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निधि राजदान के साथ बड़ा धोखा, कभी हार्वर्ड में नौकरी मिली ही नहीं! 

निधि राजदान के साथ बड़ा धोखा, कभी हार्वर्ड में नौकरी मिली ही नहीं! 

पिछले साल हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में पत्रकारिता पढ़ाने के लिए एनडीटीवी की नौकरी छोड़ने वाली राजदान ने एक ट्वीट कर विस्तार से बताया है कि वे फ़िशिंग की शिकार हुई हैं, उन्हें हॉवर्ड की नौकरी का प्रस्ताव एक फ़िशिंग जाल ही था।

देश की मशहर एंकर निधि राज़दान के साथ एक अजीबोग़रीब धोखाधड़ी हुयी। उन्हें दुनिया के मशहूर विश्वविद्यालय हार्वर्ड में एसोसियेट प्रोफ़ेसर की नौकरी मिली, इस वजह से उन्होंने एनडीटीवी की अपनी नौकरी छोड़ दी। बाद में उन्हे पता चला कि हार्वर्ड ने दरअसल ऐसी नौकरी उन्हे कभी दी ही नहीं। फर्जीवाड़ा कर उन्हे यह झांसा दिया गया। यह किसने किया, अब इसकी जाँच हो रही है। 

दरअसल निधि फ़िशिंग की शिकार हुयी है। फ़िशिंग यानी हैकर्स द्वारा इन्‍टरनेट पर नकली वेबसाइट या ईमेल के माध्‍यम से इन्‍टरनेट यूजर्स के साथ की गयी धोखेबाजी का जाल इतना फैल चुका है और यह इतना परिष्कृत और होशियारी भरा हो गया है कि इसकी जाल में सामान्य लोग ही नहीं, काफी पढ़े-लिखे और समझदार लोग भी फँस जाते हैं। निधि राजदान भी इससे नहीं बच सकीं। 

हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय की नौकरी?

पिछले साल हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में पत्रकारिता पढ़ाने के लिए एनडीटीवी की नौकरी छोड़ने वाली राजदान ने एक ट्वीट कर विस्तार से बताया है कि वे फ़िशिंग की शिकार हुई हैं, उन्हें हॉवर्ड की नौकरी का प्रस्ताव एक फ़िशिंग जाल ही था, अमेरिकी विश्वविद्यालय ने उन्हें दरअसल इस तरह का कोई प्रस्ताव कभी दिया ही नहीं। 

निधि ने ट्वीट कर कहा, "मैं काफी गंभीर फ़िशिंग हमले का शिकार हुई हूँ। मेरे साथ क्या हुआ, यह स्पष्ट करने के लिए मैं यह बयान दे रही हूँ।" 

इस मशहूर एंकर ने कहा कि वे इस साल सितंबर में नई नौकरी ज्वाइन करने की तैयारियाँ कर रही थीं, उन्हें बताया गया कि कोरोना महामारी की वजह से इसमें देर होगी और वे जनवरी में ज्वाइन कर सकेंगी। 

विश्वविद्यालय ने किया इनकार

पर उन्हें लगा कि कहीं कुछ गड़बड़ है। राजदान ने ट्वीटर पर कहा है,

"पहले तो मैंने इन गड़बड़ियों को यह सोच कर खारिज कर दिया कि कोरोना महामारी की वजह से ऐसा हो सकता है, पर पिछले दिनों मुझे कुछ और संदेह हुआ। मैंने हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय के वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क किया। उनके कहने पर मैंने उन्हें वे दस्तावेज भेजे जो मुझे लगता था कि उस विश्वविद्यालय से आए हैं।"


निधि राजदान, पूर्व एंकर, एनडीटीवी

इसके बाद विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने उनसे कहा कि उन लोगों ने उन्हें ऐसी कोई नौकरी नहीं दी थी। राजदान ने लिखा, "मैं अब यह समझ चुकी हूँ कि मैं एक सुनियोजित और परिष्कृत फ़िशिंग  हमले का शिकार हुई हूँ। दरअसल मुझे हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफ़ेसर की नौकरी नहीं दी गई थी। यह काम करने वालों ने बहुत ही सफाई और चालाकी से फ़र्जीवाड़ा कर मेरे निजी डेटा ले लिए और मेरे ई-मेल अकाउंट, सोशल मीडिया अकाउंट और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों तक भी अपनी पहुँच बना ली है।" 

निधि राजदान ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है। उन्होंने अमेरिकी विश्वविद्यालय को भी पूरे मामले की जानकारी दे दी है। 

क्या होता फ़िशिंग?

कंप्यूटर हैकर्स की ओ से इन्‍टरनेट पर नकली वेबसाइट या ईमेल बना कर उसके ज़रिए इन्‍टरनेट यूजर्स के साथ की गयी धोखेबाजी को ही फ़िशिंग कहते हैं। इसमें वे लोगों की निजी जानकारी को धोखेबाजी से चुरा लेते हैं और उसका ग़लत इस्तेमाल करते हैं। 

इलेक्ट्रॉनिक संचार में फ़िशिंग इलेक्ट्रोनिक जालसाज़ी का ऐसा काम है, जिसमें किसी विश्वसनीय ईकाई के नाम से यूज़र नेम, पासवर्ड और क्रेडिट कार्ड का विवरण जैसी विभिन्न जानकारियाँ लेने की कोशिश की जाती है। लोगों को लुभाने के लिए आम तौर पर लोकप्रिय सामाजिक वेबसाइटों, बैंकों, ऑनलाइन भुगतान प्रोसेसर या आईटी प्रशासकों के नाम का इस्तेमाल किया जाता है। 

 - Satya Hindi

कैसे काम करता है फ़िशिंग?

इसमें काम करने का तरीका यह होता है कि किसी नकली वेबसाइट उससे बिल्कुल मिलता-जुलता वेबसाइट बनाया जाता है और वहाँ से ई-मेल भेजा जाता है। फ़िशिंग ईमेलों में मैलवेयर से प्रभावित वेबसाइट हो सकती हैं। फ़िशिंग का इस्तेमाल कर वर्तमान वेब सुरक्षा प्रौद्योगिकियों की ख़ामियों का इस्तेमाल कर लोगों को धोखा दिया जाता है। 

विदेशी नौकरी का लालच

कुछ साल पहले मशहूर मीडिया कंपनी 'बीबीसी' में कई स्तरों पर और कई तरह की नौकरी देने का विज्ञापन निकाला गया था, वह फ़िशिंग था, क्योंकि बीबीसी ने वह विज्ञापन जारी किया ही नहीं था। इसी तरह उस समय लंदन से प्रकाशित 'न्यूज़ ऑफ़ द वर्ल्ड' अख़बार में भी नौकरी का इसी तरह का विज्ञापन दिया गया था।

उसमें कुछ लोगों को नौकरी दे दी गई थी, उन्हें नियुक्ति पत्र तक भेज दिए गए, और वीज़ा बनाने के नाम पर अच्छी ख़ासी रकम की माँग भी की गई थी। कुछ लोगों ने पैसे दे भी दिए, लेकिन इसका भंडाफोड़ इससे हुआ कि वीज़ा तो ब्रिटेन का उच्चायोग जारी करता, कोई निजी कंपनी कैसे कर सकती है। 

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