जेएनयू हिंसा: इधर-उधर घुमा रही है पुलिस, नक़ाबपोश गुंडों को क्यों नहीं पकड़ती?
जेएनयू में हुई हिंसा को लेकर दिल्ली पुलिस ने शुक्रवार को प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। उम्मीद थी कि पुलिस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कुछ बड़ा ख़ुलासा ज़रूर करेगी क्योंकि घटना को छह दिन बीत चुके थे। लेकिन पुलिस ने जो कुछ कहा, उससे नहीं लगता कि पुलिस ने इतने दिनों में जेएनयू के अंदर गुंडई करने वाले नक़ाबपोशों को सामने लाने को लेकर थोड़ी सी भी कसरत की हो।
प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच के डीसीपी जॉय टिर्की ने कहा कि 4 जनवरी को कैंपस में हिंसा हुई और सर्वर रूम में तोड़फोड़ की गई। उन्होंने कहा कि जेएनयू में 1 से 5 जनवरी तक रजिस्ट्रेशन होना था। लेकिन एसएफ़आई, आआईसा, एआईएसएफ़, डीएसएफ़ रजिस्ट्रेशन नहीं होने देना चाहते थे और रजिस्ट्रेशन करने वालों को धमकाया जा रहा था।
लेकिन जो अहम सवाल है वह यह कि ये नक़ाबपोश गुंडे कौन थे, किसने उन्हें एक सुरक्षित यूनिवर्सिटी के कैंपस के अंदर लाठी-डंडों के साथ घुसने दिया, कैसे वे 3 दिन घंटे तक उत्पात मचाते रहे और आसानी से निकल गए, इस पर पुलिस ने कोई जवाब नहीं दिया। घटना को लगभग एक हफ़्ता हो चुका है लेकिन अभी तक पुलिस किसी को गिरफ़्तार करना तो दूर हिरासत में लेकर पूछताछ तक नहीं शुरू कर पाई है।
दिल्ली पुलिस ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस में जो सबसे अहम सवाल हैं उनका कोई जवाब ही नहीं दिया। पुलिस ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया कि जब नक़ाबपोश गुंडे जेएनयू के अंदर तांडव कर रहे थे तो उसने सूचना मिलने के बाद भी कोई कार्रवाई क्यों नहीं की। कुछ सवाल हैं जिनसे शायद दिल्ली पुलिस बचना चाहती है और वह इधर-उधर की बातें कर रही है।
1 - पुलिस का कहना है कि जांच अभी शुरुआती अवस्था में है, किसी को हिरासत में नहीं लिया गया है। तो ऐसे में पुलिस को संदिग्धों के नाम बताने की क्या ज़रूरत थी
2 - जेएनयू में हुई हिंसा के बाद कई वॉट्सऐप ग्रुपों में हुई चैट के स्क्रीनशॉट वायरल हुए थे, इनमें एबीवीपी से जुड़े कई कार्यकर्ताओं का नाम सामने आया था। इन चैट में वामपंथी छात्रों पर हमला करने की योजना बनाने और हिंसा की बात कही गई थी। पुलिस ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान इस पर कोई बात नहीं की।
3- हिंसा के बाद साबरमती हॉस्टल का एक वीडियो सामने आया जिसमें एक लड़की नक़ाबपोश गुंडों के साथ दिखाई दी है। लड़की ने ख़ुद भी नक़ाब पहना हुआ है। कई लोगों ने उसकी पहचान की है और दावा किया है कि वह एबीवीपी की कार्यकर्ता है और उसका नाम कोमल शर्मा है। पुलिस ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में 9 लोगों के नाम बताए लेकिन इस लड़की के बारे में उसने कोई चर्चा नहीं की।
4 - हिंसा में जो अधिकतर छात्र घायल हुए हैं, वे वामपंथी छात्र संगठनों के हैं। जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष से लेकर कई घायल छात्रों के फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं। लेकिन पुलिस ने सर्वर रूम में तोड़फोड़ को लेकर उनके ही ख़िलाफ़ मुक़दमा दर्ज कर दिया है। पुलिस का कहना है कि आइशी घोष हिंसा में शामिल है। लेकिन वामपंथी छात्र संगठनों के ही ज़्यादा छात्र क्यों घायल हुए हैं, इस पर पुलिस चुप है।
5- पुलिस ने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया है कि कैंपस के अंदर और जेएनयू की ओर जाने वाली सड़कों की लाइट किसने स्विच ऑफ़ की
6- एक अहम बात यह कि पुलिस ने हिंसा में जिन 9 लोगों के शामिल होने का दावा किया है, उनमें से 7 लोगों के बारे में बताया जबकि योगेंद्र भारद्वाज और विकास पटेल किस छात्र संगठन से जुड़े हैं, इस बारे में वह चुप रही।
जबकि ‘इंडिया टुडे’ के मुताबिक़, हिंसा वाले दिन ‘फ़्रेंड्स ऑफ़ आरएसएस’ नाम के वॉट्सऐप ग्रुप में शाम को 5.33 बजे योगेंद्र ने लिखा था, ‘प्लीज, ‘यूनिटी अगेंस्ट लेफ़्ट टेटर’ वाला ग्रुप ज्वाइन कीजिए, अब पकड़ कर इन लोगों को मार पड़नी चाहिए। बस एक ही दवा है।’ और विकास पटेल का हाथों में डंडा लिये हुए और उसके फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर एबीवीपी कार्यकर्ता लिखा होने का स्क्रीनशॉट ख़ूब वायरल हुआ था। लेकिन पुलिस ने इनके बारे में चूं तक नहीं की। इसके अलावा हाथों में डंडा लिये हुए एक अन्य छात्र शिव पूजन मंडल के बारे में भी पुलिस चुप है। मंडल के बारे में बताया गया है कि वह भी एबीवीपी से जुड़ा है।
7- पुलिस का कहना है कि सीसीटीवी फ़ुटेज नहीं होने के कारण वह प्रत्यक्षदर्शियों और मोबाइल से बने वीडियो के आधार पर संदिग्धों की जाँच कर रही है लेकिन सवाल यह है कि बिना फ़ॉरेंसिक जांच के ही पुलिस ने कैसे इन वीडियो को सही मान लिया और उनके आधार पर लेफ़्ट के अधिकतर लोगों को हिंसा में शामिल बता दिया।
पुलिस ने कहा है कि 5 जनवरी को दिन में एसएफ़आई, आईसा, एआईएसएफ़, डीएसएफ़ ने 3.45 बजे पेरियार हॉस्टल के कुछ कमरों पर हमला किया। जबकि जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्ष आइशी घोष ने दिन में 3 बजे पुलिस को वॉट्सऐस मैसेज किया और अपील की कि वह कैंपस में आये। लेकिन पुलिस नहीं आई।
अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने ख़बर दी है कि हिंसा वाले दिन 4 घंटे के भीतर 23 बार पुलिस को कॉल की गई लेकिन पुलिस नहीं पहुंची। रात को 7.45 पर जेएनयू के रजिस्ट्रार के अनुरोध पर पुलिस कैंपस के अंदर गई। अगर आइशी घोष को हिंसा करनी होती तो वह पुलिस को क्यों बुलाती। लेकिन उससे बड़ा सवाल यह है कि 23 बार कॉल करने के बाद भी पुलिस क्यों नहीं आई।
पुलिस बजाय इसके कि वह इन अहम सवालों का ख़ुलासा करे, वह यह कहानी बता रही है कि 1 से 5 जनवरी तक रजिस्ट्रेशन हो रहा था, वामपंथी छात्र संगठन छात्रों को धमका रहे थे, 4 जनवरी को सर्वर रूम में तोड़फोड़ हुई लेकिन इन सब बातों से जेएनयू में हिंसा करने वाले नक़ाबपोश गुंडों के बारे में क्या पता चल पाएगा इन बातों से पुलिस का क्या लेना-देना है। पुलिस ने सर्वर रूम में तोड़फोड़ की शिकायत तुरंत दर्ज कर ली लेकिन जिस आइशी घोष को दुनिया ने ख़ून से लथपथ देखा, उसके सिर में 16 से ज़्यादा टांके आए हैं, उसकी शिकायत पर उसने अभी तक एफ़आईआर दर्ज नहीं की है।
ऐसे में कई सवाल हैं जो पुलिस के मुंह बाएं खड़े हैं कि वह गुंडई करने वालों को पकड़े, उनके नाम दुनिया के सामने लाए न कि वह इतने बड़े मुद्दे को दूसरी ओर मोड़ने की कोशिश करे। क्योंकि अभी तक की कार्यशैली से साफ़ लगता है कि वह सिर्फ़ हीलाहवाली कर रही है और हिंसा के असल दोषियों को पकड़ने के लिए क़तई गंभीर नहीं है।