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जस्टिस चंद्रचूड़- आप जजों को कितना निशाना बना सकते हैं, इसकी सीमा है

जस्टिस चंद्रचूड़- आप जजों को कितना निशाना बना सकते हैं, इसकी सीमा है

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने मीडिया में जजों को टारगेट किए जाने पर गुरुवार को नाराजगी जताई। एक केस के दौरान उन्होंने कई टिप्पणियां कीं। उन्होंने यह तक पूछा कि ऐसी खबरें कौन प्रकाशित कर रहा है। जानिए जस्टिस चंद्रचूड़ ने और क्या कहा।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ ने जजों के खिलाफ मीडिया में व्यक्तिगत हमलों पर नाराजगी जताई है। गुरुवार को जस्टिस चंद्रचूड़ की बेंच के सामने एक वकील ने ईसाई समुदाय के खिलाफ हिंसा के संबंध में एक मामले का उल्लेख किया। उसी दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने यह टिप्पणी की।   

वकील ने सुप्रीम कोर्ट से मामले को फौरन सूचीबद्ध करने का आग्रह किया। तब जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्हें कुछ ऐसी खबरें मिली हैं जिनमें कहा गया है कि शीर्ष अदालत मामले की सुनवाई में देरी कर रही है। उन्होंने अपना मामला बताते हुए कहा चूंकि मुझे कोविड हो गया था तो मामले को सुनवाई के लिए नहीं लिया जा सका और आगे की तारीख लगा दी गई। इसमें मामले की सुनवाई में जानबूझकर देरी की बात कहां आती है। 

बता दें कि हाल ही में मीडिया और सोशल मीडिया में जजों को लेकर कई विवादित खबरें सामने आईं। सोशल मीडिया पर जजों को ट्रोल किया गया। कई कट्टर संगठनों ने जजों को बेसिरपैर की सलाह तक दे डाली। कांग्रेस प्रवक्ता और जाने-माने वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जजों पर ऐसे व्यक्तिगत हमलों के लिए बीजेपी और आरएसएस को जिम्मेदार ठहराया था। 

जस्टिस चंद्रचूड़ ने गुरुवार को  कहा कि हाल ही में मैंने एक न्यूज आर्टिकल पढ़ा, जिसमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट मामले में सुनवाई में देरी कर रहा है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा - 

आप जजों को कितना निशाना बना सकते हैं इसकी एक सीमा है... ऐसी खबरें कौन प्रकाशित कर रहा है?


- जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़, गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में

बता दें कि जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने मामले को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमति जताई थी। 27 जून को, सुप्रीम कोर्ट देश भर में ईसाई संस्थानों और पुजारियों पर हमले बढ़ने का आरोप लगाने वाली एक याचिका पर विचार करने के लिए सहमत हुआ था।

वरिष्ठ वकील कॉलिन गोंजाल्विस ने इस मामले का उल्लेख जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जेबी पारदीवाला की अवकाश पीठ के सामने किया और मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की थी। 

गोंजाल्विस ने कोर्ट में कहा कि देश भर में हर महीने ईसाई संस्थानों और पुजारियों के खिलाफ औसतन 40 से 50 हिंसक हमले हुए। उन्होंने 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नफरत से जुड़े अपराधों पर अंकुश लगाने के लिए जारी किए गए दिशानिर्देशों के कार्यान्वयन पर दबाव डाला। उन्होंने जोर देकर कहा कि इस साल मई में हिंसक हमलों के 50 से ज्यादा मामले हुए। 

वकील ने तहसीन पूनावाला केस (2018) में जारी दिशा-निर्देशों को लागू करने की मांग की और कहा कि निर्णय में नोडल अधिकारियों की नियुक्ति के लिए एक निर्देश पारित किया गया था, जो घृणा अपराधों पर ध्यान देंगे और देश भर में एफआईआर दर्ज करेंगे।

जस्टिस परदीवाला का मामलाः पिछले दिनों बीजेपी नेता और पूर्व प्रवक्ता नूपुर शर्मा ने टीवी चैनल पर पैगंबर के बारे में गलत और विवादित टिप्पणी की। उनकी टिप्पणी का मुस्लिमों ने जबरदस्त विरोध किया। इस दौरान राजस्थान में एक दर्जी की हत्या कर दी गई। इस मामले में दो मुस्लिम युवक पकड़े गए। सुप्रीम कोर्ट में नूपुर शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस जेबी परदीवाला ने नूपुर शर्मा को कड़ी फटकार लगाई और कहा कि आपके बयान ने देश को नफरत की आग में झोंक दिया है। आप फौरन माफी मांगे। जस्टिस परदीवाला की इस टिप्पणी के लिए उन्हें सोशल मीडिया पर ट्रोल किया गया। कई कट्टर हिन्दू संगठनों ने जस्टिस परदीवाला सहित तमाम जजों और अदालत का मजाक उड़ाया। कांग्रेस ने इस स्थिति के लिए सीधे बीजेपी को जिम्मेदार ठहराया और कहा कि जजों के खिलाफ चल रहे निन्दा अभियान के पीछे बीजेपी और संघ हैं।

चीफ जस्टिस रमना भी बोले

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन.वी. रमना ने भी हाल ही में मीडिया की भूमिका पर कड़ी टिप्पणी की थी। जस्टिस रमना ने कहा था कि मीडिया खुद की कंगारू कोर्ट चला रहा है। वो एजेंडा आधारित बहसें करता है। इंसाफ से जुड़े मुद्दों पर गलत सूचना देना और एजेंडा चलाना लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है। प्रिंट मीडिया में तो फिर भी थोड़ा जवाबदेही बची है लेकिन इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ऐसी कोई जवाबदेही नजर नहीं आती। उन्होंने कहा - 

अपनी जिम्मेदारियों से आगे बढ़कर मीडिया हमारे लोकतंत्र को दो कदम पीछे ले जा रहा है।


-चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एन. वी. रमना, एक कार्यक्रम के दौरान

एक अन्य कार्यक्रम में भी चीफ जस्टिस ने सलाह दी थी कि वो खुद को ईमानदार पत्रकारिता तक सीमित रखे। तथ्यों को सामने रखना सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। लोकतंत्र की मजबूती के लिए पत्रकारिता का निष्पक्ष होना जरूरी है।

इसके अलावा भी कई जजों ने समय-समय पर मीडिया को उसकी गैरजिम्मेदारी वाली भूमिका के लिए लताड़ा है। अदालत इस बात पर कई बार नाराजगी जता चुकी है कि नफरत वाली बहसों के जरिए वो देश का माहौल न बिगाड़े। इस संबंध में कई न्यूज चैनलों और एंकरों को फटकार तक लग चुकी है। हाल ही में जी न्यूज ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ फेक न्यूज चलाई थी। हालांकि बाद में उसने माफी मांग ली। 

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