जूनटीन्थः क्या कहानी है अमेरिका की नवीनतम राष्ट्रीय छुट्टी की
अमेरिका यूं तो विश्व के सबसे ताकतवर और विकसित देशों में शामिल है किन्तु इसके इतिहास के कुछ पन्ने विचित्र और अकल्पनीय हैं। वैसे तो सभी को पता है कि अमेरिका में अफ्रीकी मूल के लोग अभी भी नस्लीय टिप्पणी और हिंसा का शिकार होते रहते हैं, किन्तु क्या आपको पता है कि उन्हे समान-नागरिक और वोट देने का अधिकार 1960 के दशक में मिला! जी हाँ, भारत में हर नागरिक को वोट का समान अधिकार 1947 में, यानि कि अमेरिका से भी 2 दशक पहले मिल गया था। खैर, आज की कहानी और भी पुरानी घटना पर आधारित है जिससे अब्राहम लिंकन भी जुड़े हैं, जो बाइडेन भी जुड़े हैं, अमेरिका में मनाई जाने वाली सबसे पुरानी छुट्टियों में से एक से भी जुड़ी है; और उसे राष्ट्रीय छुट्टी घोषित होने में किनका योगदान रहा, ये भी जानेंगे।
जूनटीन्थ यानि कि जून 19 (June + nineteenth = Juneteenth) एक ऐसे दिन कि निशानी है जिसे हर अफ्रीकी-अमरिकी निवासी दास-प्रथा से मुक्ति के छवि में देखता है। इतिहास में रुचि रखने वाले जानते होंगे की अब्राहम लिंकन के राष्ट्रपति काल में अमेरिका गृह युद्ध से गुजर रहा था और मूलतः दक्षिण (कन्फेडरेट) और उत्तर (यूनियन) के राज्य आपस में लड़ रहे थे। पाठकों कि जानकारी के लिए बता दूँ कि कन्फेडरेट राज्यों में दास-प्रथा काफी विकराल रूप में मौजूद थी।
लिंकन का शुरू में कहना था की उनकी प्राथमिकता देश टूटने से बचाना है, दास प्रथा को बचाना या उन्मूलन करना नहीं। किन्तु गृह युद्ध में समय के साथ एक के बाद एक मोड़ आते रहे और सितंबर 1862 में लिंकन ने एमैन्सीपेशन प्रोक्लमेशन (Emancipation Proclamation) नाम के आने वाले कानून की घोषणा की जिसके तहत 1 जनवरी 1863 से सभी विद्रोही राज्य (कन्फेडरेट) के गुलाम लोगों को सदा के लिए आजाद माना जाएगा। हालांकि इसपर 1 जनवरी 1863 को लिंकन ने हस्ताक्षर कर दिए, किन्तु इससे सभी गुलाम लोग रातों-रात आजाद नहीं हुए। इसमे अभी भी ढाई-तीन साल और लगने थे। यह कानून सिर्फ कन्फेडरेट राज्यों पर लागू होता ना कि पूरे अमेरिका पर। यहाँ तक कि यह नियम ऐसे राज्यों पर भी लागू नहीं होता था जो यूनियन के पक्ष में होते हुए भी दास-प्रथा जारी रखे हुए थे।
इस प्रोक्लमेशन की समीक्षा काफी लोगों ने की है और उस पर एक अलग लेख की जरूरत होगी। संक्षेप में, यह प्रोक्लमेशन सांकेतिक रूप से यह बहुत बड़ा कदम साबित हुआ और गृह युद्ध को समाप्त करने में (और संयुक्त राज्य के भविष्य के लिए भी) इसने एक नई दिशा और गति प्रदान की। गृह-युद्ध समाप्त होने पर जनवरी 1865 में काँग्रेस (अमेरिकी संसद) के दोनों सदनों ने दास-प्रथा को समाप्त करने के लिए संविधान के तेरहवें संशोधन को स्वीकृति दे दी। दुख की बात ये रही कि लिंकन की उसी साल हत्या कर दी गई।
तो इन सब में जूनटीन्थ का जन्म कैसे हुआ
एमैन्सीपेशन प्रोक्लमेशन जारी होने के ढाई साल बीत चुके थे, किन्तु कुछ राज्यों में, खास तौर पर टेक्सास में, अभी भी अफ्रीकी-अमरीकी गुलाम ही थे। यहाँ अभी तक यूनियन की सेना पहुँच नहीं पाई थी। टेक्सास में कई लोगों को इस कानून की जानकारी तक नहीं थी क्योंकि उनके मालिकों ने उन्हें कुछ बताया ही नहीं था। कुछ लोगों का कहना है कि ऐसे मालिक तत्कालीन फसल कटने तक आजाद होने वाली बात छुपकर रखना चाहते थे ताकि दास-प्रथा के अंत होने के पहले उस साल कि फसल मुफ़्त में कट जाए। दूसरे राज्यों के ऐसे लोग जो दास व्यापार में लिप्त थे वो सब टेक्सास की तरफ रुख करने लगे ताकि यहाँ वो अपना व्यापार बिना रोक-टोक के जारी रख सकें।
आखिरकार 19 जून 1865 कोयूनियन की सेना टेक्सास के गैलवेस्टन नाम के जगह पर पहुंचने के बाद राज्य को अपनेअधीन लेने में सफल हुई। जनरल गॉर्डन ग्रैंजर ने टेक्सास की धरती पर लोगों के बीच उद्घोषणाकिया कि “टेक्सास के लोगों को सूचित किया जाता है कि प्रोक्लमेशन के अनुसार सभीगुलाम अब स्वतंत्र हैं।” इसके बाद टेक्सास के ढाई लाख लोगों की आजादी का रास्ताखुल गया और जगह-जगह उत्सव मनाया जाने लगा। इसी साल के अंत में तेरहवें संशोधन कोभी अपना लिया गया और वो अमेरिकी संविधान का हिस्सा बन गया।
अगले वर्ष टेक्सास के नए-नए आजाद हुए लोगों ने 19 जून को जुबली दिवस के रूप में मनाया। समय के साथ जूनटीन्थ के दिन नृत्य संगीत, प्रार्थना सभाएं और पिकनिक मनाने का प्रचलन हो गया। जैसे-जैसे अफ्रीकी-अमरीकी लोग टेक्सास से बाकी के अमेरिकी राज्यों में जाने लगे, वैसे-वैसे उन नई जगहों पर जूनटीन्थ का प्रचलन शुरू होता गया। अफ्रीकी-अमरीकी लोगों के लिए अब यह एक अति-महत्वपूर्ण दिन हो चुका था। 1872 में इनके समुदाय के कुछ लोगों ने मिलकर टेक्सास के ह्यूस्टन शहर (यहाँ नासा होने के वजह से यह शहर प्रसिद्ध है) में 10 एकड़ ज़मीन खरीदा और इसे “प्रोक्लमेशन-पार्क” का नाम दिया। अगले सौ वर्षों में जूनटीन्थ का प्रसार पूरे अमेरिका में हो चुका था और बाद में 1960 के सिविल-राइट्स आंदोलन के समय भी जूनटीन्थ प्रेरणास्रोत बनी रही जिससे कि आखिरकार सभी अफ्रीकी-अमरीकी लोगों को समान-नागरिक अधिकार प्राप्त हुआ।
ह्यूस्टन के ही नव-निर्वाचित स्टेट रेप्रेज़ेनटेटीव (अपने देश में विधान सभा के विधायक के समकक्ष) अल एडवर्ड्स ने टेक्सास राज्य में जूनटीन्थ को राजकीय अवकाश बनवाने का बिल लाया और 1979 के जून में यह कानून बन गया। आने वाले वर्षों में लगभग सभी राज्यों में ऐसे बिल पास हुए। आश्चर्य की बात कि एक बड़े समुदाय के लिए जो दिन इतना महत्वपूर्ण हो चुका था वो अभी भी राष्ट्रीय अवकाश नहीं था और अमेरिकी संसद को ऐसा करने में लगभग चालीस साल और लग गए।
ओपल ली नाम कि एक 96 वर्षीय महिला को ‘ग्रैन्डमदर ऑफ जूनटीन्थ’ के नाम से जान जाता है। जूनटीन्थ को राष्ट्रीय अवकाश का रूप दिलवाने के पीछे की मेहनत, नेतृत्व और श्रेय भी इनका ही है। उन्हे 2022 के नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी मनोनीत किया जा चुका है। कहते हैं 1939 के जूनटीन्थ उत्सव के समय गोरे लोगों की एक भीड़ ने उनके घर को जला दिया था। उसके बाद उन्होंने जूनटीन्थ को एक राष्ट्रीय अवकाश बनवाने की ठान ली और निरंतर प्रयासरत रही।
अपने अभियान के लिए उन्होंने कई पदयात्राएं की। उनके अभूतपूर्व संघर्ष के बाद 2021 में राष्ट्रपति जो बाइडेन के हस्ताक्षर के साथ ही जूनटीन्थ संयुक्त राज्य अमेरिका का सबसे नवीनतम और बारहवें अवकाश के रूप में दर्ज हुआ। हस्ताक्षर के समय ओपल ली राष्ट्रपति बाइडेन के बगल में खड़ी थीं। बाइडेन का मानना है की यह अवकाश उनके राष्ट्रपति काल के सबसे सम्मानजनक बातों में से एक है।
(डॉ पीयूष कुमार रिसर्च स्कॉलर हैं और न्यू यॉर्क शहर में रहते हैं)