पूर्व AMU वीसी बने बीजेपी उपाध्यक्ष, पसमांदा मुस्लिमों को लुभा रही पार्टी?
वैसे तो आम धारणा है कि मुस्लिम बीजेपी को पसंद नहीं करते हैं, लेकिन बीजेपी के हाल के कुछ फ़ैसलों को पसमांदा मुस्लिमों को लुभाने वाले कदम के रूप में देखा जा रहा है। बीजेपी ने आज ही यानी शनिवार को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को बीजेपी का उपाध्यक्ष नियुक्त किया है। उनकी यह नियुक्ति उसी दिन हुई है जिस दिन गृहमंत्री अमित शाह पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पर एक किताब का विमोचन करने के लिए तमिलनाडु के रामेश्वरम में थे। उन्होंने पूर्व उपराष्ट्रपति की जमकर तारीफ़ की। बीजेपी के इन कदमों को पसमांदा मुस्लिमों तक अपनी पहुँच मज़बूत करने के तौर पर देखा जा रहा है।
बीजेपी जिन पसमांदा मुस्लिमों पर अपनी नज़र गड़ाए है वे मुस्लिमों में बहुसंख्यक में हैं। आम तौर पर उच्च और नीची जाति का भेदभाव मुस्लिमों में भी है। 'अशरफ' मुसलमान, मसलन- सैयद, शेख, मुगल, पठान, आदि शीर्ष पर हैं, और सैयद बिरादरी अत्यधिक सम्मानीय है। अशरफ प्रभुत्व के खिलाफ आंदोलनों का नेतृत्व पिछड़े और दलित मुस्लिमों ने किया है और इन्हें ही पसमांदा नाम से जाना जाता है। समुदाय के केवल 15 प्रतिशत लोग इन उच्च जाति समुदायों से आते हैं, जबकि बाकी बड़े पैमाने पर पसमांदा मुसलमान हैं।
बीजेपी लगातार अल्पसंख्यक मोर्चा की बैठकों के माध्यम से मुस्लिम आबादी के एक वर्ग- पसमांदा मुस्लिम तक पहुंच बना रही है। समझा जा रहा है कि पसमांदा के बीच अपनी पहुँच को मजबूत करने के प्रयास में भाजपा ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तारिक मंसूर को उपाध्यक्ष नियुक्त किया। तो सवाल है कि आख़िर तारिक मंसूर को बीजेपी में इतना बड़ा पद क्यों मिल रहा है? क्या उन्होंने बीजेपी के लिए या बीजेपी के पक्ष में कुछ काम भी किया है?
एक रिपोर्ट के अनुसार तारिक मंसूर ने एनआरसी और सीएए विरोध प्रदर्शनों के कुछ केंद्रों में से एक रहे एएमयू को बीच के रास्ते पर चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मंसूर एएमयू के कुलपति थे जब 2020 में नागरिकता संशोधन अधिनियम यानी सीएए और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहा था। सवाल है क्या वह इस मुद्दे पर छात्रों के साथ खड़े थे?
एएमयू में इसके ख़िलाफ़ जबर्दस्त विरोध-प्रदर्शन हो रहे थे। सरकार और पुलिस छात्रों पर काफ़ी ज़्यादा सख्ती कर रही थी। पुलिसकर्मी कथित तौर पर अंदर कैंपस में घुस गए थे। तब छात्रों के लिए खड़े नहीं होने के लिए मंसूर की आलोचना की गई थी।
तब उनकी तुलना जामिया मिलिया इस्लामिया के वीसी से की गई थी। जामिया में भी जबर्दस्त विरोध-प्रदर्शन हुए थे और कथित तौर पर कैंपस में अंदर घुसकर पुलिस ने मारपीट की थी। लेकिन जामिया की वीसी छात्रों के साथ खड़ी दिखी थीं। उन्होंने कैंपस में पुलिसकर्मियों के घुसने को लेकर कड़ा ऐतराज़ जताया था और कार्रवाई करने की मांग भी की थी। हालाँकि, एएमयू के मामले में आलोचनाएँ झेल रहे मंसूर ने सफाई में हमेशा कहा कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ प्रयास किया है।
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार मंसूर ने बाद में शांतिपूर्ण हिंदू-मुस्लिम सह-अस्तित्व पर मुगल प्रिंस दारा शिकोह की सीख को बढ़ावा देने के लिए आरएसएस के साथ मिलकर काम किया। कहा जाता है कि दारा शिकोह का काम करने का तरीक़ा उसके भाई मुगल बादशाह औरंगजेब के काम करने के तरीक़े के विपरीत था। रिपोर्ट के अनुसार आरएसएस के एक पदाधिकारी के अनुसार, मंसूर ने दारा शिकोह परियोजना पर अपने काम से संघ के नेतृत्व को प्रभावित किया था, अंतर-धार्मिक संवाद पर शिकोह के अधिकांश काम का अनुवाद करने और उन्हें मुस्लिम समुदाय के लिए एक आदर्श के रूप में पेश करने के लिए एएमयू के फारसी विभाग का प्रभावी ढंग से उपयोग किया था। उन्होंने इस पर सेमिनार और सम्मेलन आयोजित किए थे।
भाजपा के अल्पसंख्यक मोर्चा के प्रमुख जमाल सिद्दीकी ने कहा कि तारिक मंसूर एक 'राष्ट्रवादी मुस्लिम' हैं जिन्होंने हमेशा 'राष्ट्र प्रथम' के आदर्श को बढ़ावा दिया है। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'मुस्लिम समुदाय में गलत धारणाओं के बारे में उनकी समझ उतनी ज्यादा है जितनी गहरी देश और उसके इतिहास के बारे में उनकी जानकारी। उन्होंने एएमयू के छात्रों को सही रास्ते पर चलाया है और उन्हें गुमराह होने से रोका है। उनकी नियुक्ति से पार्टी को विस्तार करने में मदद मिलेगी।'
तारिक मंसूर उत्तर प्रदेश विधान परिषद के लिए चुने गए, पिछले कुछ वर्षों में भाजपा द्वारा इस पद के लिए चुने गए चौथे मुस्लिम हैं। वह उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ से हैं, जहां राज्य के मतदाताओं में लगभग 19% मुस्लिम हैं, और कम से कम 30 लोकसभा सीटों पर उनकी अच्छी खासी उपस्थिति है, जिनमें से वे 15 से 20 निर्वाचन क्षेत्रों में परिणाम तय करने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
वैसे, बीजेपी के बारे में कहा जा रहा है कि वह पसमांदा मुस्लिमों को केंद्र में रखकर उनको लुभाने में लगी है। इसके लिए आरएसएस विशेष रूप से मुस्लिम शिक्षाविदों और चिकित्सा, कानून और नौकरशाही जैसे व्यवसायों से समुदाय के लोगों तक पहुंच रहा है। माना जा रहा है कि ऐसे लोगों तक पहुँच बनाकर बीजेपी उनके ज़्यादा प्रभाव का इस्तेमाल कर सकती है।