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मंत्री के प्रस्ताव को खारिज करने वाले जेएनयू वीसी किसके इशारे पर करते हैं काम?

मंत्री के प्रस्ताव को खारिज करने वाले जेएनयू वीसी किसके इशारे पर करते हैं काम?

जेएनयू के वाइस चांसलर एम जगदीश कुमार क्या किसी मंत्री के दबाव में काम करते हैं, क्योंकि उन्होंने फीस बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ आन्दोलन ख़त्म करने के फ़ॉर्मूले को खारिज कर दिया। 

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फ़ीस बढ़ोतरी के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन को ख़त्म करने के लिए मानव संसाधन मंत्रालय ने एक बैठक बुलाई थी। विभाग के नए मुख्य सचिव अमित खरे ने यह बैठक बुलाई थी। जेएनयू के वाइस चांसलर एम. जगदीश कुमार को इस बैठक में भाग लेना था, पर वह इससे दूर रहे। उनके बैठक में नहीं जाने की वजह से यह बेनतीजा रहा। 

यह पहला मौका नहीं था जब वाइस चांसलर ने विश्वविद्यालय से जुड़े मुद्दों पर बैठक का बॉयकॉट किया। फ़ीस बढ़ोतरी पर हो रहे आन्दोलन को ख़त्म कराने के लिए उस समय के मुख्य सचिव आर सुब्रमणियन ने एक बैठक 10 दिसंबर को बुलाई थी। जगदीश कुमार उसमें भी नहीं गए थे।

सुब्रमणियन ने फ़ॉर्मूला दिया था कि फ़ीस बढ़ोतरी हो, लेकिन ग़रीबी रेखा से नीचे के छात्रों को उसमें छूट मिले। सेवा शुल्क बढ़े, लेकिन उसका बोझ छात्रों पर न पड़े, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग वह पैसे दे। आन्दोलनकारी छात्र इस पर राज़ी हो गए थे। पर जगदीश कुमार ने इसका विरोध किया था। मानव संसाधन विकास मंत्री के टेलीफ़ोन पर दो घंटे समझाने के बाद जगदीश कुमार सहमत हुए थे। 

सचिव का तबादला

उसी समय गृह मंत्रालय ने हस्तक्षेप किया और कहा कि क़ानून व्यवस्था उसके विभाग में है। जिस मुख्य सचिव ने पूरा फ़ार्मूला ही तैयार किया था, उसका तबादला कर दिया गया। उन्हें सामाजिक न्याय विभाग भेज दिया गया। इस तरह मानव संसाधन विभाग के मंत्री की बात भी वाइस चांसलर ने नहीं सुनी।

अपनी बात पर अड़े रहना और सरकार की बात तक को नज़रअंदाज़ करना जगदीश कुमार के स्वभाव में है, ऐसा कहा जाता है। साल 2016 से अब तक के उनके कामकाज से भी यह साफ़ हो जाता है। 

फ़ीस बढ़ाने के मुद्दे पर अकादमिक परिषद की बैठक में भी वह नहीं गए थे। वाइस चांसलर का वहाँ होना आवश्यक था, पर वह उसमें नहीं थे। हॉस्टल फ़ीस बढ़ाने पर एग़्जक्यूटिव कौंसिल की बैठक विश्वविद्यालय परिसर से 18 किलोमीटर दूर रखा गया था।

वीसी के काम करने का तरीका!

सभी हॉस्टल के प्रतिनिधियों की इंटर-हॉल एडमिनिस्ट्रेशन की बैठक हुई तो लोगों को सिर्फ़ 30 मिनट पहले इसकी जानकारी दी गई। पीएच डी स्कॉलर सौरभ वाडे ने इंडियन एक्सप्रेस को इसकी जानकारी देते हुए कहा कि जब तक वह वहाँ  पहुँचते, फ़ीस बढ़ाने के प्रस्ताव पर दस्तख़त हो चुके थे। वाडे कहते हैं कि यह तो एक बानगी भर है। यह वाइस चांसलर के काम करने के तरीके को बताता है। 

विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने कुछ मुद्दों पर 31 जुलाई, 2018 को एक विरोध प्रदर्शन किया था। जगदीश कुमार ने उनसे बात करने के बजाय 48 शिक्षकों को नोटिस थमा दिया था।

जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन के प्रमुख डी. के. लोबियाल ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा : 

अगस्त 2019 को वाइस चांसलर के पद पर बने रहने के मुद्दे पर एक जनमत संग्रह कराया था। इसमें सिर्फ़ 8 लोगों ने कहा था कि जगदीश कुमार को पद पर बने रहना चाहिए, 279 शिक्षकों ने कहा था कि वे इस पद के लायक नहीं हैं।


डी. के. लोबियाल, अध्यक्ष, जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन

एबीवीपी को भी दिक्क़त

अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के राधाकृष्णन यादव ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि एबीवीपी के लोग भी जगदीश कुमार से खुश नहीं हैं। उन्होंने कहा, उनकी सबसे बड़ी समस्या यह है कि वह छात्रों से कोई बात करना ही चाहते हैं। इस वजह से हम उनसे संपर्क नहीं कर पाते हैं, न ही परिसर से जुड़ा कोई मुद्दा उठा पाते हैं। 

जगदीश कुमार की कार्यशैली का अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि उन्होंने कुछ दिनों पहले कहा था कि विश्वविद्यालय को कुछ समय के लिए बंद कर देना चाहिए, जब स्थिति सामान्य हो जाए, तो फिर उसे खोल दिया जाए।

हालांकि उन्होंने बाद में इससे इनकार किया, उन्होंने कहा कि इस तरह का कोई सुझाव सरकार को नहीं दिया गया था। वाइस चांसलर ने औपचारिक तौर पर भले ही ऐसी सलाह सरकार को न दी हो, पर उन्होंने अनौपचारिक तौर पर तो कहा ही था। 

मनमर्जी से करेंगे काम?

सवाल यह उठता है कि आख़िर यह कैसे मुमकिन है कि कोई आदमी अपनी मर्ज़ी से देश का शीर्ष शैक्षणिक संस्थान चलाएँ? यह कैसे मुमकिन है कि वाइस चांसलर मानव संसाधन मंत्र की बातों को भी इनकार कर दे और उनके सुझाए फ़ॉर्मूले को सिरे से खारिज कर दे और वह भी तब इस पर आम सहमति बन गई हो?

वह कौन व्यक्ति है, जिसके इशारे पर मानव संसाधन विभाग के मुख्य सचिव, जिसने समझौता फ़ॉर्मूला तैयार किया था, उसका तबादला कर दिया?

महत्वपूर्ण बात यह है कि गृह मंत्री अमित शाह ने संसद के सत्र चलते समय कहा था कि जेएनयू में चल रहा आन्दोलन ख़त्म होना चाहिए। उसके बाद गृह मंत्रालय के मुख्य सचिव ने कहा था कि क़ानून व्यवस्था गृह मंत्रालय के तहत आता है। उसके बाद ही जगदीश कुमार ने समझौता फ़ॉर्मूले को खारिज कर दिया था। 

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