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कंगना के बयान के पीछे आरएसएस का बड़ा खेल!

कंगना के बयान के पीछे आरएसएस का बड़ा खेल!

दो दिन पहले ही पद्म श्री अवार्ड से नवाजी गईं कंगना रनौत ने क्यों कहा, '...और उन्होंने एक क़ीमत चुकाई... बिल्कुल वो आज़ादी नहीं थी, वो भीख थी। और जो आज़ादी मिली है वो 2014 में मिली है।' 

सवाल- क्या चल रहा है?

जवाब- फॉग चल रहा है।

जुबान पर चढ़ चुके फॉग के इस इरिटेटिंग वन लाइनर में एक बहुत गहरा अर्थ छिपा हुआ है। कोई मुद्दा, सवाल या ट्रेंडिंग टॉपिक अपने आप नहीं चल रहा होता है। किसी ख़ास मक़सद से उसे कोई ना कोई चला रहा होता है। इस समय कंगना रनौत का बयान चल रहा है। आइये 7 बिंदुओं से समझने की कोशिश करते हैं कि इस बयान के पीछे क्या खेल चल रहा है। 

1.

आरएसएस का प्रिय प्रोजेक्ट है- राष्ट्रीय आंदोलन के गौरवशाली अतीत को लोक स्मृति से खुरच-खुरच कर मिटाना। आज़ादी की लड़ाई से दूर रहना, अंग्रेजी फौज में भर्तियां करवाना, जासूसी करना और पेंशन उठाना, तमाम ऐसी बातें लोक स्मृतियों में मौजूद हैं, जिनसे पीछा छुड़ाना संघ के बूते की बात नहीं है। संघ का डिफेंस मैकेनिज़्म उसे इस बात के लिए प्रेरित करता है कि अगर राष्ट्रीय आंदोलन में भागीदारी का कोई प्रमाण ना दे सके तो फिर उस गौरवशाली आंदोलन को ही लोक स्मृति से मिटा दे।

2.

संघ एक नैतिकता शून्य संगठन है, जिसे अपनी बात से मुकर जाने, एक ही मुद्दे पर पांच अलग-अलग बयान जारी करने, पकड़े जाने पर माफी मांगने और छिपकर वार करने से कोई परहेज नहीं है। दुनिया के ज़्यादातर फासिस्ट संगठन ऐसे ही होते हैं। राष्ट्रीय आंदोलन और उसके शीर्ष नेताओं पर अपने चंगू-मंगुओं से कीचड़ फिकवाना एक तरह लिटमस टेस्ट है, यह जानने के लिए कि समाज इन बातों पर किस तरह की प्रतिक्रिया दे रहा है। प्रतिक्रिया के विश्लेषण के आधार पर प्रोजेक्ट आगे बढ़ता है। 

3.

संघ यह सोचता है कि अपने अफवाह तंत्र की बदौलत भारत का एक समानांतर इतिहास बना लेना है, जिसमें सिर्फ़ ऐसी कहानियाँ होंगी जो उसके पॉलिटिकल नैरेटिव को सूट करती हैं। साध्वी प्रज्ञा सरीखे न जाने कितने लोग इस काम में लगाये गये हैं।

मोदी और योगी 2 अक्टूबर को चरखा पकड़कर फोटो खिंचवाते हैं और उनके बाक़ी नेता और समर्थक गोडसे के नाम के जयकारे लगाते हैं। `दोगला' बीजेपी समर्थकों की प्रिय गाली है। लेकिन आरएसएस के बारे में क्या कहा जाये? दोगला कहना उपयुक्त नहीं होगा क्योंकि इस संगठन की दो नहीं कई जुबान हैं। 

4.

याद कीजिये कंगना रनौत के ठीक पहले बीजेपी की किसी गुमनाम सी छात्र नेता ने दावा किया कि आज़ादी 99 साल की लीज़ पर है। मीडिया ने रातो-रात ऋचा पाठक नाम की उस लड़की को मशहूर कर दिया। कथित तौर पर उस लड़की का विरोध करने वाले बहुत से स्वयंभू प्रगतिशील भी समझ नहीं पाये कि बार-बार इस बात की चर्चा करके वो वही कर रहे हैं, जो आरएसएस चाहता है। लिटमस टेस्ट पूरा हुआ। लोगों में इस बात को लेकर काफ़ी जिज्ञासा थी कि क्या सचमुच भारत की आज़ादी लीज पर है।

5.

लीजिये अब प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने के लिए अगला बयान आ गया। कंगना रनौत ने भारत की आज़ादी को भीख बताया। क्या नरेंद्र मोदी `भीख का अमृतोत्सव' मनवा रहे हैं। जिस सार्वजनिक मंच से यह बात कही गई वह भारत के पौने दो-सौ साल पुराने मीडिया संस्थान से जुड़ा हुआ है। कंगना रनौत के इस निर्ल्लज कथन पर वहाँ मौजूद लोग खी-खी करके हँस रहे हैं। ये वही लोग हैं, जो सोशल मीडिया पर देशभक्ति और देशद्रोह का सर्टिफिकेट बांटते फिरते हैं। 

6.

नये लिटमस टेस्ट के नतीजों का इंतज़ार है। बीजेपी के स्वयंभू देश भक्त समर्थकों की भावना इस बयान से आहत नहीं हुई। कायदे से कंगना रनौत को सलाखों के पीछे होना चाहिए लेकिन वो पद्यश्री पाकर इतरा रही हैं। असल में कंगना रनौत को सम्मान ही इसलिए मिला है क्योंकि वो ऐसे बयान देने में सक्षम हैं। इस बयान पर तीव्र प्रतिक्रिया का ना होना यह बताता है कि लोकतांत्रिक भारत बहुत तेजी से फासिस्ट भारत बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। 

7.

देश का एक बहुत बड़ा तबका राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े जीवन मूल्यों, सिस्टम और संविधान के ख़िलाफ़ उसी तरह कैंपेन चला रहा है, जिस तरह कुछ खास तरह की बीमारियों में अपने शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता शरीर के ख़िलाफ़ काम करने लगती है। कुल मिलाकर यह लड़ाई संघ बनाम संघ है। यानी एक तरफ़ आरएसएस है और दूसरी तरफ़ है, यूनियन ऑफ़ इंडिया या आइडिया ऑफ़ इंडिया। लड़ाई मुश्किल है और यक़ीनन यह लड़ाई कायरों के लिए नहीं है।

(राकेश कायस्थ की फेसबुक वाल से)

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