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किसके दबाव में खारिज हुआ जेएनयू समझौते का फ़ॉर्मूला? 

किसके दबाव में खारिज हुआ जेएनयू समझौते का फ़ॉर्मूला? 

जेएनयू में फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ चल रहे आन्दोलन पर समझौते के लिए एक फ़ॉर्मूला तैयार कर लिया गया, बातचीत हुई, सभी राजी हो गए। फिर क्या हुआ कि सबकुछ ख़त्म हो गया?

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में फ़ीस वृद्धि के ख़िलाफ़ चल रहा आन्दोलन बहुत पहले ही ख़त्म हो गया होता। इसके लिए एक फ़ॉर्मूला तय कर लिया गया था और उस पर सभी पक्षों की अनौपचारिक सहमति बन चुकी थी।

विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर थोड़ी हिचक के बाद राजी हो गए थे, मानव संंसाधन मंत्रालय राजी हो चुका था, छात्र संगठन मान चुके थे। लेकिन फिर किसी का दवाब आया और सरकार पीछे हट गई। सरकार ने उस फ़ॉर्मूले को ही ठंडे बस्ते में डाल दिया। बात ख़त्म हो गई।

क्या था मामला?

जेएनयू प्रशासन ने हॉस्टल समेत तमाम फ़ीस बढ़ा दी तो छात्रों ने विरोध प्रदर्शन शुरू किया, जिसमें वामपंथी संगठन आगे थे। आन्दोलन तेज़ हुआ तो मानव संसाधन मंत्रालय ने हस्तक्षेप किया। उसने एक कमेटी बनाई और उसे इस मामले में अध्ययन कर रिपोर्ट सौंपने को कहा, जो सबको मंजूर हो। 

इकोनॉमिक टाइम्स ने ख़बर दी है कि मानव संसाधन मंत्रालय के सचिव आर सुब्रमणियन ने एक फ़ॉर्मूला निकाला, जो मोटे तौर पर सबको मंजूर था। इसे प्रधानमंत्री के कार्यालय ने भी हरी झंडी दे दी थी। दिसंबर के पहले हफ़्ते में इस पर सभी पक्षों से राय मशविरा किया गया और सबको बातचीत की मेज पर लाया गया। इस पर बातचीत 10-12 दिसंबर को हुई।

इस फ़ॉर्मूले के तहत यह तय हुआ था कि हॉस्टल की फ़ीस बढ़ाई जाएगी, पर गरीबी रेखा से नीचे के छात्रों को इसमें छूट मिलेगी। दूसरे शुल्क बढ़ेंगे, पर वह पैसा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग देगा, छात्रों पर बोझ नहीं डाला जाएगा।

छात्रों से कहा गया कि वे इस पर राज़ी हो जाएं कि वे प्रशासनिक भवन के सामने धरना नहीं देंगे, बातचीत करेंगे। यह भी तय हुआ कि प्रदर्शनकारी छात्रों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। यह भी तय हुआ कि अकादमिक भरपाई के लिए छात्रों को दो हफ़्ते का अतिरिक्त समय दिया जाएगा। 

वाइस चांसलर की भूमिका

इस फ़ॉर्मूले पर हुई बातचीत का रिकॉर्ड जेएनयू के वाइस चांसलर एम. जगदीश कुमार को 12 दिसंबर को सौंप दिया गया। वाइस चांसलर इससे सहमत नहीं थे, उन्होंने इसका विरोध किया। उन्होंने मानव संसाधन मंत्रालय की बैठकों का बॉयकॉट कर दिया। उन्हें मनाने की ज़िम्मेदारी मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को दी गई। पोखरियाल वाइस चांसलर से रात में टेलीफ़ोन पर दो घंटे की बातचीत के बाद उन्हें राजी करा पाए। लेकिन इसी मुद्दे पर मंत्रालय के मुख्य सचिव से जगदीश कुमार की ठन गई। उन्होंने अपने पैर एक बार फिर पीछे खींच लिए। 

गृह मंत्रालय का हस्तक्षेप

इसके बाद किसी के दबाव में आकर निशंक भी पीछे हट गए, अपनी बातों से मुकर गए। उन्होंने कहा कि यह मामला तो क़ानून व्यवस्था का है और इस पर गृह मंत्रालय से बात करनी चाहिए। बात गृह मंत्रालय के पास गई।

यह जानना दिलचस्प है कि इसके पहले ही संसद के सत्र के दौरान ही गृह मंत्री अमित शाह ने मानव संसाधन मंत्रालय के इस कामकाज में दिलचस्पी ली थी और उन्होंने इस पर रिपोर्ट भी माँगी थी।

उन्होंने 20 दिसंबर को कहा कि इस मामले का निपटारा जल्द होना चाहिए और जल्द ही यह आन्दोलन ख़त्म होना चाहिए।इसके बाद और दिलचस्प बातें हुईं। इस पूरी प्रक्रिया की धुरी रहे मानव संसाधन सचिव सुब्रमणियन का तबादला संसद का सत्र ख़त्म होने के पहले 13 दिसंबर को कर दिया गया। उन्हें सामाजिक न्याय विभाग में भेज दिया गया। उन्होंने जो फ़ॉर्मूला दिया था, जेएनयू प्रशासन ने उसे पूरी तरह खारिज कर दिया, उसके किसी भी बिन्दु को लागू करने से साफ़ तौर पर इनकार कर दिया। बात ख़त्म हो गई। आन्दोलन तेज हो गया। 

बाद में गृह मंत्रालय ने कहा कि हालांकि यह मामला मानव संसाधन विभाग का था, लेकिन क़ानून व्यवस्था गृह मंत्रालय के तहत आता है, लिहाजा उसकी बात सुनी जानी चाहिए। गृह मंत्रालय ने कहा कि इस मुद्दे पर और अधिक बातचीत की जानी चाहिए, दूसरे लोगों से भी संपर्क किया जाना चाहिए।

नए मानव संसाधन सचिव अमित खरे ने एक बार फिर पहल की। उन्होंने इस पर एक बैठक बुलाई, लेकिन वाइस चांसलर जगदीश कुमार उसमें नहीं गए। उसी दिन हॉस्टल पर नकाबपोशों ने हमला कर दिया। 

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