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एनआरसी : कारगिल युद्ध हीरो सना उल्लाह विदेशी घोषित, भेजे गए डीटेंशन कैंप

एनआरसी : कारगिल युद्ध हीरो सना उल्लाह विदेशी घोषित, भेजे गए डीटेंशन कैंप

कारगिल युद्ध के हीरो मुहम्मद सना उल्लाह को असम के डीटेंशन कैंप यानी बंदी गृह भेज दिया गया है। उन्हें फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल ने पहले ही विदेशी घोषित कर दिया था।  

कारगिल युद्ध के हीरो मुहम्मद सना उल्लाह को असम के डीटेंशन कैंप यानी बंदी गृह भेज दिया गया है। उन्हें फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल ने पहले ही विदेशी घोषित कर दिया था।

असम की वरिष्ठ पुलिस अफ़सर मौसुमी कलीता ने इसकी पुष्टि की है। उन्होंने इंडिया टुडे से कहा : 

मुहम्मद सना उल्लाह ने भारतीय सेना में 30 साल तक अपनी सेवाएँ दीं, पर विदेशी घोषित कर दिए गए, और तयशुदा नीति के मुताबिक़, हमने उन्हें डीटेंशन कैंप भेज दिया है। हमने फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल के आदेश का पालन किया, हमें यह नहीं मालूम कि ट्राइब्यूनल ने उन्हें क्यों और किस आधार पर विदेशी घोषित किया है।


बता दें, कि असम में लागू किए गए नैशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़ंस यानी एनआरसी के नियमों के मुताबिक़, 24 मार्च, 1971 तक बांग्लादेश से भारत आए लोगों को यहाँ की नागरिकता दी जाएगी, उसके बाद के लोगों को बाहर कर दिया जाएगा। इसके लिए यह ज़रूरी है कि हर आदमी का नाम एनआरसी में शामिल हो। एनआरसी में नाम शामिल कराने के लिए ख़ुद को भारतीय नागरिक साबित करना होगा और इसके लिए कुछ काग़ज़ात जमा कराने होंगे। 

क्या है मामला

गुवाहाटी की बोर्डर पुलिस ने बुधवार को इस पूर्व सैनिक को बुलाया, वहाँ पहुँचते ही सना उल्लाह को गिरफ़्तार कर डीटेंशन कैंप भेज दिया गया।

यह अजीब विडंबनापूर्ण स्थिति है कि जिस बोर्डर पुलिस ने सना उल्लाह को गिरफ़्तार किया, वे उसी बोर्डर पुलिस में असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर थे।

सेना से रिटायर 55 वर्षीय सना उल्लाह के माता-पिता का देहांत हो चुका है, उनके साथ उनकी पत्नी और बच्चे रहते हैं। पिछले साल बोको स्थित फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल ने उन्हें बुलाया था। ट्राइब्यूनल ने उन्हें ख़ुद को भारतीय साबित करने को कहा। 

सना उल्लाह का जन्म असम में 1967 में हुआ था, वे 1987 में सेना में शामिल हुए। सेना से 2017 में रिटायर होने के बाद उन्हें ऑनरेरी लेफ़्टीनेंट का सम्मान दिया। वे असिस्टेंट सब इंस्पेक्टर के रूप में उसी साल बोर्डर पुलिस में शामिल हो गए।

फ़ॉरनर्स ट्राइब्यूनल में सुनवाई के दौरान सना उल्लाह ने भूल से कह दिया कि वे सेना में 1978 में शामिल हुए, जबकि वे शामिल तो 1987 में हुए थे।

ट्राइब्यूनल ने कहा जब सना उल्लाह सेना में शामिल हुए, उस समय यानी 1978 में 11 साल के थे। लेकिन 11 साल की उम्र में कोई सेना में शामिल हो ही नहीं सकता। बस, इसी आधार पर उनके काग़ज़ात को खारिज कर दिया गया और उन्हें विदेशी घोषित कर दिया गया।

परिवार के लोगों ने सना उल्लाह को विदेशी घोषित करने के फ़ैसले को गुवाहाटी हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए याचिका दायर की है। 

सना उल्लाह के नज़दीकी सहयोगी और रिटायर्ड जेसीओ अज़मल हक़ ने कहा, भारतीय सेना में 30 साल की निस्वार्थ सेवा और कारगिल युद्ध में अहम भूमिका निभाने का यह पुरस्कार सना उल्लाह को दिया गया है। यह हम जैसे तमाम पूर्व सैनिकों के लिए बहुत ही दुख का दिन है।

बता दें कि असम समेत पूरे पूर्वोत्तर में एनआरसी का ज़बरदस्त विरोध हो रहा है। लोग सड़कों पर हैं, तोड़फोड़, आगजनी और पथराव की घटनाएं हुई हैं। पुलिस फ़ायरिंग में अब तक इन इलाक़ों में 5 लोगों की मौत हो चुकी है। असम में सत्तारूढ़ बीजेपी के विधायक तक परेशान हैं और उन्होंंने मुख्यमंत्री से कहा है कि वे इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से बात करें। इसकी बड़ी वजह यह है कि लगभग 19 लाख एनआरसी की अंतिम सूची से बाहर रह गए हैं। 

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