पर सक्रिय राजनीति से संन्यास की उम्र 75 साल है लेकिन इसके बावजूद भी बीजेपी आलाकमान को 76 साल की उम्र में येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। निश्चित तौर पर इसके पीछे येदियुरप्पा की सियासी ताक़त ही बड़ा कारण थी। 

बीजेपी को कराया था ताक़त का अहसास

येदियुरप्पा के नेतृत्व में लड़े गए 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 104 सीट और 2019 के लोकसभा चुनाव में कर्नाटक की 28 सीटों में से 25 सीटें बीजेपी को मिलीं। येदियुरप्पा बीजेपी आलाकमान को अपनी ताक़त का अहसास करा चुके हैं जब उन्होंने अपनी क्षेत्रीय पार्टी कर्नाटक जन पक्ष बना ली थी और बीजेपी को 2013 के विधानसभा चुनाव में सत्ता से बाहर होना पड़ा था। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी आलाकमान को येदियुरप्पा के सामने झुककर उन्हें बीजेपी में वापस लाना पड़ा। 

बीएस येदियुरप्पा को कर्नाटक की राजनीति में सबसे असरदार नेता माना जाता है। येदियुरप्पा ने बीजेपी में सामान्य कार्यकर्ता से लेकर मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया है। वह बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष भी रह चुके हैं।

बता दें कि येदियुरप्पा लंबे समय तक बीजेपी के आलाकमान के करीबी रहे थे लेकिन मई 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जब उन्होंने अपने बेटे विजयेंद्र को आलाकमान की सहमति के बिना चुनाव में उतारने की कोशिश की थी तो आलाकमान उनसे नाराज हो गया था। 

2011 में येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद की कुर्सी से इस्तीफ़ा देना पड़ा था और इस मामले में उनके बेटों पर भी आरोप लगे थे। 2016 में सीबीआई की विशेष अदालत ने उन्हें और उनके बेटों को सभी आरोपों से दोषमुक्त कर दिया था। यह मामला 40 करोड़ की घूस से संबंधित था। 

हाल ही में जब अमित शाह के हिंदी को देश की भाषा बनाने को लेकर बयान देने पर विवाद हुआ था तो येदियुरप्पा ही बीजेपी के अंदर ऐसे शख़्स थे जिन्होंने इसके ख़िलाफ़ आवाज उठाई थी। येदियुरप्पा ने ट्वीट कर कहा था कि कन्नड़ कर्नाटक की प्रधान भाषा है और वह कभी भी इसकी अहमियत से कोई समझौता नहीं करेंगे। 

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