40 साल सांसद रहे कमलनाथ ने पहली बार ली विधायक पद की शपथ
लोकसभा के चुनाव 40 साल से सतत रूप से जीत रहे कमलनाथ ने पहली बार विधायक पद की शपथ ली है। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के तीसरे पुत्र कहे जाने वाले मध्य प्रदेश के कद्दावर नेता कमलनाथ मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा लोकसभा सीट से पहली बार 1979 में सांसद निर्वाचित हुए थे। इसके बाद हुए आठ लोकसभा चुनाव वह सतत रूप से जीते। वह महज एक उप-चुनाव 1997 में छिंदवाड़ा लोकसभा सीट पर बीजेपी के बड़े कद वाले नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा से हारे थे।
कमलनाथ 1975 में इमरजेंसी के दौरान ख़ासे सुर्खियों में रहे थे। इंदिरा गाँधी के पुत्र संजय गाँधी के वह बचपन के दोस्त रहे। इमरजेंसी में संजय गाँधी के साथ साये की तरह वह साथ रहा करते थे। इमरजेंसी के बाद 1977 के चुनाव में कांग्रेस की ज़ोरदार हार हुई थी। ‘ग़रीबी हटाओ’ के नारे के साथ इंदिरा गाँधी जब मध्यावधि चुनाव में पुन: कांग्रेस को मैदान में लेकर गई थीं तब ही 1979 में इंदिरा गाँधी ने स्वयं छिंदवाड़ा पहुँचकर कमलनाथ का परचा दाखिल कराया था। छिंदवाड़ा सीट पर गार्गीशंकर मिश्रा का टिकट काटा गया था।
संजय गाँधी की तसवीरें लगवाईं
कमलनाथ जब मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री चुने गये तो गाँधी परिवार और ख़ास तौर पर बचपन के दोस्त संजय गाँधी के अहसानों को न भूल पाने की झलक उनकी कार्यशैली में साफ़ नज़र आयी। सरकार बनने के बाद पीसीसी (कमलनाथ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भी हैं) में संजय गाँधी के पोस्टर दिखाई दिये। कमलनाथ के सरकारी निवास और दफ़्तर की दीवारों पर संजय गाँधी के फ़ोटो भी देखने को मिले। संजय गाँधी के देहावसान के बाद मध्य प्रदेश कांग्रेस में कई अध्यक्ष हुए। अनेक चुनावी सफलताएँ प्रदेश कांग्रेस को मिलीं। लेकिन संजय गाँधी कांग्रेस के प्रचार में और नेताओं के घरों-कार्यालयों की दीवारों पर उस तरह से पहले कभी नज़र नहीं आये जो कमलनाथ के कार्यकाल में नज़र आ रहे हैं।
40 सालों की चुनावी राजनीति में पहली बार कमलनाथ विधानसभा पहुँचे हैं। कांग्रेस ने 2018 का मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव कमलनाथ की अगुवाई में लड़ा और जीता। चुनाव जीतने के बाद वह विधायक दल के नेता चुने गये।
विधानसभा के स्पीकर नर्मदा प्रसाद प्रजापति ने सोमवार को विधान परिषद हाल में एक सादे समारोह में कमलनाथ को विधायक पद की शपथ दिलाई। मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा विधायक पद की शपथ लिये जाने के दौरान काबीना के कई सहयोगियों के अलावा संगठन के वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे। कमलनाथ ने 17 दिसंबर को मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। छह महीने के भीतर उन्हें विधायक पद की शपथ लेना अनिवार्य था। पिछले महीने छिंदवाड़ा विधानसभा सीट को उन्होंने जीता। यह अवधि 16 जून को पूरी होने वाली थी। चूँकि विधानसभा का पावस सत्र 8 जुलाई से है, लिहाज़ा सदन का इंतज़ार किए बिना कमलनाथ को शपथ लेना पड़ी।
मध्य प्रदेश विधानसभा में दूसरा मौक़ा
कांग्रेस विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद सदन का इंतज़ार किए बिना सदन के बाहर शपथ ग्रहण करने वाले कमलनाथ राज्य के दूसरे मुख्यमंत्री के तौर पर दर्ज हो गये। उनके पहले सदन के बाहर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विधायक पद की शपथ ली थी। उमा भारती के इस्तीफ़े के बाद शिवराज सिंह चौहान बीजेपी विधायक दल के नेता चुने गये थे। नेता चुने जाने के बाद मुख्यमंत्री की पद की जब शिवराज ने शपथ ली थी तब वे लोकसभा के सदस्य थे। बाद में बुदनी विधानसभा सीट पर चुनाव जीतकर वे विधायक बने थे। छह माह के भीतर विधायक पद की शपथ की अनिवार्यता के चलते उन्होंने भी सत्र और सदन का इंतज़ार किए बिना सदन के बाहर विधायक पद की शपथ ली थी।
क्या कमलनाथ का ‘सपना’ पूरा हो गया?
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने की कमलनाथ की चाह पुरानी थी। मध्य प्रदेश में 1993 में जब कांग्रेस की सरकार बनी थी तब कांग्रेस आलाक़मान ने कमलनाथ को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव दिया था, लेकिन तब कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह के नाम की पैरवी करते हुए पद को ठुकरा दिया था। बाद में कांग्रेस विधायक दल के चुनाव में तमाम उठापटक के बीच कमलनाथ किंगमेकर की भूमिका में सामने आये थे। उनकी मदद से ही दिग्विजय सिंह 93 में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन पाये थे। इस बात का खुलासा दोनों ही नेताओं ने समय-समय पर किया।
साल 2018 के विधानसभा चुनाव के बाद जब कमलनाथ को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री चुना गया तो उनके पुत्र नकुलनाथ ने मीडिया के समक्ष ऑन-कैमरा कहा, ‘मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की पापा की हसरत पूरी हो गई।’ नकुल के अलावा दिग्विजय सिंह ने भी इशारों में कहा था, ‘उन्होंने कमलनाथ का कर्ज अदा कर दिया।’ दिग्विजय का इशारा था, ‘कमलनाथ की बदौलत वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे और आज कमलनाथ (बड़ी संख्या में दिग्विजय सिंह समर्थक विधायकों की वजह से) मुख्यमंत्री बन गये।’
ज्योतिरादित्य सिंधिया की भी थी सीएम पद पर नज़र
पन्द्रह सालों के ‘सत्ता के सूखे’ के बाद मध्य प्रदेश विधानसभा 2018 के चुनाव में कांग्रेस की सरकार में वापसी कराने में ज्योतिरादित्य सिंधिया की भूमिका भी बेहद अहम रही थी। विधायक दल के नेता के चुनाव के वक़्त वे ख़ास सक्रिय रहे थे। राहुल गाँधी दरबार में चली उठापटक के बीच उन्हें उप-मुख्यमंत्री पद का प्रस्ताव दिये जाने की चर्चा रही थी। कहते हैं कि सिंधिया ने डिप्टी सीएम का पद ठुकरा दिया था। ज्योतिरादित्य के मुख्यमंत्री बनने के प्रयास विफल होने के बाद ज्योतिरादित्य के पिता माधवराव सिंधिया का स्मरण राजनीतिक पंडितों ने किया था। माधवराव सिंधिया ने कई मौक़ों पर मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का प्रयास किया, लेकिन कभी अर्जुन सिंह तो कभी कमलनाथ और बाद में दिग्विजय सिंह उनके प्रयासों के आड़े आ गये थे।