‘रोहित का यूँ जाना… दिमाग़ सुन्न-सा हुआ पड़ा है…’
बहुत तकलीफ है। बहुत। और बहुत डर भी लग रहा है। बहुत। तकलीफ इसलिए कि एक खुशदिल, बेहतरीन, बेहद सफल और नौजवान दोस्त ऐसे झटके से निकल गया! और डर ऐसा जैसे बस्ती के एक आदमी की बलि रोज चढ़नी है और रोज इस डर में रहना है कि पता नहीं आज किसकी बारी है! रोहित के जाने ने शरीर की सारी ताक़त निचोड़ ली है। दिमाग़ सुन्न-सा हुआ पड़ा है। और अंदर एक डर मज़बूत, बहुत मज़बूत होता जा रहा है। डर मरने का नहीं है। इस तरह से असमय और बहुत सारी ज़िम्मेदारियों को छोड़कर मरने का है। और वह भी तब जब आप तमाम सावधानी के साथ रह रहे हैं। रोहित कोरोना के इस दौर में बहुत सीमित और सुरक्षित दिनचर्या में रहे। लेकिन कोरोना ने तब भी चपेट में ले लिया।
आज दफ्तर के लिए निकला था, तभी मैसेज गिरा रोहित के नहीं रहने का। हड्डियों तक में कंपकंपी महसूस होने लगी। हाथ कांपने लगे। मोबाइल के थरथराने से साफ़ दिख रहा था। मैसेज कई बार पढ़ा। यक़ीन नहीं हो रहा था। एक मित्र को फ़ोन किया। उसने तस्दीक की। दिमाग़ सुन्न सा हो गया। कुछ समझ नहीं आ रहा था। रोज लोग मर रहे हैं, चीख-पुकार मची रहती है, लेकिन रोहित के जाने से ऐसा लगा मानो कोई आदमी साथ चल रहा हो और अचानक शेर झपट्टा मारकर उसे ले भागा हो और आप डर से ही गश खाने लगे हों।
टीवी न्यूज इंडस्ट्री ही नहीं समूचे मीडिया का हर आदमी हिला हुआ है। एक जिंदादिल, जमीनी, किसी भी लत से दूर रहनेवाला, तनाव और टकराव से परहेज करनेवाला सेहतमंद नौजवान ऐसे भी जा सकता है, यह डर से भर देता है। दोपहर बाद पता चला कि कल रात तक ठीक थे लेकिन सुबह हार्ट अटैक हो गया। कोविड के चलते नोएडा के अस्पताल में एडमिट थे। इलाज चल रहा था लेकिन मौत का कारण हार्ट अटैक बना।
रोहित ने कम समय में जो लोकप्रियता हासिल की, पत्रकारिता में जो अपनी लकीर खींची, पसंद करनेवालों की जैसी बड़ी जमात खड़ी की, एक इंसान, एक दोस्त के तौर पर जो शानदार दुनिया बनाई- उन सबके यूं अचानक रुक जाने ने बहुत तकलीफ दी है। रुह तक को छलनी किया है। पत्रकारिता और देश दोनों को बड़ा नुक़सान दिया है। ईश्वर ने सच में आज अपनी सीमा लांघ दी। अनर्थ किया, अन्याय किया। एक निहायत शरीफ इंसान, बेहद संभावनाओं से भरा पत्रकार और एक खुशहाल परिवार का पूरा संसार – आज सब उजाड़ दिए। पत्नी और दो छोटी-छोटी बेटियों की भरी पूरी दुनिया पर वज्रपात कर दिया। इस तरह की आकस्मिक, असामयिक और अन्यायपूर्ण मौत के हकदार तो रोहित कत्तई नहीं थे। हरगिज नहीं। ईश्वर ने बेशक नाइंसाफी की है!
मैं भारत सरकार और हरियाणा सरकार से निवेदन करता हूँ कि रोहित के परिवार का भविष्य सुरक्षित और निष्कंटक रहे, इसके लिए कुछ करें।
(राणा यशवंत की फ़ेसबुक वाल से)