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जज भी कई बार राजनीतिक विकल्प चुनते हैंः रिटायर्ड जस्टिस एस मुरलीधर

जज भी कई बार राजनीतिक विकल्प चुनते हैंः रिटायर्ड जस्टिस एस मुरलीधर

ओडिशा हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस एस. मुरलीधर का कहना है कि हम क्या पहनते हैं, क्या खाते हैं, क्या बोलते हैं जैसे तमाम मुद्दे अदालत के सामने संवैधानिक मुद्दे बन रहे हैं। इससे जज भी इन चीजों को सार्वजनिक रूप से तय करने और अपनी राय देने को मजबूर होते हैं। 

जाने-माने वकील गौतम भाटिया की पुस्तक अनसील्ड कवर्स: ए डिकेड ऑफ द कॉन्स्टिट्यूशन, द कोर्ट्स एंड द स्टेट के लॉन्च पर ओडिशा हाईकोर्ट के रिटायर्ड चीफ जस्टिस एस. मुरलीधर ने गुरुवार को कहा कि जज तब भी राजनीतिक विकल्प चुनते हैं जब उन्हें लगता है कि वे तटस्थ हैं। 

जस्टिस मुरलीधार ने गौतम भाटिया की किताब को कोट करते हुए कहा कि गौतम की किताब वास्तव में आपको बताती है कि अदालत के सामने कई बार एक राजनीतिक मुद्दे को कानूनी मुद्दे का रूप दे दिया जाता है। आज हमारे पास दो खबरें थीं... एक लक्षद्वीप के स्कूलों में भोजन की पसंद पर और दूसरा केरल के मंदिर में झंडा फहराने के बारे में।... जज भी राजनीतिक विकल्प चुनते हैं, जब वे सोचते हैं कि वे तटस्थ हैं और उनके पास कोई पद नहीं है। लेकिन चाहे आप किसी तर्क को मंजूर कर रहे हों या नामंजूर कर रहे हों, आपको एक राजनीतिक विकल्प ही चुनना पड़ता है।

उन्होंने कहा कि “इस किताब में यह बात बहुत स्पष्ट रूप से कही गई है कि राजनीति और न्यायपालिका के काम उतने अलग नहीं हैं जितना हम चाहते हैं… हम क्या पहनते हैं, क्या खाते हैं या क्या बोलते हैं जैसे मुद्दे अदालत के सामने संवैधानिक मुद्दे बन रहे हैं। जजों को सार्वजनिक रूप से चुनाव करने के लिए मजबूर किया जाता है। 

जस्टिस मुरलीधर 7 अगस्त को रिटायर हुए थे। द इंडियन एक्सप्रेस में एक कालम में पिछले महीने जस्टिस फली एस. नरीमन, जस्टिस मदन बी. लोकुर और वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू ने लिखा था- कॉलेजियम से एक सवाल: जस्टिस एस. मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट में क्यों नहीं लाया गया? इन लोगों ने उस लेख में लिखा था कि जस्टिस मुरलीधर "हाल के दिनों में देश के सबसे बेहतरीन जजों में से एक हैं।" तीनों लेखकों ने उस लेख में पूछा था कि दो रिक्तियों के बावजूद जस्टिस मुरलीधर को सुप्रीम कोर्ट में जजशिप की पेशकश क्यों नहीं की गई।

बहरहाल, किताब की तारीफ करते हुए जस्टिस मुरलीधर ने कहा कि लेखक गौतम भाटिया ने किताब में कहानी बताने के लिए तकनीक का खूब इस्तेमाल किया है। यह किताब एक अंदरूनी नजरिया देती है, एक रिंग साइड दृश्य बताती है। कोर्ट में होने वाले डायलॉग के बारे में बताती है। घटनाओं के कालक्रम और बदलते समय के लिहाज से यह एक महत्वपूर्ण किताब है कि कैसे एक संस्था ने खुद को आकार दिया और कैसे नया रूप दिया। हर नजरिए से यह एक महत्वपूर्ण किताब है। 

किताब लॉन्च के बाद जस्टिस मुरलीधर, वरिष्ठ वकील रेबेका जॉन, पत्रकार सीमा चिश्ती और भाटिया के बीच तमाम न्यायिक मुद्दों पर चर्चा हुई।

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