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गलत सूचना सबसे गंभीर जोखिम के रूप में सामने आई है: जस्टिस विश्वनाथन

गलत सूचना सबसे गंभीर जोखिम के रूप में सामने आई है: जस्टिस विश्वनाथन

वाट्सऐस, फे़सबुक और यूट्यूब जैसे माध्यमों पर ग़लत सूचना ने कितना बड़ा नुक़सान किया है? जानिए, सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस केवी विश्वनाथन ने क्या कहा।

सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस केवी विश्वनाथन ने मिसइंफोर्मेशन यानी ग़लत सूचना को लेकर बड़ी चिंता जाहिर की है। उन्होंने कहा है कि ग़लत सूचना ने लोगों को ध्रुवीकृत कर दिया है, और इससे एक खास तरह की राय बनायी जा रही है। जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा कि गलत सूचना सबसे गंभीर जोखिम के रूप में उभरी है और यह कानून के शासन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। उन्होंने कहा कि यह राज्य और इसकी कानूनी प्रणाली को उलझन में डाल सकती है।

जस्टिस केवी विश्वनाथन बुधवार को केरल उच्च न्यायालय में न्यायमूर्ति टी एस कृष्णमूर्ति अय्यर स्मारक व्याख्यान में बोल रहे थे। उन्होंने कहा, 'हम डिजिटल युग के महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़े हैं। यह सूचना का विस्फोट है। एक्स, फेसबुक, व्हाट्सऐप और यूट्यूब जैसे सूचना के गैर-पारंपरिक माध्यम बहुत तेज़ गति से सूचना फैलाने में सक्षम हैं।' उन्होंने कहा कि सूचना के इसी रूप से राज्य और कानूनी प्रणाली खुद को एक उलझन में पाती है क्योंकि गलत सूचना काफी तेजी से फैलती है। उन्होंने कहा कि यह अन्य मामलों के अलावा कानून के शासन को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकती है। एकमात्र सवाल यह है कि इसे कौन और कैसे रोकेगा।

जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि सूचना देने वाले समाचार पत्रों और टेलीविजन जैसे पारंपरिक माध्यमों ने डिजिटल मीडिया को रास्ता दे दिया है। उन्होंने कहा, 'हम सभी को वह समय याद है जब प्रिंट मीडिया में छपी जानकारी पर कोई सवाल भी नहीं उठाता था। हालांकि, डिजिटल युग में लोग अब यह पता नहीं लगा पा रहे हैं कि ख़बर कहां से आ रही है और तथ्य और कल्पना के बीच फर्क करने में मुश्किलें आ रही हैं।'

द इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस विश्वनाथन ने विश्व आर्थिक मंच की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट 2024 का हवाला देते हुए कहा, 'गलत सूचना से लोग ध्रुवीकृत हो जाते हैं। वे इस पर विश्वास करते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे इसके साथ क्या करना चाहते हैं। यह जानकारी फिर व्यापक रूप से फैलायी जाती है, राय बनती है, और इसके आधार पर निर्णय लिए जाते हैं।' 

ग़लत सूचनाओं के आधार पर बनी राय और इसके आधार पर लिए गए निर्णयों को लेकर उन्होंने आगाह किया। उन्होंने कहा, 'हालाँकि, मुझे एक गंभीर समस्या दिखाई देती है। कुछ वर्षों में जब लोगों को एहसास होगा कि झूठी सूचना उनके निर्णयों का आधार थी, तो हम सभी के लिए विश्वास करना मुश्किल होगा।' उन्होंने कहा कि तब अविश्वास का माहौल हो जाएगा।

जस्टिस विश्वनाथन ने इससे निपटने के तरीक़े भी बताए। उन्होंने कहा कि जब तक इस तरह की गलत सूचना अनुच्छेद 19(2) के तहत अभियक्ति की स्वतंत्रता पर आठ उचित प्रतिबंधों में से एक के अंतर्गत नहीं आती है या हिंसा को भड़काने के बराबर नहीं माना जाता है, तब तक इसे प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।

उन्होंने कहा, 'सेंसरशिप और महत्वपूर्ण नियंत्रण के बीच की रेखा आसानी से धुंधली हो सकती है। एक जोखिम है कि वैध भाषण और अलग-अलग राय को दबाया जा सकता है। हमें असहमति और विवादास्पद दृष्टिकोण को दबाने वाले अतिक्रमण के खिलाफ सतर्क रहना चाहिए।'

भ्रामक सूचनाओं के ख़तरे से बचने और विभिन्न समाधानों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने नागरिकों के बीच डिजिटल मीडिया साक्षरता और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी एआई के बारे में लॉ स्कूलों के पाठ्यक्रम में शामिल करने पर जोर दिया। 

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