क्या बीजेपी में लंबी सियासी पारी खेल पायेंगे ज्योतिरादित्य?
महाराज साहब पधार गए हैं। भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेस के एक युवा चेहरे मध्य प्रदेश के ज्योतिरादित्य सिंधिया की औपचारिक एंट्री हो गई। कांग्रेस और सिंधिया के इलाक़े यानी ग्वालियर और गुना-चंबल क्षेत्र में लोग उन्हें “श्रीमंत” कहकर सम्मान देते हैं या यह कहना बेहतर होगा कि उन्हें खुद को “श्रीमंत” कहलाना पसंद है।
बेहतरीन ड्रैस, फ़ैशनेबल लुक, चमकते चेहरे पर विदेशी सनग्लास, महंगी गाड़ियों को दौड़ाते, रग-रग में अंग्रेज़ियत की महक रखने वाले और कल तक कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के सबसे क़रीबी दोस्त माने जाने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया अब बीजेपी के हो चुके हैं। यह अलग बात है कि अभी आठ महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में बीजेपी के ही कृष्ण पाल यादव ने ज्योतिरादित्य को क़रीब सवा लाख वोटों से हराया था।
जब मैं लोकसभा चुनाव के दौरान मध्य प्रदेश में था तो वहां बीजेपी का नारा था – “हमारे नेता शिवराज, माफ़ करो महाराज।” लेकिन सिंधिया के पार्टी में आने के तुरंत बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने ट्वीट कर कहा – “स्वागत है महाराज, साथ हैं शिवराज।”
बीजेपी में शामिल होते ही सिंधिया को राज्यसभा का टिकट मिल गया। बीजेपी ने जिन नेताओं को टिकट दिया है, उनमें शिवाजी महाराज के वंशज और उनके सरदार के वंशज एक साथ राज्यसभा जाएंगे। लिस्ट में महाराष्ट्र से उदयन राजे भोंसले के नाम के साथ “श्रीमंत” लिखा है जबकि मध्य प्रदेश से ज्योतिरादित्य सिंधिया के नाम के साथ “श्री” लिखा है। अब तक “श्रीमंत” रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया को यह “श्री” सम्मान कितना पसंद आएगा, यह तो वह ही जानें।
वैसे, मुझे याद आ रहा था कि आज़ादी के बाद आम चुनावों के वक्त बीजेपी राजा-महाराजाओं के ही नहीं ज़मींदारों के ख़िलाफ़ भी आंदोलन चला रही थी। तब जनसंघ होती थी और इस हद तक यह विचारधारा का मसला था कि राजस्थान में जनसंघ ने तब कई ऐसे विधायकों को भी पार्टी से बाहर कर दिया जो ज़मींदारी कानून के ख़िलाफ़ खड़े हो गए थे और एक आम पुलिसकर्मी रहे और आम कार्यकर्ता भैंरोसिंह शेखावत को अपना नेता माना था।
राहुल गांधी से सिंधिया की नाराज़गी होने की चर्चा पर राहुल ने कहा कि ज्योतिरादित्य कांग्रेस में अकेले ऐसे शख्स थे, जो किसी भी वक्त उनके घर में सीधे आ-जा सकते थे, फिर ऐसा क्या हुआ कि सिंधिया को पार्टी छोड़ने से पहले एक बार भी उनके घर का रास्ता नहीं दिखाई दिया।
जिन राहुल गांधी से दोस्ती के बावजूद सिंधिया का मिलना-जुलना नहीं हो पा रहा था, क्या बीजेपी में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमित शाह से उनकी मुलाक़ातें आसानी से हो पाएंगी, काश वह पार्टी में शामिल होने से पहले बीजेपी नेताओं से यह बात पूछ लेते। क्या उन्होंने इस बात पर ध्यान दिया कि उनके बीजेपी में शामिल होने के वक्त पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की कितनी भूमिका रही थी
क्या सिंधिया जानते हैं कि बीजेपी अब दूसरी जेनरेशन यानी युवा नेताओं की पार्टी है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में ही शिवराज सिंह चौहान, नरेन्द्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, प्रभात झा जैसे ताक़तवर और पुराने नेता बीजेपी में हैं। हो सकता है सिंधिया यह भी जानते होंगे कि शिवराज सिंह की नाराजगी की वजह से ही एक और ताक़तवर नेता रहीं उमा भारती की फिर से मध्य प्रदेश में एंट्री नहीं हो पाई।
यह ठीक है कि सिंधिया जल्दी ही केंद्र सरकार में मंत्री बन जाएंगे लेकिन उन्हें इस बात का इल्म भी है कि केंद्र सरकार में मंत्रियों की आवाज़ और ताक़त कितनी है
यह सच है कि ज्योतिरादित्य की दोनों बुआ वसुंधरा राजे और यशोधरा राजे दोनों ही फिलहाल बीजेपी में हैं। यशोधरा राजे की मध्य प्रदेश बीजेपी में हैसियत तो खुद वह जानते ही होंगे और वसुंधरा राजे के बीजेपी के केंद्रीय नेताओं से रिश्ते भी उनसे छिपे नहीं होंगे।
सिंधिया के आने से बीजेपी के कांग्रेस मुक्त भारत के अभियान के मकसद का एक और बड़ा क़दम पूरा हो गया है। मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिराने की कोशिश करके इस काम को सिंधिया ने और आसान कर दिया। राम मंदिर अभियान में जुटी बीजेपी को लंका में रावण पर जीत के लिए “अहम रहे किरदार” की अहमियत बेहतर तरीके से पता है।
ज्योतिरादित्य “सिंधिया परिवार” की तीसरी पीढ़ी के उन नेताओं में से हैं जिन्होंने कांग्रेस का दामन अपनी “निजी आकांक्षाओं और आत्म सम्मान” के लिए “जनता की सेवा” करने के नाम पर छोड़ा है। उनकी दादी राजमाता विजया राजे सिंधिया तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की वजह से कांग्रेस में आईं और दो बार सांसद बनीं लेकिन उस दौर में मुख्यमंत्री रहे द्वारिका प्रसाद मिश्र से नाराज होकर जनसंघ में चली गईं। विजया राजे सिंधिया ने कांग्रेस पार्टी को तोड़ दिया था और मिश्र की सरकार को गिरा दिया था।
ज्योतिरादित्य के पिता माधव राव सिंधिया राजीव गांधी और सोनिया गांधी के क़रीबी और विश्वस्त रहे लेकिन दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाए जाने से नाराज होकर 1996 में वह कांग्रेस से अलग हो गए थे और नई पार्टी बना ली थी। अब मुख्यमंत्री कमलनाथ से नाराज होकर ज्योतिरादित्य “देश के विकास और जन सेवा” के लिए बीजेपी में शामिल हो गए हैं। काश, कांग्रेस पार्टी उन्हें “जनसेवा” का यह मौक़ा दे देती। वैसे, राजनीति के रास्ते भी मध्य प्रदेश की सड़कों की तरह उबड़-खाबड़ और “ब्लाइंड टर्न” वाले हैं, संभल कर चलना होता है। ज्योतिरादित्य को भविष्य के लिये शुभकामनाएं।