पत्रकार कप्पन पर यूपी से जवाब तलब, 9 को सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने पत्रकार सिद्दीक कप्पन के मामले में यूपी सरकार से जवाब तलब किया है। सोमवार को केरल के पत्रकार कप्पन की जमानत याचिका पर कोर्ट ने सुनवाई की। कप्पन को अक्टूबर 2020 में हाथरस जाते समय गिरफ्तार किया गया था। हाथरस में गैंगरेप के बाद एक दलित लड़की की मौत हो गई थी।
चीफ जस्टिस उदय उमेश (यूयू) ललित और एस. रवींद्र भट्ट की बेंच ने 9 सितंबर को इस मामले की फिर सुनवाई करेगी। बहुत मुमकिन है कि कप्पन की जमानत पर उसी दिन फैसला आ जाएगा।
कपिल सिब्बल के तर्क
कप्पन के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, दुष्यंत दवे और वकील हारिस बीरन ने बताया कि कप्पन 6 अक्टूबर, 2020 से जेल में हैं। सिब्बल ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल पर यूएपीए के तहत इस आधार पर आरोप लगाया गया था कि पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) द्वारा "आतंकवादी गतिविधियों" के लिए दिए गए उनके पास ₹45,000 रुपये बरामद हुए थे। सिब्बल ने तर्क दिया कि पीएफआई एक आतंकवादी संगठन नहीं है। पैसा किसने जमा किया इसका कोई सबूत नहीं है। यह केवल एक कोरा आरोप है।
“
पत्रकार कप्पन का पीएफआई से कोई लेना-देना नहीं है। उन्होंने पहले केवल एक पत्रकार के रूप में एक पेपर के लिए काम किया था, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह पेपर पीएफआई का था।
- कपिल सिब्बल, वरिष्ठ वकील, सुप्रीम कोर्ट में 29 अगस्त को
याचिका में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के हाथरस में एक दलित लड़की से कथित बलात्कार और हत्या के मामले पर रिपोर्ट करने के लिए अपने पेशेवर कर्तव्य का निर्वहन करने के कारण कप्पन को गिरफ्तार किया गया है। उन्हें 5 अक्टूबर, 2020 को हाथरस के लिए जाते समय एक कार से रास्ते में उठाया गया था। इस पर चीफ जस्टिस ने पूछा- कार में उनके साथ अन्य व्यक्ति कौन थे? सिब्बल ने जवाब दिया कि एक ड्राइवर था, जिसे जमानत मिल गई। अन्य दो पीएफआई कार्यकर्ता थे, जो अभी भी हिरासत में हैं और अपने खिलाफ आरोपों को चुनौती दे रहे हैं।
उत्तर प्रदेश की अतिरिक्त महाधिवक्ता गरिमा प्रसाद ने जवाब दिया कि मामले में आठ आरोपी व्यक्ति थे। केवल ड्राइवर को जमानत मिली है। एक आरोपी दिल्ली दंगों से और दूसरा बुलंदशहर दंगों से जुड़ा है।
गरिमा प्रसाद ने कहा, आरोप पत्र बहुत पहले दायर किया गया है। एक को जमानत पर रिहा कर दिया गया और वह अदालत में पेश नहीं हुआ और एक गैर जमानती वारंट जारी किया गया।
सिब्बल ने कहा कि आरोप पत्र 5,000 पृष्ठों का है और केवल कुछ ही पृष्ठ अभियुक्तों के साथ साझा किए गए हैं। अदालत ने राज्य सरकार से कहा कि वह अपने सभी तर्कों को अपने काउंटर में विस्तार से नोट करे और याचिकाकर्ता को अगली सुनवाई से पहले जवाब दाखिल करने का समय दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस महीने की शुरुआत में कप्पन की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। जिन पर कथित हाथरस साजिश मामले में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया था।
PFI पर पहले भी देश भर में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों को फंडिंग करने का आरोप लगाया गया था। हालांकि कप्पन की गिरफ्तारी के समय पुलिस ने दावा किया था कि आरोपी हाथरस में कानून-व्यवस्था को बिगाड़ने की कोशिश कर रहे थे। बाद में इसमें पीएफआई का नाम भी जुड़ गया।