जाँबाज़ बेटी, 1200 किमी साइकिल चला पिता को घर पहुँचाया!
ई-रिक्शा चलाने वाले मोहन पासवान और उनकी बेटी ज्योति कुमारी को एक हफ़्ते पहले तक शायद ही कोई जानता था। अब ज्योति पूरी दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गई हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ज्योति की तारीफ़ों के पुल बाँध रही हैं। उन्होंने ट्वीट किया तो क़रीब एक लाख लोगों ने उसे पसंद किया और 22 हज़ार से ज़्यादा लोगों ने रिट्वीट किया। उन्होंने लिखा है, '15 साल की ज्योति कुमारी अपने घायल पिता को अपनी साइकिल के पीछे बैठाकर 7 दिनों तक +1,200 किलोमीटर की दूरी तय करके अपने घर ले गई। धैर्य और प्रेम के इस ख़ूबसूरत उपलब्धि ने भारतीय लोगों और साइकिल फ़ेडरेशन की कल्पना को आकर्षित किया है!'
15 yr old Jyoti Kumari, carried her wounded father to their home village on the back of her bicycle covering +1,200 km over 7 days.
— Ivanka Trump (@IvankaTrump) May 22, 2020
This beautiful feat of endurance & love has captured the imagination of the Indian people and the cycling federation!🇮🇳 https://t.co/uOgXkHzBPz
यह उपलब्धि भी कोई सामान्य नहीं है। 15 साल की ज्योति ने 7 दिन में 1200 किलोमीटर से ज़्यादा साइकिल चलाई। असहाय पिता को साइकिल पर पीछे बैठाकर हरियाणा से बिहार में अपने घर पहुँचाया। कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन की वजह से उनके पास कोई रास्ता भी नहीं बचा था। ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी खाने-पीने के लिए भी पैसे ख़त्म हो गए थे। जब सोशल मीडिया पर साइकिल चलाकर घर जाने का ज्योति का वीडियो और उनकी तसवीरें वायरल हुईं तो भारत के साइकलिंग फ़ेडरेशन को उनमें उम्मीद दिखी। उसने साइकलिंग के ट्रायल के लिए ज्योति को ऑफ़र दिया है। और अब ज्योति को साइकलिंग में करियर बनने की उम्मीद दिख रही है।
बिहार के दरभंगा ज़िले के राजकीयकृत मध्य विद्यालय सिरूहल्ली में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली ज्योति कुमारी लॉकडाउन से पहले ही हरियाणा के सिकंदरपुर में अपने पिता मोहन के पास आई थी। बीती 26 जनवरी को गुरुग्राम में बैट्री गाड़ी चलाने वाले उसके पिता एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे। उनकी हालत ठीक नहीं थी, इस कारण ज्योति और उसके चार भाई-बहन अपनी माँ फूलो देवी के साथ गुरुग्राम आए थे। ज्योति की माँ फूलो देवी आंगनबाड़ी में काम करती हैं और उन्हें सिर्फ़ 10 दिन की छुट्टी मिली थी। इस कारण दस दिन में फूलो देवी बाक़ी बच्चों के साथ दरभंगा लौट गईं थीं और ज्योति को पिता की सेवा के लिए गुरुग्राम में छोड़ दिया था। लेकिन कोरोना वायरस के कारण जब लॉकडाउन हो गया तो मोहन और ज्योति हरियाणा में फँस गए।
फ़िलहाल दरभंगा के क्वॉरंटीन सेंटर में ज्योति के साथ रह रहे मोहन ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' से कहा, 'हम अपने गाँव लौटने के लिए बेताब थे, लेकिन हम कभी नहीं सोच पाए कि क्या हम लौट भी सकते थे। लेकिन मेरी बेटी ने हार नहीं मानी। मुझे नहीं पता कि उसने इस बारे में कैसे सोचा। उसके पास साहस है, और मुझे वास्तव में उस पर गर्व है।'
उन्होंने कहा, 'मैं घुटने की चोट से उबर रहा था और फिर यह लॉकडाउन हो गया। दो महीने के भीतर, मेरे पास जो भी बचत के पैसे थे सब ख़त्म हो थे। शुक्र है कि हमारे गाँव की आंगनवाड़ी में काम करने वाली मेरी पत्नी और मेरी बड़ी बेटी और दामाद फ़रवरी में ही गाँव लौट आए थे। पिछले तीन महीनों से ज्योति और मैं सिकंदरपुर में हमारे दो-कमरे के किराए के अपार्टमेंट में फँस गए थे।'
लेकिन मोहन के पास घर वापस लौटने के अलावा कोई चारा तब नहीं बचा जब उनके मकान मालिक ने कह दिया कि किराया नहीं देने पर कमरा खाली करना होगा। मोहन कहते हैं, 'शुक्र है कि ज्योति के पास 2000 रुपये थे। हमको लौटने के लिए उसने उससे सेकंड हैंड साइकिल ख़रीदी।' सात मई को दोनों साइकिल पर निकले। मोहन के घुटने में दिक्कत थी तो ज्योति ही साइकिल चलाती रही।
वे एक बैग में अपना सामान और एक बोतल पानी लेकर निकले थे। मोहन कहते हैं कि रास्ते में लोगों ने खिलाया। कहीं भरपेट खाना मिलता था तो कहीं बिस्किट से काम चलाता रहा। वे पेट्रोल पंप पर रात गुज़ारते थे।
'बीबीसी' की एक रिपोर्ट के अनुसार, ज्योति ने कहा, 'खाने पीने को कोई पैसा नहीं रह गया था। रूम मालिक भी तीन बार बाहर निकालने की धमकी दे चुका था। वहाँ मरने से अच्छा था कि हम रास्ते में मरें। इसलिए हम पापा से कहें कि चलो साइकिल से। पापा नहीं मानते थे, लेकिन हम ज़बरदस्ती किए।'
लोगों ने रास्ते में उनके साइकिल पर घर लौटने के वीडियो बनाए थे। सोशल मीडिया पर लोगों ने ज्योति की जमकर तारीफ़ें कीं। देश भर में जब यह ख़बर फैली तो यह ख़बर साइकलिंग फ़ेडरेशन के पास भी पहुँची।
ज्योति से साइकिलिंग फ़ेडरेशन के प्रमुख बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने कहा, '1,200 किलोमीटर से अधिक दूरी आठ दिनों के लिए अपने पिता के साथ पैडल करने के लिए 15 साल की उम्र के लिए यह कोई सामान्य उपलब्धि नहीं है। यह उसके धीरज का स्तर दिखाता है।' वह कहते हैं कि एक बार जब वह क्वॉरंटीन से बाहर आएगी तो हम उसे ट्रायल करने के लिए दिल्ली लाएँगे, जहाँ हमें पता चलेगा कि क्या उसे एक बढ़िया साइकिल चालक के रूप में तैयार किया जा सकता है। उन्होंने कहा, 'और फिर, यह उसके ऊपर है कि वह साइकिल चलाना चाहती है या नहीं।'
यानी अब ज्योति जब क्वॉरंटीन पूरी कर चुकी होंगी तो उनके सामने एक नया करियर इंतज़ार कर रहा होगा।