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जस्टिस ताहिलरमानी तबादला: कॉलीजियम पर बार-बार विवाद क्यों?

जस्टिस ताहिलरमानी तबादला: कॉलीजियम पर बार-बार विवाद क्यों?

सवाल अभी भी रहस्य ही बना हुआ है कि 75 सदस्यीय उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विजय ताहिलरमानी का अचानक ही मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर तबादला क्यों किया गया?

न्यायमूर्ति विजय ताहिलरमानी के इस्तीफ़ा देने से यह सवाल उठ रहा है कि आख़िर मद्रास उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश को किस अपराध की सज़ा देते हुए उनका स्थानांतरण चार न्यायाधीशों वाले मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर किया गया न्यायमूर्ति ताहिलरमानी के इस्तीफ़े ने एक बार फिर उच्चतम न्यायालय की कॉलीजियम की कार्यशैली पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

न्यायमूर्ति ताहिलरमानी को 12 अगस्त 2018 को पदोन्नति देकर 75 न्यायाधीशों वाले मद्रास उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश बना दिया गया था लेकिन अचानक ही उनका तबादला चार न्यायाधीशों वाले मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर कर दिया गया।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पाँच सदस्यीय कॉलीजियम ने हालाँकि दो सितंबर को न्यायमूर्ति ताहिलरमानी के तबादले पर फिर से विचार करने का उनका अनुरोध भी ठुकरा दिया था। इसके बावजूद यह सवाल अभी भी रहस्य ही बना हुआ है कि 75 सदस्यीय उच्च न्यायालय की मुख्य न्यायाधीश का अचानक ही मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर तबादला क्यों किया गया

न्यायमूर्ति ताहिलरमानी का तबादले की सिफ़ारिश पर फिर से विचार करने का अनुरोध ठुकराने वाली कॉलीजियम में प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के साथ न्यायमूर्ति एस. ए. बोबडे, न्यायमूर्ति एन. वी. रमण, न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति आर. एफ. नरिमन शामिल थे।

आमतौर पर यही धारणा है कि यदि कोई न्यायाधीश अपरिहार्य कारणों से अनुकूल नहीं होता है तो उसका तबादला किसी ऐसे उच्च न्यायालय में कर दिया जाता है जहाँ न्यायाधीशों की संख्या बहुत ही कम होती है। इस तरह के तबादले को सज़ा के तौर पर स्थानांतरण के रूप में भी देखा जाता है।

उदाहरण के लिए 60 न्यायाधीशों वाले दिल्ली उच्च न्यायालय की कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल का तबादला जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय कर दिया गया था। इससे पहले गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बी. एन. राय का तीन न्यायाधीशों वाले सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर तबादला था। ऐसे कई अनेक उदाहरण हैं जहाँ अधिक स्वीकृत संख्या वाले मुख्य न्यायाधीशों या वरिष्ठ न्यायाधीश का छोटे उच्च न्यायालयों में तबादला किया गया है।

बिलकिस बानो केस में दिया था फ़ैसला

यहाँ यह तथ्य दिलचस्प है कि बंबई उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति ताहिलरमानी की अध्यक्षता वाली पीठ ने चार मई, 2017 को गुजरात के बहुचर्चित बिलकिस बानो सामूहिक बलात्कार कांड के 11 दोषियों की अपील खारिज करते हुए उनकी उम्र कैद की सजा बरकरार रखी थी। इनमें से एक दोषी की सुनवाई के दौरान ही मृत्यु हो गयी थी। यही नहीं, इस पीठ ने सात पुलिसकर्मियों और चिकित्सकों को बरी करने का निचली अदालत का फ़ैसला भी निरस्त कर दिया था।

न्यायमूर्ति ताहिलरमानी के मामले में कॉलीजियम के दृष्टिकोण और उसकी सिफ़ारिश ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग क़ानून को अक्टूबर, 2015 में असंवैधानिक क़रार देने वाली संविधान पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर ने अल्पमत के अपने फ़ैसले में कॉलीजियम की कार्यशैली के बारे में टिप्पणियों को भी ताज़ा कर दिया। न्यायमूर्ति चेलामेश्वर ने तो इसकी बैठक और नामों के चयन की प्रक्रिया पर बाद में भी असहमति ज़ाहिर की।

पहले भी हुए ऐसे तबादले

न्यायमूर्ति ताहिलरमानी के मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद पर तबादले की घटना ने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में अपनी कार्यशैली की वजह से एक विवाद के बाद इसके मुख्य न्यायाधीश बी. के. राय का पहले गुवाहाटी उच्च न्यायालय और फिर 2005 में तीन न्यायाधीशों वाले सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर तबादले की घटना की याद ताज़ा कर दी।

न्यायमूर्ति राय ने न्यायाधीश के पद से इस्तीफ़ा देने की बजाय सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश का पद ग्रहण किया था और दिसंबर 2006 में वहीं से सेवानिवृत्त हुए थे। न्यायमूर्ति राय का इसी साल जून में पटना में निधन हो गया।

इसी तरह, भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे न्यायमूर्ति पी.डी. दिनाकरण का भी कर्नाटक उच्च न्यायालय से सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश पद पर तबादला किया गया था। न्यायमूर्ति दिनाकरण को पदोन्नति देकर उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश बनाने की कवायद के बीच ही उन पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया शुरू की गयी थी। इसी प्रक्रिया के दौरान न्यायमूर्ति दिनाकरण ने जुलाई 2011 में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।

पारदर्शिता ज़रूरी

ऐसी स्थिति में ज़रूरी है कि उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके तबादले की नीति को अधिक पारदर्शी बनाया जाए ताकि सेवानिवृत्ति की तारीख़ से साल-छह महीने पहले किसी न्यायाधीश को अपने पद से त्यागपत्र नहीं देना पड़े।

उम्मीद की जानी चाहिए कि लगातार विवाद का केंद्र बनती जा रही कॉलीजियम प्रणाली में अधिक सुधार किए जाएँगे और तथ्यों को बेहतर तरीक़े से सार्वजनिक किया जाएगा।

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