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सिंधिया के ‘टाइगर जिंदा है’ वाले बयान पर एमपी की सियासत में घमासान

सिंधिया के ‘टाइगर जिंदा है’ वाले बयान पर एमपी की सियासत में घमासान

पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से अपनी सियासी अदावत को भुला नहीं पाए हैं।

मध्य प्रदेश में बीजेपी सरकार बनवाने में अहम रोल निभाने वाले पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों कमलनाथ और दिग्विजय सिंह से अपनी सियासी अदावत को भुला नहीं पाए हैं। हुआ यूं है कि शिवराज सरकार के 100 दिन पूरे होने पर आयोजित एक कार्यक्रम में गुरूवार को सिंधिया ने कमलनाथ और दिग्विजय सिंह पर हमला बोल दिया और उनके हमले का जवाब इन दोनों नेताओं ने भी बखूबी दिया। 

सिंधिया ने कहा, ‘मैं उन दोनों को कहना चाहता हूं, कमलनाथ जी और दिग्विजय सिंह जी, आप दोनों सुन लीजिए, टाइगर जिंदा है।’  

सिंधिया के इस बयान पर पहला जवाब दिग्विजय सिंह ने दिया। सिंह ने दो शेरों का लड़ते हुए फ़ोटो ट्वीट किया और लिखा - ‘शेर का सही चरित्र आप जानते हैं? एक जंगल में एक ही शेर रहता है!!’ 

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दिग्विजय के बयान के सियासी मायने क्या हैं, ये आपको आगे बताएंगे। बहरहाल, कमलनाथ भी सिंधिया को जवाब देने से नहीं चूके। 

कमलनाथ ने एक कार्यक्रम में कहा, ‘कोई कहता है मैं टाइगर हूं। मैं तो ना टाइगर हूं, ना पेपर टाइगर हूं, जनता तय करेगी कि कौन टाइगर है और कौन पेपर टाइगर है।’ कमलनाथ ने यह भी कहा, ‘मैं महाराजा नहीं हूं, मैं मामा नहीं हूं, मैंने चाय नहीं बेची, मैं बस कमलनाथ हूं।’

‘टाइगर जिंदा है’ का डायलॉग राजनीति में तब चर्चा में आया था, जब 2018 के विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री की कुर्सी जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने इसका इस्तेमाल किया था। तब एक कार्यक्रम में चौहान ने कहा था कि लोगों को चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है क्योंकि टाइगर अभी जिंदा है।

कौन है टाइगर, शिवराज या सिंधिया?

अब बात करते हैं दिग्विजय सिंह के बयान की। दिग्विजय सिंह ने ‘एक जंगल में एक ही शेर रहता है!!’, इसलिए लिखा क्योंकि शिवराज पहले ही ख़ुद को टाइगर बता चुके थे लेकिन तब सिंधिया कांग्रेस में थे। सिंधिया के बीजेपी में जाने और ख़ुद को टाइगर बताने से भला एक बीजेपी में दो टाइगर कैसे रह सकते हैं। क्योंकि ‘टाइगर जिंदा है’, कहते हुए सिंधिया ने ख़ुद की ओर इशारा किया था। ऐसे में मध्य प्रदेश बीजेपी में एक जोरदार बहस छिड़ गई है कि आख़िर टाइगर कौन है, शिवराज या सिंधिया। 

मंत्रिमडल विस्तार में जिस तरह सिंधिया अपने अधिकांश समर्थक विधायकों को मंत्री बनवाने में कामयाब रहे हैं, उससे प्रदेश की राजनीति में सिंधिया के राजनीतिक क़द को लेकर चर्चा होने लगी है क्योंकि ख़ुद शिवराज अपने कई क़रीबी नेताओं को मंत्री नहीं बनवा पाए। 

प्रदेश में कितने पावर सेंटर?

सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद ग्वालियर-चंबल संभाग के इलाक़े में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर भी ख़ुद को असहज महसूस कर रहे हैं क्योंकि वह भी इसी इलाक़े से आते हैं और सिंधिया भी। ऐसे में मध्य प्रदेश की राजनीति में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि बीजेपी में कितने पावर सेंटर हैं। 

13 साल तक एकछत्र राज करने वाले शिवराज सिंह चौहान यह क़तई नहीं चाहेंगे कि वह नए-नवेले सिंधिया के साथ पावर शेयरिंग करें। इसी वजह से उन्होंने डिप्टी सीएम की कुर्सी की सिंधिया की मांग नहीं मानी, जबकि सिंधिया कांग्रेस में भी इस पद को लेकर बुरी तरह अड़ गए थे।

देखना होगा कि बीजेपी आलाकमान कब सिंधिया को राज्य की राजनीति से हटाकर केंद्र में लाता है, क्योंकि यही एक तरीक़ा होगा, जब वह इस पावर सेंटर की बहस पर लगाम लगा पाएगा। 

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