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मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दायरे में अब जज, सेना अधिकारी भी, नई श्रेणी PEP बनी

मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दायरे में अब जज, सेना अधिकारी भी, नई श्रेणी PEP बनी

सरकार ने मनी लॉन्ड्रिंग जांच के दायरे में जजों और सैन्यकर्मियों को भी शामिल किया है। यानी केंद्रीय जांच एजेंसियां किसी भी जज या सेना के अधिकारी-कर्मचारी के खिलाफ मनी लॉन्ड्रिंग की जांच कर सकती हैं। आरोप बेशक सही न हों लेकिन मीडिया ट्रायल के जमाने में जज और सैन्य अधिकारी मात्र जांच शुरू होने के नाम पर ही सहम जाएंगे या सहमे रहेंगे। नए नियमों को लेकर विशेषज्ञों ने भी चिन्ता जताई है। उनका कहना है कि केंद्रीय जांच एजेंसी ईडी को इसके जरिए ज्यादा ताकत दे दी गई है।

मनी लॉन्ड्रिंग विरोधी कानून (पीएमएलए) के नियमों में बदलाव करते हुए केंद्र सरकार ने इसके जांच का दायरा बढ़ा दिया है और कुछ नए टर्म भी शामिल किए हैं। अब इसके तहत जजों, सेना के अधिकारियों के लेन-देन की जांच भी की जा सकेगी। सरकार ने राजनीतिक रूप से उजागर (Politically Exposed Persons- PEP) लोगों का नया टर्म बनाया है। उन्हें भी इसके दायरे में लाया गया है। देश में ईडी ही मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों की जांच करती है। इस तरह ईडी को अब नए नियमों के तहत ज्यादा ताकत मिल गई है।  

मीडिया रपटों के मुताबिक नए नियमों का खुलासा मंगलवार देर रात गजट नोटिफिकेशन के बाद हुआ है। जांच का नया टर्म राजनीतिक रूप से उजागर व्यक्तियों (PEP) ऐसे लोगों से संबंधित है जो किसी बाहरी देश के लिए काम करने वाले व्यक्तियों, वरिष्ठ नेताओं, राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों, सीनियर ब्यूरोक्रेट्स को कवर करता है। इसमें जज और सैन्यकर्मी भी शामिल हैं। सैन्यकर्मी में अधिकारी और कर्मचारी दोनों आते हैं।

बैंकों को गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के लेन-देन का रेकॉर्ड पांच वर्षों तक रखना होगा। इस लेन-देन में फंड की प्रकृति यानी किस काम के लिए पैसा है, इसकी जानकारी देनी होगी और बैंकों को उसे रखना होगा। नए नियमों में कहा गया है कि यह जानकारी कैसे साझा की जाएगी, इस तरह के डेटा को बनाए रखने की प्रक्रिया भी तय की जाएगी। ऐसे ग्राहकों की पहचान रिकॉर्ड बैंकिंग कंपनियों, वित्तीय संस्थानों और मध्यस्थों द्वारा रखा जाएगा।

मीडिया रपटों में कहा गया है कि नए नियम बैंकिंग / वित्तीय कंपनियों के लिए कई संस्थाओं और व्यक्तियों के लेनदेन को रिकॉर्ड करना अनिवार्य बनाते हैं। इन लोगों को पहले पीएमएलए में शामिल नहीं किया गया था। अब नए प्रावधान में राजनीतिक रूप से सभी महत्वपूर्ण नेता, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी और यहां तक कि राज्यों के प्रमुखों यानी मुख्यमंत्री तक को शामिल किया गया है।

भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों के तहत अब फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन को PEP के लिए अपने ग्राहक की केवाईसी के अलावा अतिरिक्त जांच करने की जरूरत होगी। नए नियम अब पीएमएलए गाइडलाइंस को लागू करने के तहत अतिरिक्त लेनदेन रिकॉर्डिंग को अनिवार्य करते हैं। आमतौर पर बैंक इस बात को रेकॉर्ड नहीं करते हैं कि पैसे का लेन-देन किस काम के लिए हुआ है।

यह भी करना होगाः हर बैंकिंग कंपनी या वित्तीय संस्थान को नीति आयोग के दर्पण पोर्टल पर ऐसे ग्राहक का रिकॉर्ड रखना होगा, जो पहले से रजिस्टर्ड नहीं है। कम से कम पांच साल तक या व्यावसायिक संबंध समाप्त होने या खाता बंद होने के बाद जो भी बाद में हो, तब तक रेकॉर्ड रखना होगा। कुल मिलाकर एनजीओ और बैंकों या फाइनेंशियल इंस्टीट्यूशन को लंबे समय तक डेटा सुरक्षित रखना होगा।

कुछ चिंताएं

विशेषज्ञों ने राजनीतिक रूप से उजागर लोगों (PEP) की परिभाषा को लेकर चिंता जताई है। हिन्दुस्तान टाइम्स ने खेतान एंड कंपनी के पार्टनर मानवेंद्र मिश्रा के हवाले से लिखा है कि उन्हें इसकी आड़ में इस नियम के दुरुपयोग होने की चिन्ता है। जैसे किस रैंक तक पीईपी माना जाएगा। पद छोड़ने के कितने समय बाद तक, किसी व्यक्ति को पीईपी माना जाएगा। यहीं पर खेल है। 

यह जांच एजेंसी यानी ईडी के अधिकारी के विवेक से तय होगा कि कौन-कौन या किस पद वाला पीईपी में आएगा। पीईपी की व्याख्या का अधिकार ईडी को दे दिया गया है। नए नियमों ने पीएमएलए की कई धाराओं को अस्पष्ट बनाए रखा है। उन्हें स्पष्ट करने में मदद नहीं की है।


लूथरा एंड लूथरा लॉ ऑफिसेज इंडिया के पार्टनर अभिमन्यु कंपानी का कहना है कि नए संशोधन ने अब एनजीओ की परिभाषा को व्यापक बना दिया है, जिसमें ऐसे संगठन भी शामिल हैं जो धर्मार्थ मकसद के लिए काम करते हैं। इसमें गरीबों को राहत, शिक्षा या मेडिकल राहत आदि शामिल हैं। पीईपी की नई श्रेणी में ज्यादा लोगों को अधिक जांच के दायरे में लाया गया है। इसके अलावा, वित्तीय संस्थानों को अनिवार्य रूप से एनजीओ का विवरण नीति आयोग पोर्टल पर दर्ज करना होगा और कम से कम पांच साल तक इस तरह के रिकॉर्ड को बनाए रखना होगा।

बहरहाल, पीएमएलए के नए नियमों तहत अब ईमानदार जजों और ईमानदार सैन्य अधिकारियों के अधिकारियों पर तलवार लटकी रहेगी। किसी भी ऐरे-गैरे की शिकायत पर ऐसे जजों और सेना अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ जांच शुरू हो सकती है। अगर इस कानून को बनाने के पीछे सरकार की नीयत साफ है तब तो कोई बात नहीं लेकिन अगर सरकार की नजर किसी जज या सैन्य अधिकारी पर टेढ़ी है तो जांच शुरू होने में देर नहीं लगेगी। आमतौर पर ईमानदार जज और सैन्य अधिकारी जांच के नाम पर घबराते हैं। लेकिन जब मीडिया में खबर आएगी तो तमाम जजों और सैन्य अधिकारियों के डर का सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।  

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