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कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवाणी के शामिल होने से कांग्रेस को फ़ायदा?

कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवाणी के शामिल होने से कांग्रेस को फ़ायदा?

क्या कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी के कांग्रेस पार्टी में शामिल होने से अस्तित्व के लिए जूझ रही कांग्रेस मे नई ताक़त का संचार होगा?

अपने भाषणों, सरकार विरोधी अभियानों और सोशल मीडिया पर गतिविधियों से सरकार को परेशान करते रहने वाले दो युवा नेता कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी अगले सप्ताह कांग्रेस पार्टी में शामिल हो सकते हैं। 

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के नेता कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक मेवाणी भगत सिंह के जन्म शतवार्षिकी के मौके पर 28 सितंबर को डेढ़ सौ साल पुरानी पार्टी में शामिल होंगे। 

मेवाणी गुजरात के दलित नेता और वडनगर से विधायक हैं। समझा जाता है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले दलितों को सकारात्मक संकेत देने के लिए पहले चरणजीत सिंह चन्नी को पंजाब का मुख्यमंत्री बनाया गया और अब मेवाणी को गुजरात ईकाई का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया जा सकता है। 

कन्हैया-जिग्नेश के बहाने?

कन्हैया कुमार सीपीआई के छात्र संगठन ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फ़डरेशन से जुड़े हुए रहे हैं। वे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। 

उन्होंने पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार के बेगसूराय से चुनाव लड़ा था और बीजेपी के उम्मीदवार गिरिराज सिंह से हार गए थे। सिंह बाद में केंद्रीय मंत्री बनाए गए थे। 

लेकिन कन्हैया कुमार ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा था और बीजेपी ने प्रतिष्ठा सवाल बनाते हुए इस सीट पर पूरी ताकत झोंक दी थी। 

कन्हैया कुमार जेएनयू में चर्चा में इसलिए आए थे कि उन पर आरोप लगाया गया था कि उन्होंने देशविरोधी नारे लगाए थे, हालांकि इस आरोप को कभी साबित नहीं किया गया। 

इस मुद्दे पर बीजेपी और उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने बहुत ही शोर मचाया था। इन कारणों से कन्हैया कुमार राष्ट्रीय स्तर पर हीरो बन कर उभरे थे। 

कांग्रेस पार्टी कई कारणों से राजनीतिक संकट से जूझ रही है और एक के बाद एक दिक्क़तें उसके सामने आ रही है। 

पूरे देश में बीजेपी तेज़ी से आगे बढ़ रही है और कांग्रेस पार्टी को जगह जगह हार का सामना करना पड़ रहा है। 

जेएनयू से कांग्रेस

यह मामला जेएनयू में 9 फ़रवरी 2016 को अफ़ज़ल गुरु और मक़बूल भट्ट की बरसी पर कार्यक्रम आयोजित करने से जुड़ा है। 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफ़ज़ल गुरु और एक अन्य कश्मीरी अलगाववादी मक़बूल भट्ट को फाँसी दे दी गई थी।

कन्हैया कुमार और 9 अन्य छात्रों पर आरोप लगा कि वे उस कार्यक्रम में शामिल थे और देश विरोधी नारे लगाए थे। उस मामले में उन्हें जेल हुई थी। अदालत में पेशी के दौरान उन पर हमला भी किया गया था। 

 - Satya Hindi

कन्हैया कुमार जब जेल से निकले तो जेएनयू परिसर में दिये गये उनके भाषण को पूरे देश ने देखा। उन्होंने अपने ऊपर कार्रवाई के लिए सीधे प्रधानमंत्री मोदी को ज़िम्मेदार ठहराया। उस भाषण ने ख़ूब वाहवाही बटोरी।

इसके बाद से वह शानदार भाषण शैली के लिए जाने जाते हैं। वह देश भर में डिबेट में शामिल होते रहे हैं। बिहार विधानसभा चुनाव से पहले सीपीआई की तरफ़ से वह चुनाव में खड़े हुए। हालाँकि वह चुनाव हार गए, लेकिन लगातार उनकी छवि राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती ही गई।

दलित आंदोलन

जिग्नेश मेवाणी दलित आंदोलन का चेहरा रहे हैं। वह पहले पत्रकार, वकील थे और फिर एक्टिविस्ट बने और अब नेता हैं।

मेवाणी तब अचानक सुर्खियों में आए थे जब उन्होंने वेरावल में उना वाली घटना के बाद घोषणा की थी कि अब दलित लोग समाज के लिए मरे हुए पशुओं का चमड़ा निकालने, मैला ढोने जैसा 'गंदा काम' नहीं करेंगे।

इसके बाद से मेवाणी देश भर की सुर्खियों में रहे हैं। उनकी भी मोदी सरकार से ठनती रही है। वह अक्सर प्रधानमंत्री मोदी की नीतियों की आलोचना करते रहे हैं। 

कांग्रेस पार्टी यह उम्मीद कर सकती है कि ये दोनों लोग लंबे समय में पार्टी में शक्ति का संचार करें, आन्दोलनों से जान फूँकें और पार्टी को खड़ा करें।

कांग्रेस पार्टी में युवा नेताओं को लेकर तब से सवाल उठ रहे हैं जब हाल ही एक के बाद एक कई नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं।

जितिन प्रसाद, सुष्मिता देव, प्रियंका चतुर्वेदी जैसे नेता हाल ही में कांग्रेस छोड़ चुके हैं। उनसे पहले कांग्रेस के एक कद्दावर युवा चेहरा ज्योतिरादित्य सिंधिया भी बीजेपी में शामिल हो गए थे।

सिंधिया और जितिन- दो नाम ऐसे हैं जो राहुल गांधी के चार सबसे प्रमुख क़रीबियों में से थे।

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